मूर्त और अमूर्त चित्रण- दोनों विधाएं कला के क्षेत्र में विशेष महत्व रखते हैं। परंपरागत से आधुनिक कला तक में पारंगत अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकार ज्ञानेंद्र कुमार उत्तराखंड की पहचान हैं। वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) के मुख्य कलाधिकारी पद से सेवानिवृत्त ज्ञानेंद्र कुमार चित्रकला, मूर्तिकला और काव्य कला की त्रिवेणी के रूप में उत्तराखंड की कीर्ति विश्व भर में फैला रहे हैं।
ज्ञानेंद्र कुमार का जन्म 1 जून 1941 को हुआ था। ज्ञानेंद्र कुमार हिन्दी, अंग्रेजी और बांग्ला तीनों भाषाओं के अच्छे जानकार हैं और तीनों भाषाओं में साहित्य रचना का कार्य कर रहे हैं। इसके साथ ही साथ कला को व्यावसायिक रूप से जन सामान्य में प्रस्तुत करना उनकी विशिष्टता है। 2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ में आयी बाढ़ तथा इस विविषिका पर बनी उनकी लंबी कलाकृति वर्षों तक चर्चा का विषय रही है। ज्ञानेंद्र कुमार ने एमए दर्शनशास्त्र करने के बाद विश्व भारतीय विश्वविद्यालय शांति निकेतन से ललितकला का डिप्लोमा प्राप्त कर अपनी कला साधना प्रारंभ की। वन अनुसंधान संस्थान के मुख्य कलाधिकारी रहते हुए उन्होंने अंतरराष्ट्रीय ललित कला ग्रीष्म अकादमी, आस्ट्रिया में अमूर्त चित्रकला संगोष्ठी में भाग लिया। मूर्तिकला एवं चित्रकला की नई संभावनाओं पर अध्ययन हाईवैकम कॉलेज आफ आर्ट टैक्नोलॉजी इंग्लैण्ड से उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया। विश्वविख्यात वन अनुसंधान संस्थान देहरादून में मुख्य चित्रकला अधिकारी (वर्ष 1965 से 2001 तक) रहते हुए उन्होंने संस्थान को कला के क्षेत्र में नई ऊंचाइयां देने का काम किया और वैज्ञानिक वानिकी में कला का योगदान जैसे महत्वपूर्ण विषय पर विशेष कार्य किया। उनके इन्हीं महत्वपूर्ण कृत्यों के कारण उन्हें उत्तरांचल कला परिषद उपाध्यक्ष मनोनीत किया गया जहां उनका लक्ष्य है कि वह उत्तराखण्ड में आधुनिक कला प्रवृत्तियों से कला प्रेमियों को परिचित कराने के साथ साथ प्रदर्शिनियां के माध्यम से लोगों को जागृत कर रहे हैं।
ज्ञानेंद्र कुमार के चित्रों और मूर्तियों का मुख्य विषय नारी संसार रहा है। उनके कई चित्रों को विशेष सम्मान मिला है,जिसमें उलझन नामक चित्र में नारी को पीले और कत्थई रंग से घूमती हुई तूलिका से उकेरा गया है जो अपने आप में विशेष है। इसी तरह अमूर्त चित्रण में प्रकाश की ओर कृति में चित्रकार ने प्रकाशीय रंगों का अद्भुत प्रयोग किया है। चित्र दुआ में चित्रकार ने समुद्री नीले रंगों का सार्थक उपयोग किया है।
विश्वभारती शांति निकेतन से शिक्षा प्राप्त प्रख्यात चित्रकार, मूर्तिकार, संगीतकार एवं साहित्यकार, बहुमुखी प्रतिभा के धनी ज्ञानेंद्र कुमार अपनी कला के बल पर जिन विशिष्ट विभूतियों का आशीर्वाद प्राप्त कर चुके हैं उनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा, राजीव गांधी, उपराष्ट्रपति डॉ. बीडी जत्ती, डा. भगवत शरण उपाध्याय, डॉ. हरिवंशराय बच्चन, रानी एलिजाबेथ तथा जार्ज बुश शामिल हैं। देश-विदेश में अपनी कला प्रदशर्नियों तथा संगीत संध्या के माध्यम से ज्ञानेंद्र कुमार ने लोगों का दिल जीता है। जिन प्रमुख स्थलों पर ज्ञानेंद्र कुमार की कला प्रदशर्नियां आयोजित की गई हैं उनमें भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद नई दिल्ली का नाम प्रमुख है। यहां निर्भयाकांड के समय ज्ञानेंद्र कुमार की नारी सशक्तिकरण पर आधारित प्रदर्शनी आयोजित की गई और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शनी का सम्मान हुआ। संचार माध्यमों में इसका विशेष प्रसारण हुआ। ज्ञानेंद्र कुमार के कला जीवन पर आधारित साक्षात्कार दूरदर्शन और आकाशवाणी पर प्रसारित होते रहते हैं। उनके प्रभात गीत कई प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में गाए जाते हैं।
ज्ञानेंद्र कुमार ने एक साक्षात्कार के दौरान बताया कि वे चित्रकला, मूर्तिकला और काव्य कला के माध्यम से समाज को प्रेरित करते हैं। जो बात सीधे नहीं कही जा सकती वह चित्रों और कला के माध्यम से आसानी से व्यक्त की जा सकती है। ज्ञानेंद्र कुमार मानते हैं कि समाज में लगातार परिवर्तन हो रहा है। यह विकास और परिवर्तन कई मायनों में अनूठा है लेकिन यह भी सच है कि आज लोगों को कला, साहित्य और मूर्तिकला क्षेत्र के बारे में न तो जानकारी प्राप्त करने का समय है और न ही लोग इस क्षेत्र में अभिरुचि रखते हैं जबकि कला संसार ही जीवन का यथार्थ स्वरूप है। कला के बिना यह संसार आधूरा है। उन्होंने कहा कि भारतीय कला में अभिव्यक्ति की प्रधानता होती है। भारतीय कलाकार वाह्य सौंदर्य की अपेक्षा आंतरिक भावों के अंकन में अपने मन को अधिक लगाते हैं। शांति निकेतन से निकले छात्र-छात्राओं ने कला के माध्यम से समाज को झंकृत करने का काम किया है। उन्होंने बताया कि समकालीन भारतीय कला का क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय और बहुत प्रयोगात्मक रहा है। इसमें अभी भी देश के लंबे और समृद्ध कलात्मक इतिहास के संदर्भ शामिल हैं।
लेखक - राम प्रताप मिश्र साकेती