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भारतीय संस्कृति और सभ्यता की बहुरूपदर्शिका -हरिद्वार

Date : 23-Jan-2023

हरिद्वार का इतिहास-

प्रकृति प्रेमियों के लिए एक स्वर्ग, हरिद्वार भारतीय संस्कृति और सभ्यता की बहुरूपदर्शिका प्रस्तुत करता है। हरिद्वार कोईश्वर का प्रवेश द्वारभी कहा जाता है जिसे मायापुरी, कपिला, गंगाधर के रूप में भी जाना जाता है। भगवान शिव के अनुयायी और भगवान विष्णु के अनुयायी इसे क्रमशः हरद्वार और हरिद्वार नाम से उच्चारण करते हैं| जैसा की कुछ लोगो ने बताया है की यह देवभूमि चार धाम अर्थात बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के प्रवेश के लिए एक केन्द्र बिंदु है|कहा जाता है कि महान राजा भगीरथ गंगा नदी को अपने पूर्वजों को मुक्ति प्रदान करने के लिए स्वर्ग से पृथ्वी तक लाये है। यह भी कहा जाता है कि हरिद्वार को तीन देवताओं ने अपनी उपस्थिति से पवित्र किया है ब्रह्मा, विष्णु और महेश | कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने हर की पैड़ी के ऊपरी दीवार में पत्थर पर अपना पैर प्रिंट किया है, जहां पवित्र गंगा हर समय उसे छूती है। भक्तों का मानना है कि वे हरिद्वार में पवित्र गंगा में एक डुबकी लगाने के बाद स्वर्ग में जा सकते हैं।

हरिद्वार चार स्थानों में से एक है; जहां हर छह साल बाद अर्ध कुंभ और हर बारह वर्ष बाद कुंभ मेला होता है। ऐसा कहा जाता है कि अमृत की बुँदे हर की पैड़ी के ब्रम्हकुंड में गिरती हैं इसलिए माना जाता है कि इस विशेष दिन में ब्रहमकुंड में किया स्नान बहुत शुभ है | प्राचीनतम जीवित शहरों में से एक होने के नाते, हरिद्वार प्राचीन हिंदू शास्त्रों में भी अपना उल्लेख पाता है जिसका समय बुद्ध से लेकर हाल ही के ब्रिटिश आगमन तक फैलता है। हरिद्वार कला, विज्ञान और संस्कृति को सीखने के लिए विश्व के आकर्षण का केन्द्र भी बनता हैं। हरिद्वार की आयुर्वेदिक दवाओं और हर्बल उपचारों के साथ ही अपनी अनूठी गुरुकुल विद्यालय, प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली के लिए भी एक आकर्षण का केन्द्र है

गंगा नदी की पहाड़ो से मैदान तक की यात्रा में हरिद्वार पहले प्रमुख शहरों में से एक है और यही कारण है कि यहां पानी साफ और शांत है। हरे भरे जंगल और छोटे तालाब इस पवित्र् भूमि को प्राकृतिक सुंदरता से जोड़ते हैं। राजाजी राष्ट्रीय उद्यान हरिद्वार से सिर्फ 10 किमी दूर है। जंगली जीवन और रोमांच प्रेमियों के लिए यह एक आदर्श स्थल है। प्रतिदिन सांय हरिद्वार के सभी प्रमुख घाट गंगा नदी की आरती की पवित्र्

 

हरिद्वार में दिखाई दी गढ़वाली लोक कला और संस्कृति की झलक

 

ध्वनि एवं दीपकों के दिव्य प्रकाश से प्रदीप्त होते हैं।

आज हरिद्वार का केवल धार्मिक महत्व ही नहीं है बल्कि यह एक आधुनिक सभ्यता का मंदिर भी है। भेल एक नवरत्न पीएसयू एवं 2034 एकड़ के कुल क्षेत्र् में फैला सिडकुल जिसके तहत हरिद्वार में स्थापित इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रियल एस्टेट(आईआईई) में अनेक उद्योग स्थापित हैं। साथ ही इससे पहले रूड़की विश्वविद्यालय विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र् में विश्व स्तर का पुराना और प्रतिष्ठित संस्थान है। जिले का एक अन्य प्रमुख विश्वविद्यालय अर्थात गुरूकुल अपने विशाल परिसर के साथ पारंपरिक एवं आधुनिक शिक्षा दे रहे हैं।

हरिद्वार में दिखाई दी गढ़वाली लोक कला और संस्कृति की झलक, जानें- क्या रहा खासउत्तराखंड की संस्कृति देश विदेश में विख्यात है. यहां की पारंपरिक वेशभूषा भी लोगों को खूब आकर्षित करती है. प्रेम नगर आश्रम में देव डोली कि धर्म ध्वजा में उत्तराखंड की यही संस्कृति देखने को मिली

हरिद्वार: 

धर्म नगरी हरिद्वार में शुक्रवार को गढ़वाली लोककला एवं संस्कृति की झलक दिखाई दी. प्रेमनगर आश्रम में देवभूमि लोक संस्कृति विरासतीय शोभायात्रा समिति के जरिए कुंभ मेले के अवसर पर भगवान बद्रीनाथ और हनुमान जी की पवित्र धर्म ध्वजा की स्थापना की गई. इस कार्यक्रम में महिलाएं गढ़वाली पारंपरिक पोशाक पहने हुई नजर आई. गढ़वाली वाद्य यंत्र जैसे रणसिंघा, ढोल, दमाऊ, मस्क बीन मुख्य आकर्षण का केंद्र रहे.

वेशभूषा भी लोगों को खूब आकर्षित करती है

  उत्तराखंड की संस्कृति देश विदेश में विख्यात है. यहां की पारंपरिक वेशभूषा भी लोगों को खूब आकर्षित करती है. शुक्रवार को प्रेम नगर आश्रम में देव डोली कि धर्म ध्वजा में उत्तराखंड की संस्कृति देखने को मिली. महिलाएं उत्तराखंड की पारंपरिक पोशाक में नजर आईं और उत्तराखंड के वाद्य यंत्रों ने अलग ही समा बांध दिया. वाद्य यंत्र बजाने वाले वादक भगत दास ने कहा कि ये हमारे गढ़वाल की संस्कृति है. रणसिंघा, ढोल, दमाऊ, मस्क बीन गढ़वाल के वाद्य यंत्र हैं. इन्हें सुनकर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं.

 

कुंभ में दिखेगी अलग ही छटा 

उत्तराखंड के वाद्य यंत्र और यहां की पारंपरिक पोशाक देश विदेश में काफी प्रचलित है. कुंभ में उत्तराखंड की अलग ही छटा देखने को मिलेगी जब उत्तराखंड के वाद्य यंत्रों की धुनों पर बाहर से आने वाले श्रद्धालु भी नाचने को मजबूर हो जाएंगे. साथ ही यहां की लोक संस्कृति और पारंपरिक पोशाक भी लोगों को मंत्रमुग्ध कर देगी

 

 

 
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