" होली,दीपावली और शिवरात्रि पर तथाकथित सेक्यूलरों की विविध चिंताएं ,परंतु क्रिसमस और पाश्चात्य नव वर्ष पर चुप्पी- ये कैंसी दोगली नीति"
Date : 24-Dec-2024
होली पर पानी और महाशिवरात्रि पर दूध की 'बर्बादी' का संज्ञान लेने वालों ने क्या कभी पूछा कि क्रिसमस और पाश्चात्य नव वर्ष पर घरों, दुकानों और बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल्स को भिन्न-भिन्न रोशनियों से सजाने में कितनी मेगावॉट ऊर्जा 'बर्बाद' हुई? क्या दीपावली पर पटाखों और दुर्गा-पूजा, गणेश-चतुर्थी आदि पर प्रतिमा विसर्जन से प्रदूषण बढ़ने की बात करने वालों ने इस ओर ध्यान दिया कि क्रिसमस पर सजावट-उपहारों में इस्तेमाल ज़हरीला प्लास्टिक या फिर करोड़ों असली पेड़ काटकर बने 'क्रिसमस-ट्री' और 'ग्रीटिंग कार्ड्स' से पर्यावरण पर कितना दुष्प्रभाव पड़ा? पुराने पारंपरिक भोजन के नाम पर दुनिया भर में करोड़ों- अकेले इंग्लैंड में प्रतिवर्ष 1 करोड़, तो अमेरिका में 2.2 करोड़ टर्की पक्षी मार दी जाती हैं। क्रिसमस के कारण टर्की-पालन एक वैश्विक उद्योग बन चुका है, जिसमें भूमि, जल और अन्य संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग होता है। क्या यह सब ईसा मसीह के मृदु व्यक्तित्व, उनके विनयशील जीवन और उनकी शिक्षाओं के अनुरूप है? जीसस क्राइस्ट यानी ईसा मसीह को ईश्वर की संतान माना जाता है, क्रिसमस का नाम भी उन्हीं के नाम पर पड़ा है, जिनकी जन्मतिथि को लेकर बहुत मतभेद रहे हैं यहां तक कि बाइबिल में भी उनके जन्म की तारीख का कोई उल्लेख नहीं मिलता। ईसाई धर्म में प्रचलित कथा के अनुसार ईश्वर ने अपने दूत जिब्रील जिसे गैब्रियल भी कहते हैं, उसे मरियम नाम की महिला के पास भेजा था। जिब्रील ने मरियम को बताया कि जो बच्चा उनके गर्भ से जन्म लेगा उसका नाम जीसस क्राइस्ट होगा।
पवित्र ग्रंथ बाइबिल में वर्णित ल्यूक - मैथ्यू की गोस्पेल कथाओं के अनुसार बेथलेहेम में दिव्य हस्तक्षेप के बाद कुंवारी मेरी ने यीशु को जन्म दिया, क्या उक्त तथ्य की स्वीकार्यता पाश्चात्य देशों के वैज्ञानिक और मार्क्सवादी देंगे ? यदि इस विश्वास को भी आधार बनाएं तो भी इसमें यीशु की जन्मतिथि का कोई उल्लेख नहीं है इसलिए 25 दिसंबर से 6 जनवरी एपीफेनी तक अलग-अलग जन्मतिथियां निर्धारित की जाती हैं। यह भी गौरतलब है कि ईसा के जन्म के तीसरी शताब्दी पश्चात 350 ईसवी में तत्कालीन पोप जूलियस- 1ने यीशु जयंती को 25 दिसंबर को मनाने की घोषणा की। यह व्यक्तिगत व्यक्तिगत निर्णय था। उन दिनों 'पैगन' (बुतपरस्त) रोमन वासी प्रति वर्ष सैटर्नालिया पर्व मनाते थे, जिस पर उत्सव के साथ प्रीतिभोज का आयोजन और उपहारों का आदान-प्रदान होता था। यह परंपरा आज हम क्रिसमस के समय भी देखते हैं, तब पोप जूलियस - 1ने बड़ी चतुराई से एक 'पैगन' पर्व पर ईसाइयत की छाप लगा दी। संयोग देखिए कि सैटर्नालिया उन्हीं सैटर्न देवता (शनिदेव) को समर्पित था, जिन्हें प्रसन्न रखने हेतु सदियों से हिंदू पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं।