"सहकारिता: सामाजिक समानता और महिलाओं के सशक्तिकरण का सशक्त माध्यम"
Date : 25-Dec-2024
आज के समय में सहकारिता एक महत्वपूर्ण साधन है, जो समाज के विभिन्न वर्गों को सशक्त बनाने और उनके आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देने में सहायक है। सहकारिता साथ में मिलकर (Cooperation) कार्य करने की एक कला है। यह एक ऐसा तंत्र है जो लोगों को सामूहिक रूप से कार्य करने और संसाधनों को साझा करने की प्रेरणा देता है। आज के युग में सहकारिता की आवश्यकता और भी बढ़ गई है, क्योंकि व्यक्तिगत स्वार्थ, प्रतिस्पर्धा और असमानता के चलते समाज में अनेक चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं। सहकारिता का उद्देश्य आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक उत्थान करना है।
आर्थिक असमानता दूर हो रही है क्योंकि सहकारिता से छोटे और मध्यम वर्ग के लोगों को आर्थिक सहायता मिलती है। सहकारिता से ग्रामीण विकास को बढ़ावा मिल रहा है । ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी समितियां कृषि, दुग्ध उत्पादन, और अन्य व्यवसायों में सहायता प्रदान करती हैं। यहाँ तक कि सहकारिता से सस्ते कच्चे माल और श्रमिकों की सुलभता के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों के विकास को नई दिशा मिली है । सहकारी उद्यम जैसे चीनी मिलें, बैंक और छोटे उद्योग श्रमिकों और मालिकों के बीच सामंजस्य स्थापित करते हैं।
समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सहकारिता सामाजिक समानता के वातावरण को निर्मित कर रही है। सहकारिता जाति, धर्म और लिंग के भेदभाव को समाप्त कर समाज में समानता को बढ़ावा देती है। सहकारिता समाजिक विकास की सबसे सशक्त घुरी महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनने का अवसर प्रदान करती हैं। जैसे-
1-भारत में अमूल (गुजरात) और सुधा डेयरी (बिहार) की सहकारी समितियों में लाखों महिलाएँ सक्रिय हैं। जिसने सहकारी आंदोलनों के माध्यम से डेयरी उद्योग में क्रांति ला दी। दूध उत्पादन, संग्रहण और विपणन में महिलाओं की बड़ी सराहनीय भूमिका रही है ।
2- मुंबई के गिरगाँव में 7 महिलाओं के समूह से जुड़ा श्री महिला गृह उद्योग (लिज्जत पापड़ उद्योग ) 45,000 से अधिक महिलाएँ इस संस्था से जुड़ी हुई हैं। इसका वार्षिक टर्नओवर करोड़ों में है।
3- अहमदाबाद, गुजरात की SEWA (Self Employed Women’s Association) यह संगठन महिलाओं को आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए स्वरोजगार का प्रोत्साहन। लाखों महिलाएँ इस संगठन से जुड़कर कुटीर उद्योग, हस्तशिल्प और स्वरोजगार में योगदान दे रही हैं।
4- भारतीय महिला बैंक जो 2013 से भारत के विभिन्न नगरों में महिला उद्यमियों को सस्ती ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराती है। इसका उद्देश्य महिलाओं को स्वरोजगार के लिए वित्तीय समर्थन प्रदान करना है।
5- छत्तीसगढ़ की इमली महिला सहकारी समिति जो जनजाति समाज की महिलाओं द्वारा इमली और अन्य वन उत्पादों का संग्रहण और विपणन कार्य को प्रोत्साहित करती है साथ ही उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाती है।
6- कर्नाटक और तमिलनाडु की सिल्क सहकारी समितियाँ ये महिलाओं को रेशम उत्पादन और विपणन में सहयोग प्रदान करती है।
7- महिला हाउसिंग कोऑपरेटिव सोसाइटीज ,मुंबई और पुणे में महिला सहकारी हाउसिंग सोसाइटीज जो शहरी क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे हाउसिंग प्रोजेक्ट्स के माध्यम से महिलाओं को कम मूल्य में आवास सुविधा प्रदान कराती है।
8- टिकाऊ कृषि और वानिकी सहकारी समितियां (सस्टेनेबल एग्रीकल्चर और फॉरेस्ट्री कोऑपरेटिव सोसाइटी) जिसमें उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की महिला सहकारी समितियाँ आती है । इसके द्वारा महिलाओं को जैविक खेती, वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण में संगठित कर आर्थिक लाभ पहुँचाया जाता है ।
9- त्रिफेड यह जनजाति समाज की महिलाओं के उत्पादों (हस्तशिल्प, खाद्य पदार्थ) के लिए विपणन सुविधा उपलब्ध कराता है तथा उन्हें बाजार से जोड़कर आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करना।
इस प्रकार सहकारिता में महिलाओं का योगदान अतुलनीय है । वह स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के द्वारा छोटे-छोटे समूहों में एकत्र होकर स्वरोजगार के लिए सहकारी प्रयास करते हैं। महिलाएँ सहकारी समितियों में प्रमुख भूमिका निभाकर परिवार और समाज के आर्थिक स्तर को ऊँचा उठाती हैं। महिलाओं ने हस्तशिल्प, बुनाई, सिलाई और अन्य उद्योगों में सहकारिता के माध्यम से बड़े स्तर पर रोजगार उत्पन्न किया है। चाहे वह स्वयं सहायता समूह (Self-Help Groups) हो, कृषि या कुटीर उद्योग, कृषि और दुग्ध उत्पादन,पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक क्षेत्र हो , निर्माणी उद्योग या नेतृत्व क्षमता से संबंधित कार्य हो ऐसे सभी क्षेत्रों में महिलाओं ने अपना सशक्त प्रदर्शन किया है।
आज महिलाएँ सहकारी समितियों की अध्यक्ष, सचिव और अन्य पदों पर नेतृत्व कर अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन कर रही हैं। कई महिला सहकारी समूह पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद बनाने और हरित कृषि को बढ़ावा देने में योगदान दे रहे हैं।
लेखक - डॉ नुपूर निखिल देशकर