16 दिसम्बर 1971 : भारत का विजय दिवस | The Voice TV

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16 दिसम्बर 1971 : भारत का विजय दिवस

Date : 16-Dec-2024

 *तेरह दिन में टूट गया था पाकिस्तान 

पाकिस्तान कभी भारत का ही हिस्सा था, उसका जन्म भारत की भूमि पर हुआ । वहां रहने वाले लोग भी भारतीय पूर्वजों के वंशज हैं । फिर भी वे लोग दिन रात भारत के विरुद्ध विष वमन और भारत को मिटाने का दंभ भरते हैं । पाकिस्तान एक ऐसा देश है जो अपने जन्म के बाद से नहीं, अपितु अपने गर्भ काल से जन्मदाता भारत की धरती पर रक्तपात का षडयंत्र कर रहा है । पाकिस्तान  के इन्हीं षडयंत्रों का परिणाम था 1971 का युद्ध । जो भारत पर थोपा था। इसी युद्ध में जन्म हुआ था संसार में एक नये बंगलादेश का । लेकिन यह विचारणीय है जिस भारत के जवानों के बलिदान से बंगलादेश का जन्म हुआ था वही बंगलादेश, पाकिस्तान से मिलकर भारत के विरुद्ध षड्यंत्र कर रहा है । 
1971 का वह युद्ध कुल तेरह दिन तक चला था । दुनियाँ के इतिहास में यह सबसे छोटा निर्णायक युद्ध माना जाता है । इस युद्ध समापन के साथ एक नये देश का उदय हुआ जो बंगलादेश के नाम से जाना जाता है । बंगलादेश की धरती भी कभी भारत भूभाग बंगाल प्राँत का अंग रही है । लेकिन 1947 में भारत की धरती के इस हिस्से ने भी भारत से अलग होकर पाकिस्तान का नाम स्वीकार कर लिया था और यह प्रक्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान कहलाया । लेकिन भाषा को लेकर मतभेद पहले दिन से था । सल्तनत काल में चले बलपूर्वक धर्मांतरण अभियान में बंगाल के निवासियों की पूजा उपासना पद्धति तो बदल गई थी पर भाषा के प्रति लगाव कम न हुआ। बंगाली समाज ने अपना धर्म और राष्ट्रीयता बदलकर पाकिस्तानी नाम तो स्वीकार कर लिया था लेकिन अपनी मातृभाषा से लगाव न छोड़ा। वे चाहते थे कि उनकी भाषा बंगाली ही रहे । जबकि पाकिस्तानी शासक उनकी यह बंगाली पहचान भी बदलना चाहते थे । पाकिस्तान की सरकार बलपूर्वक उर्दू और अरबी का दबाव बना रहे थे । संघर्ष यहीं से शुरू हुआ । इसको लेकर 1948 से आंदोलन आरंभ हो गये थे । जिसका दमन पाकिस्तान की सरकार और सेना करती रही थी । 1950 में बंगाली भाषा के लिये एक बड़ा आंदोलन और उसके सैन्य दमन ने पूर्वी  पाकिस्तान में निवासरत बंगालियों के मन में विभाजन की एक धारा खींच दी थी । यह अंतर्धारा और इसका दमन 1968 के बाद तेज हुआ । दमन के विरुद्ध संघर्ष केलिये पूर्वी पाकिस्तान में मुक्ति वाहिनी अस्तित्व में आयी और शेख मुजीबुर्रहमान नेता के रूप में उभरे । 1970 आते आते सैनिकों के जुर्म और बंगालियों का दमन और पलायन दोनों बढ़ गया । पाकिस्तानी सैनिक सामूहिक जुर्म ढाने लगे । पाकिस्तानी सैनिकों ने बंगाली महिलाओं के साथ जैसी बर्बरता की, वह रोंगटे खड़े कर देने वाली थी। बड़ी संख्या में बंगाली लोग भारत आकर शरण लेने लगे । 25 मार्च 1971 को बंगला अभियान के नेता शेख मुजीबुर्रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया । जिसका भारत ने विरोध जताया । और मुक्ति वाहनी को नैतिक समर्थन देने की घोषणा भी कर दी । भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने आंदोलन को खुला समर्थन दिया और जो लोग भारत आ रहे थे उन्हे भी पर्याप्त संरक्षण दिया  । 
 
पाकिस्तान ने अपनी समस्या का ठीकरा भारत के सिर फोड़ा और दुनियाँ में यह प्रचार किया कि भारत अशांति फैला रहा है । इसको लेकर पाकिस्तान में भारत के खिलाफ जुलूस निकलने लगे और नारे लगते "क्रश इंडिया" ऐसे जुलूसों को सत्तारूढ़ दल के नेता संबोधित करते और भारत को मिटाने का दंभ भरते । 
 
इन तमाम कारणों से आरंभ हुये युद्ध की तिथि भले तीन दिसम्बर 1971 मानी जाती हो पर पाकिस्तान ने अपनी ओर से यह युद्ध 25 नवम्बर 1971 को ही आरंभ कर दिया था जब लाहौर में ऐसी ही "क्रश इंडिया" रैली को संबोधित करते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भुट्टो ने बाकायदा युद्ध की घोषणा की थी और उसकी तीनों सेनाओं ने मोर्चाबंदी शुरु कर दी थी । पाकिस्तान ने जहाँ करांची बंदरगाह पर नौ सेना बेड़े तैनात किये वहीं सीमा पर फौज बढ़ा कर घुसपैठ शुरू करदी थी । यह वही कूटनीति थी जो पाकिस्तान ने 1948 और 1965 में युद्ध के पूर्व अपनाई थी । तब उसे सफलता मिल गई थी ।लेकिन इस बार भारत सतर्क था भारत युद्ध तो नहीं चाहता था पर युद्ध से निबटने के लिये पूरी तरह तैयार था । भारत ने लगभग दस दिनों तक पाकिस्तान की घुसपैठ पर नजर रखी और स्वयं को मजबूत किया । दूसरी तरफ पाकिस्तान को लगा कि उसकी घुसपैठ सफल हो रही है । इससे उत्साहित होकर उसने दो और तीन दिसम्बर 1971 की रात भारत पर हवाई हमला बोल दिया । पाकिस्तान की वायुसेना ने एक साथ एक रात में भारत के कुल 11 स्थानों पर बम गिराये । यह बम उसने केवल सीमावर्ती क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि भारत की सीमा में चार सौ अस्सी किलोमीटर दूर तक निशाना साधा । पाकिस्तान ने इस अभियान का नाम "आपरेशन चंगेज" दिया था । इसमें पाकिस्तान के 41 युद्धक विमानों ने हिस्सा लिया था |
 इस बमबारी से पूरा भारत सकते में आ गया । तीन दिसम्बर को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने राष्ट्र के नाम संदेश दिया और सेना को आदेश दिया कि वह पाकिस्तान को मुँह तोड़ जबाब दे । भारतीय सेना ने तब तीनों प्रकार की रणनीति अपनाई । जल, थल और हवाई युद्ध की । भारतीय थल सेना जहाँ पूर्वी पाकिस्तान के हिस्से में घुसी और वहां संघर्षरत बंगलादेश मुक्ति वाहिनी की खुली मदद करने लगी भारतीय नौ सेना की पनडुब्बी ने बंगाल की खाड़ी में तैनात पाकिस्तान के उस एयर बेस को उड़ा दिया जिससे पाकिस्तान के युद्धक विमान उड़ान भर रहे थे । तीसरे वायुसेना ने पाकिस्तान के उन मिलिट्री कैंपो पर धावा बोला जो उसकी थल सेना के आश्रय स्थल थे । यह सब काम केवल आरंभिक चार दिनों में हो गया । नौ दिसम्बर से पाकिस्तान की फौज डिफेन्स में आई । दस दिसम्बर को भारत ने उसका सैन्य संचार तंत्र बिखेर दिया । हालत यह हुई कि पाकिस्तान के किस कैंप में कितनी सेना है, उसकी हालत क्या है, वह जीवित भी है या नहीं यह सब सूचनाएं बंद हो गयीं । पाकिस्तान की सेना का सारा ताना बाना बिखर गया । भारतीय फौज ने 14 दिसम्बर को ढाका पर कब्जा कर लिया । पूर्वी पाकिस्तान में तैनात पाकिस्तानी सैनिक या तो वर्मा(म्यांमार) भाग गये या सिरेन्डर करके जान की भीख मांगने लगे । 15 दिसम्बर को भारत ने ढाका पर आधिपत्य होने की अधिकृत घोषणा की । इसी के साथ वहां तैनात पाकिस्तान कमांडर ने फौज के आत्म समर्पण का प्रस्ताव दिया जिसे 16 दिसम्बर को माना गया । और भारत ने अपनी ओर से युद्ध विराम की घोषणा कर दी । 

अब बंगलादेश की भूमिका विचारणीय 

पाकिस्तान का अंग बने बंगाल के निवासियों की सहायता करने में भारत ने अपने लगभग चार हजार सैनिकों का बलिदान दिया । दस हजार से अधिक घायल हुये । लगभग एक करोड़ शरणार्थी भारत आये । उन दिनों भारत की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि भारत इतने शरणार्थियों का भार उठा सके । फिर भी भारत ने हिम्मत की और शरण दी । इनमें से अधिकांश लौटकर ही नहीं गये । यहीं बस गये । इस युद्ध को आज 53 वर्ष बीत गये । आधी शताब्दी से भी अधिक इस अवधि में ऐसा कोई वर्ष नहीं बीता जब भारत ने बंगलादेश को सहायता न दी हो । बदले में क्या मिला ? बंगलादेश चीन की गोद में बैठ गया । पाकिस्तान के इशारे पर काम करने लगा । भारत में होने वाली आतंकवादी गतिविधियों का एक केन्द्र बन गया । इन दिनों बंगलादेश में केवल मंदिर ही तोड़े जा रहे बल्कि भारत विरोधी नारे भी लग रहे हैं। कट्टरपंथियों द्वारा यह खुली चेतावनी दी जा रही है कि यदि बंगलादेश के हिन्दुओं की सहायता केलिये भारत ने कदम बढ़ाये तो भारत से बंगाल उड़ीसा और असम भी छीन लेंगे।  आज भले बंगलादेश के कट्टरपंथियों की यह धमकी हास्यास्पद लगे पर यदि हम इतिहास की घटनाओं को देखे और पाकिस्तान के षड्यंत्र को समझे तो विचार करना ही पड़ेगा। बंगलादेश बनने के बाद से कट्टरपंथी जैसी भारत की डेमोग्राफी बदल रहे हैं वह चौंकाने वाली हैं। असम, बंगाल और झारखंड के अनेक गांव ऐसे हैं जहाँ से हिन्दू पलायन कर गये और बंगलादेशी आकर बस गये । यह भी चिंताजनक है कि उनके वे सब दस्तावेज भी तैयार हो गये जिनसे उन्हे भारतीय माना जा सके। मीडिया में तो ऐसे समाचार भी आये कि बंगलादेशी घुसपैठिये अब असम और बंगाल में विधायक भी बन गये हैं 

युद्ध की कुछ मुख्य बातें 

*युद्ध में पाकिस्तान के कुल 97368 युद्ध बंदी बनाये गये इसमें 91 हजार वर्दीधारी सैनिक, दो हजार अर्धसैनिक और चार हजार अन्य सहयोगी थे 

* युद्ध में 3843 भारतीय सैनिक बलिदान हुये जबकि पाकिस्तान के नो हजार सैनिक मारे गये

* युद्ध में भारतीय वायु सेना ने कुल 5878 उड़ाने भरी इसमें 4000 लगभग पश्चिमी मोर्चों पर बाकी पूर्वी मोर्चा पर

* शिमला समझौता 2 जुलाई 1972 को हुआ जिसमें भारत ने युद्ध बंदी लौटाये और जीती हुई जमीन भी



लेखक:- रमेश शर्मा 

 

 
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