शिक्षाप्रद कहानी:- भगवान् पर भरोसा
Date : 30-Nov-2024
पुराने काल की बात है | एक बार देश के पूर्वी भाग में जोर से अकाल पड़ गया | लोग दाने-दाने के लिए भटक रहे थे | इससे महात्मा बुद्ध को बड़ा दु:ख हुआ | उन्होंने नगर के लोगों को एकत्रित किया और कहा कि इस समस्या का समाधान खोजा जाये | उस स्थिति में नगर के सबसे बड़े अन्न के व्यापारी ने कहा-“मेरे पास जितना भी अन्न है, मैं वह सब देने को तैयार हूँ, किन्तु वह इतना नहीं है कि सभी नागरिकों को एक सप्ताह भी भोजन दिया जा सके |”
नगर सेठ ने कहा-“मैं अपना सारा कोष देने के लिय तैयार हूँ, किन्तु प्रजा को उससे दस दिन का भी अन्न मिल सकेगा या नहीं, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता |”
राजकोष और राज्यभंडार से तो पहले ही दिया जा रहा था | उसमें भी अब कुछ शेष नहीं रहा था | सबने मस्तक झुका लिए |
तभी सबने पीछे खड़ी एक मटमैले वस्त्रों वाली भिखारिन ने दोनों हाथ जोड़कर भगवान् बुद्ध के सम्मुख प्रणाम किया और बोली – “भगवन! यदि आज्ञा हो तो मैं अकाल पीड़ितों को भोजन दूँ |”
एक छोर से दूसरे छोर तक एकत्रित सब लोगों कि दृष्टि उस भिखारिन पर जा टिकी| लोग आश्चर्य करने लगे कि जिसको अपना ही पेट भरने के लिए नित्य दर-दर की ठोकर खानी पड़ती है, वह किस प्रकार भोजन देगी? भगवान् बुद्ध ने उसकी बात सुनकर प्रसन्नता व्यक्त की | किन्तु एक ईर्ष्यालु कह उठा-“तेरे पास कौन सा खजाना रखा है, जो तू अकाल पीड़ितों को भोजन देगी?”
बिना हिचके और झिझके भिखारिन बोली-“मैं तो भगवान् के भरोसे उद्योग करूंगी | मेरा कर्तव्य उद्योग करना हैं | कोष तो आप सब लोगों के घरों में है, आप लोगों कि उदारता से ही मेरा यह भिक्षापात्र भर जायेगा |”
यह सुनकर तथागत प्रसन्न हुए | बस फिर क्या था ? जहाँ-जहाँ वह भिक्षुणी गयी, लोगों ने अपने भंडार खोल दिये | जब तक वर्षा होकर सूखे खेत लहलहा कर अन्न नहीं देने लगे, तब तक वह भिखारिणी प्रजा का पालन करती रही | भगवान् बुद्ध आश्वस्त हुए भिखारिणी का भगवान् पर भरोसा था, वह सफल सिद्ध हुआ |