बस्तर का पठारी क्षेत्र बहुत से प्राकृतिक जलप्रपातों का निर्माण करता है। कांकेर में मलाजकुडूम जलप्रपात तीन अलग-अलग झरनों से बने हैं। कांकेर जिला छत्तीसगढ़ के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित है और पहले पुराने बस्तर जिले का हिस्सा था। दूध नदी, हटकुल नदी, महानदी नदी, तुरु नदी और सिंदूर नदी जिले से होकर गुजरने वाली पांच नदियां हैं। कृषि जिले की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। चावल क्षेत्र की प्रमुख फसल है। चना, कोदो, गेहूँ, गन्ना, भुट्टा, मूंग और तिली अन्य महत्वपूर्ण फसलें हैं।
कांकेर शहर के गढ़ पिछवाड़ी की तरफ से मुख्य सड़क हटकर से बांये तरफ , एक पक्की सड़क जाती है। इस सड़क में 20 किलोमीटर आगे मलाजकुडुम नामक बेहद ही छोटा सा गांव है। इस गांव के पास ही पहाड़ी पर कई भागों में विभक्त बेहद उंचा जलप्रपात है। वास्तव में यह जलप्रपात, दुध नदी का उदगम है जो कि कांकेर शहर के मध्य से बहती है।
जलप्रपात के उपर जाने के लिये पास ही पहाड़ी पर पक्की सीढ़ियां बनी हुयी है। जलप्रपात के उपर पहुंचने पर दो पहाड़ों को मध्य से चीरती हुई दुध नदी सीधे 60 फीट नीचे गिरती है। जलप्रपात तीन हिस्सों में नीचे गिरता है। जिसमें उपरी हिस्सा 60 फिट, मध्य का 30 फिट एवं अंतिम वाला लगभग 20 फिट उंचा है। जलप्रपात के उपर नदी का बहाव अत्यंत तेज है। जलप्रपात के उपर से देखने पर चारों तरफ हरे भरे पर्वत श्रृंखलाओं के मनमोहक दृश्य दिखायी पड़ता है। शहर के कोलाहल से दुर चारों तरफ फैली शांति, हरितिमा युक्त मनमोहक प्राकृतिक दृश्य , जलप्रपात में गिरती हुई असंख्य धाराओं की मधुर संगीत मन को बेहद ही शांति प्रदान करते है।
मलाजकुडुम जलप्रपात टेªकिंग के शौकिन व्यक्तियों के लिये बेहद ही आदर्श स्थल है। जलप्रपात में नीचे गिरती धाराओं के साथ-साथ नीचे उतरने का आनंद ही कुछ और है। टेकिंग में सावधानी बरतना बेहद आवश्यक है। जलप्रपात की फिसलन वाली चटटाने दुर्घटना की कारण बनती है।
जलप्रपात के नीचे नदी पर झुला बनाया गया है। जिसमें उत्साही एवं साहसी युवक एवं युवतियां लोहे की रस्सियों में लटक कर उफनती नदी पार करने का प्रयास करते है। पास ही मलाजकुडुम बस्ती में छत्तीसगढ़ एवं बस्तर की मिली जुली संस्कृति की स्पष्ट झलक दिखलायी पड़ती है। सर्पिलाकार घाटी एवं घने वनों के कारण गढ़पिछवाड़ी से जलप्रपात तक का सफर बेहद ही रोमांचकारी हो जाता है।
साल के किसी भी मौसम में यहां आसानी से जाया जा सकता है।