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प्रसिद्ध प्राचीन भारतीय कला

Date : 24-Jan-2023

सिन्धु कला एक प्रसिद्ध प्राचीन भारतीय कला है। यह सर्वमान्य है कि सिन्धु सभ्यता सर्वथा स्वदेशी है। हड़प्पा से प्राप्त नर्तकी की काँसे की मूर्ति तथा लाल पत्थर की एक मूर्ति का धड़, मोहनजोदड़ों से प्राप्त बैल तथा बन्दरों की आकृतियाँ आदि इस कला की सबसे महत्त्वपूर्ण कलाकृतियाँ हैं। इन कृतयों में जिस कला का परिचय मिलता है, वह सैली की सशक्त स्वाभाविकता, आकृति के विभिन्न अनुपातों के उत्कृष्ट ज्ञान और हर्ष एवं उल्लास की ऐसी भावनाओं से परिपूर्ण है जिनका अनुभव जीवन के स्पंदनशील क्षेत्र में ही हो सकता है। इस काल की कलाकृतियों में अनुभव तथा कौशल की पर्याप्त परिपक्वता का परिचय मिलता है। कुछ विद्वानों का विचार है कि सिन्धु सभ्यता तथा आर्य सभ्यता कुछ समय तक सहवासिनी रहीं और परस्पर मेल से फली फूलीं। सिंधु सभ्यता के अंतर्गत हमें कलाकारो विकसित स्वरूप हमें देखने को मिलता है सिंधु सभ्यता के निवासी कला के प्रेमी थे तथा उन्होंने कला के विकास को पर्याप्त योगदान दिया सिंधु सभ्यता में हमें वस्तु कला मूर्तिकला स्थापत्य कला और चित्रकला आदि के प्रमाण मिलते हैं

मूर्तिकला

भारत में मूर्तिकला का वास्तविक आरंभ सिंधु घाटी के निवासियों ने किया सिंधु घाटी सभ्यता के अंतर्गत मूर्तिकला का अत्यधिक विकास हुआ यहां के नगरों की खुदाई में भाषण पत्थर धातु तथा मिट्टी की मूर्तियां प्राप्त होती हैं पाषाण तथा धातु की मूर्तियां यद्यपि कम है परंतु देख कलात्मक दृष्टि से उच्च कोटि की है पासाण यानी पत्थर की मूर्तियां सिंधु घाटी सभ्यता के अंतर्गत खुदाई में पाषाण से बनी हुई दर्जनों मूर्तियां प्राप्त हुई है हापा से हड़प्पा से तीन पत्थर की मूर्तियां मिली हैं पुजारी की पत्थर की मूर्ति यह 19 सेंटीमीटर ऊंची है इसमें दाढ़ी सवारी गई है कृपया छाप वाला शॉल ओढ़े हुए हैं उसका बायां कंधा ढका हुआ है लेकिन दाहिना कंधा खुला हुआ है मोहनजोदड़ो से 12 पत्थर की मूर्तियां मिली हैं यहां से प्राप्त मूर्तियों में पुजारी को की मूर्ति भीड़ तथा हाथी की मूर्ति उल्लेखनीय है

मिट्टी से निर्मित बर्तन

मिट्टी से बने बर्तनों को मृदभांड कहा जाता है। सिन्धु घाटी सभ्यता से प्राप्त मृदभांड कुम्हार की चाक से निर्मित हैं। इन बर्तनों पर गाढ़ी लाल चिकनी मिट्टी से सुन्दर चित्र बनाये गए हैं।सिन्धु घाटी सभ्यता में बर्तनों पर वृत्त, वृक्ष तथा मनुष्य की चित्रकारी देखने को मिलती है।

सिन्धु घाटी सभ्यता में बड़ी संख्या में टेराकोटा (पकी हुई मिट्टी) की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।चहूंदड़ो और लोथल में मनके बनाने का कार्य किया जाता था। चहूंदड़ो से सेलखड़ी की मुहरें प्राप्त हुई हैं, बालाकोट और लोथल में सीप उद्योग स्थित था। मिट्टी के बर्तनों में एकरूपता थी, कई बर्तनों पर मुद्रा के निशान भी प्राप्त हुए हैं। संभवतः उन बर्तनों का व्यापार भी होता था।

मिट्टी से निर्मित मूर्तियाँ

सिन्धु घाटी सभ्यता में प्राप्त अधिकतर मृणमूर्तियाँ पकी मिटटी से बनी हैं। मिट्टी से बनी मूर्तियों का उपयोग खिलौने के रूप में किया जाता था, यह मूर्तियाँ पूजा की प्रतिमा के रूप में भी बनायीं जाती थी। मिट्टी से बनी मूर्तियों को मृणमूर्तियाँ कहा जाता है। हड़प्पा संस्कृति में मनुष्य के अलावा पशु और पक्षियों, बैल, भैंसा, भेड़, बकरी, बाघ, सूअर, गैंडा, भालू, मोर, बन्दर, तोता, बतख और कबूतर की मृणमूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं। मानव की मृणमूर्तियाँ ठोस हैं जबकि पशुओं की मृणमूर्तियाँ अन्दर से खोखली हैं।

धातु से बनी मूर्तियाँ

मोहनजोदड़ो, लोथल, कालीबंगा और चंहूदड़ो से धातु से बनी मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।मोहनजोदड़ो से एक कांसे से बनी नर्तकी की मूर्ति प्राप्त हुई है, इसके गले में कंठहार है और हाथों में चूड़ियाँ व कंगन हैं।

पत्थर से बनी मूर्तियाँ

मोहनजोदड़ो से पत्थर से निर्मित एक पुजारी की मूर्ति प्राप्त हुई है, इस मूर्ति की मूछें नहीं हैं परन्तु दाढ़ी है। मूर्ति के बांयें कंधे पर शाल बनायीं गयी है।इस मूर्ति की आँखे आधी खुली हुई हैं, निचले होंठ मोटे, और उसकी नज़र नाक के अगले हिस्से पर टिकी हुई है। सिन्धु घाटी सभ्यता में एक संयुक्त पशु की मूर्ति भी प्राप्त हुई है, जिसका शरीर भेड़ का सिर हाथी का है। महाराष्ट्र के दैमाबाद से ताम्बे का रथ चलाता मनुष्य, सांड, गैंडा और हाथी की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।

 

मुहरें

सिन्धु घाटी क्षेत्र के काफी मात्रा में मुहरें प्राप्त हुई हैं, सिन्धु घाटी के अध्ययन में मुहरों की भूमिका अति महत्वपूर्ण है। यहाँ से कई राज्यों व अन्य देशों की मुहरें प्राप्त हुई हैं। इन मुहरों से सिन्धु घाटी सभ्यता के विदेशी व्यापार और अन्य क्षेत्रों के साथ संबंधों के बारे में पता चलता है।सिन्धु घाटी से विभिन्न प्रकार की मुहरें प्राप्त हुई हैं, यह मुहरें बेलनाकार, वर्गाकार, आयताकार, और वृत्ताकार रूप में प्राप्त हुई हैं। यहाँ पर सिन्धु घाटी की मुहरों के अलावा उन क्षेत्रों की मुहरों भी मिली हैं जिनसे सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग व्यापार करते थे। यहाँ पर मेसोपोटामिया और दिलमुन की मुहरें भी प्राप्त हुई हैं। यह मुहरें स्टेटाइट, फ्यांस, गोमेद, चर्ट और मिट्टी की बनी हुई हैं।

सिन्धु घाटी सभ्यता से प्राप्त अधिकतर मुहरों पर अभिलेख, एक सींग वाला बैल, भैंस, बाघ, गैंडा, हिरण, बकरी व हाथ के चित्र अंकित हैं। इनमे सर्वाधिक आकृतियाँ एक सींग वाले बैल की हैं।मोहनजोदड़ो, लोथल और कालीबंगा से राजमुन्द्रक प्राप्त हुए हैं, प्राप्त मुहरें में से सर्वाधिक मुहरें चौकोर हैं। सबसे ज्यादा मुहरें मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई हैं, इन मुहरों पर शेर, ऊँट और घोड़े का चित्रण नहीं हैं। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पशुपति शिव की आकृति बनी हुई है।

सिंधु घाटी सभ्यता की नगरीय योजना

ये सभ्यता अपने नगरीय जीवन के लिए जानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इनका जीवन बहुत सुखद और शांतिपूर्ण था। लोग समझदार और अच्छे विचारों वाले थे। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के नगरों में अपने-अपने दुर्ग थे जो नगर से कुछ ऊँचाई पर स्थित होते थे जिसमें उच्च वर्ग के लोग निवास करते थे ।

यह सभ्यता अपने नगरों में घरों और सड़कों की संरचना के साथ-साथ इंटों के लिए भी जानी जाती है। सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं। घरों के अंदर स्नानघर और आँगन होते थे साथ ही नगरों में पानी के निकासी की व्यवस्था भी थी। नगरों में अन्नागार पाए जाते थे। इस सभ्यता के लोग पकी इटों का प्रयोग करते थे। इस प्रकार इनका नगरीय जीवन वक्त के हिसाब से काफी उन्नत माना जा सकता है।

सिंधु घाटी सभ्यता का सामाजिक जीवन

सिंधु घाटी सभ्यता का समाज विवेक की दृष्टि से उन्नत था। समाज में असमानताएं भी काफी थीं।अमीर लोग बड़े घरों में रहते थे, उनके पास कई कमरे वाले घर होते थे। गरीब लोग छोटे घरों और झोपड़ियों में रहते थे। उत्खनन में काफी नारी प्रतिमाएं पाइ गई हैं विशेषज्ञों का मानना है कि ये सभ्यता मातृसत्तात्मक सभ्यता थी।

 

इनके सामाजिक व्यवस्था का मुख्य आधार परिवार था। यहाँ के लोग आभूषणों के काफी शौकीन माने जाते हैं। स्त्री और पुरुष दोनों ही आभूषण पहनते थे। अनेक आभुषणों के अवशेष भी मिले। भोजन में हड़प्पाकालीन लोग गेंहूँ ,जौ आदि के अलावा जानवरों के दूध और संभवतः माँस का भी प्रयोग करते थे।

सिंधु घाटी सभ्यता की अर्थव्यवस्था 

सिंधु घाटी में अपनी अर्थव्यवस्था के लिए लोग विभिन्न कार्य किया करते थे। खेती का कार्य भी उनमें से एक था। कालीबंगा से जुते खेत के साक्ष्यधौलावीरा के जलाशय, रेशेदार जाऊ गोसीपिउस आवोसियस जाति का संकर प्रजाति का कपास, लोथल, रंगपुर से धान की भूसी के साक्ष्य, बनावली से मिले मिटटी के हल आदि के साक्ष्य मिले हैं। खेती के अलावा पशुपालन और व्यापार भी आर्थिक व्यवस्था का प्रमुख हिस्सा था। इनके व्यापार मध्य एशिया, फारस कि खाड़ी, ईरान, बहरीन द्वीप, मेसोपोटामिया, मिस्र आदि तक होते थे। मेसोपोटामिया और यहाँ पाए गए मोहरों में समानता भी इस बात को पुष्टि प्रदान करती है। इसके अलावा नगरों में भी चौड़ी सड़कों का होना व्यापार को सुगम बनाने की कोशिश लगती है।

सिंधु घाटी सभ्यता में धार्मिक जीवन

हड़प्पा में एक मुर्ती मिलती है जिसमें देवी के गर्भ से एक पौधा निकलता दिखाई दे रहा है इससे यह माना जाता है कि सिंधु घाटी में लोग जमीन की उर्वरता की पूजा करते थे। साथ ही अनेक देवियों की भी पूजा करते थे। पुरुष देवता के रूप में भी अनेक मोहरें पाई गईं हैं। इसे पशुपतिनाथ महादेव की संज्ञा दी गई है। यहाँ के लोग पशुओं की भी पुजा करते थे जिसमें गैंडा और बैल थे। साथ ही यहाँ से बड़ी मात्रा में तावीज़ भी प्राप्त किये गए। अतः जादू टोना आदि का प्रचलन भी माना जा सकता है साथ ही बलि प्रथा के भी साक्ष्य प्राप्त होते हैं।

सिंधु घाटी सभ्यता का पतन

सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के कारणों को लेकर आज भी विद्वानों में अनेक मतभेद हैं। कुछ लोगों का मानना है कि आर्यों के आक्रमण के कारण इस सभ्यता का पतन हुआ वहीं अन्य विद्वान इसके पतन का कारण प्राकृतिक मानते हैं। इस सभ्यता का पतन मंद गति से हुआ माना जाता है। साथ ही इस सभ्यता के साक्ष्य तो आज भी हमारी संस्कृति में मिलते हैं अतः कुछ विद्वान इसके पूरी तरह पतन हो जाने को नकारते भी हैं।

 

 
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