"हिन्दू संवत्सर चल रहा है इसलिए पाश्चात्य नव वर्ष मनाया जाना औचित्यहीन है,केवल कैलेंडर बदलेगा " | The Voice TV

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"हिन्दू संवत्सर चल रहा है इसलिए पाश्चात्य नव वर्ष मनाया जाना औचित्यहीन है,केवल कैलेंडर बदलेगा "

Date : 01-Jan-2025

हिन्दू संवत्सर 2081 और शक संवत 1946,चैत्र शुक्ल प्रतिपदा दिनांक 9 अप्रैल 2024 से प्रारम्भ हुआ था,जो 29मार्च 2025 तक चलेगा इसलिए हिंदू नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत 2082 तदनुसार  30 मार्च 2025 से प्रारंभ होगा।हिंदू नव वर्ष रेवती नक्षत्र और इन्द्र योग में होगा।विशेष बात ये है कि इस दौरान सूर्य देव और चंद्र देव दोनों मीन राशि में विराजमान रहेंगे। वर्ष 2025 में अनोखा संयोग बन रहा है जिसमे राजा और मंत्री सूर्य ही होंगे।अतः 1 जनवरी 2025 को कैलेंडर बदलने के अतिरिक्त पाश्चात्य नव वर्ष मनाने का कोई औचित्य नहीं है। 


पाश्चात्य नव वर्ष 1 जनवरी 2025 से प्रारंभ हो रहा है, जिसे शुभ बनाने के लिए आमतौर पर मांस - मदिरा के सेवन और विभिन्न प्रकार की अश्लील पार्टियों के साथ भयानक आतिशबाजी कर पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण तथा प्रकृति संरक्षण के संदेश दिए जाते हैं!!!यह कितना दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि पाश्चात्य नव वर्ष का शुभारंभ अवांछनीय कुकृत्यों से होता है। हिन्दू संस्कृति में चैत्र नवरात्र के पावन और पुनीत अवसर पर हिन्दू नव वर्ष, गुड़ी पड़वा सहित विभिन्न भारतीय पर्वों की महान् श्रृंखला आरंभ होती है। आध्यात्मिक वातावरण में शुचिता के साथ नव संवत्सर प्रारंभ होता है, जिसमें विश्व कल्याण की भावना को लेकर सभी दुर्व्यसनों से मुक्त होकर शक्ति की उपासना की जाती है। भारतीय पंचांग, विश्व के सभी पंचांगों का मूलाधार है।
ज्योतिष में बृहस्पति और शुक्र ग्रह को मंगल कार्य के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। संवत्सर का संबंध बृहस्पति ग्रह की गति, राशि परिवर्तन, उसके उदय और अस्त से है। जैसे धरती के 12 मास होते हैं उसी तरह बृहस्पति ग्रह के 60 संवत्सर होते हैं। प्रतिपदा वाले दिन से 60 संवत्सरों में से एक नया संवत्सर प्रारंभ होता है। इसीलिए इसे नव संवत्सर भी कहते हैं। संवत्सर अर्थात् बारह महीने की कालविशेष अवधि। बृहस्पति के राशि बदलने से इसका आरंभ माना जाता है। 
60 संवत्सरों के नाम इस प्रकार हैं - प्रभव, विभव, शुक्ल, प्रमोद, प्रजापति, अंगिरा, श्रीमुख, भाव, युवा, धाता, ईश्वर, बहुधान्य, प्रमाथी, विक्रम, वृषप्रजा, चित्रभानु, सुभानु, तारण, पार्थिव, अव्यय, सर्वजीत, सर्वधारी, विरोधी, विकृति, खर, नंदन, विजय, जय, मन्मथ, दुर्मुख, हेमलम्बी, विलम्बी, विकारी, शार्वरी, प्लव, शुभकृत, शोभकृत, क्रोधी, विश्वावसु, पराभव, प्ल्वंग, कीलक, सौम्य, साधारण, विरोधकृत, परिधावी, प्रमादी, आनंद, राक्षस, नल, पिंगल, काल, सिद्धार्थ, रौद्रि, दुर्मति, दुन्दुभी, रूधिरोद्गारी, रक्ताक्षी, क्रोधन और अक्षय।
बृहस्पति ग्रह के वर्षों के आधार पर युगों के नाम सूर्य सिद्धान्त के अनुसार संवत्सर बृहस्पति ग्रह के आधार पर निर्धारित किए जाते हैं। 60 संवत्सरों में 20 -20-20 के तीन हिस्से हैं जिनको ब्रह्माविंशति (1-20), विष्णुविंशति (21-40) और शिवविंशति (41-60) कहते हैं। बृहस्पति की गति के अनुसार प्रभव आदि साठ वर्षों में बारह युग होते हैं तथा प्रत्येक युग में पांच-पांच वत्सर होते हैं। बारह युगों के नाम हैं– प्रजापति, धाता, वृष, व्यय, खर, दुर्मुख, प्लव, पराभव, रोधकृत, अनल, दुर्मति और क्षय। प्रत्येक युग के जो पांच वत्सर हैं, उनमें से प्रथम का नाम संवत्सर है। दूसरा परिवत्सर, तीसरा इद्वत्सर, चौथा अनुवत्सर और पांचवा युगवत्सर है। 12 वर्ष बृहस्पति वर्ष माना गया है। बृहस्पति के उदय और अस्त के क्रम से इस वर्ष की गणना की जाती है। इसमें 60 विभिन्न नामों के 361 दिन के वर्ष माने गए हैं। बृहस्पति के राशि बदलने से इसका आरंभ माना जाता है। 
विक्रम संवत में नववर्ष की शुभारंभ चंद्रमास के चैत्र माह के उस दिन से होता है जिस दिन ब्रह्म पुराण अनुसार ब्रह्मा ने सृष्टि रचना की शुरुआत की थी। इस दिन को ही सतयुग का प्रारंभ, भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार, नवरात्र का आरंभ, भगवान् राम का राज्याभिषेक के, दिन के रुप में शिरोधार्य किया गया है।इसी दिन से रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है। 
ज्योतिषियों के अनुसार इसी दिन से चैत्री पंचांग का आरम्भ माना जाता है, क्योंकि चैत्र मास की पूर्णिमा का अंत चित्रा नक्षत्र में होने से इस चैत्र मास को नववर्ष का प्रथम दिन माना जाता है।रात्रि के अंधकार में नव संवत्सर का स्वागत नहीं होता। नया वर्ष सूर्य की पहली किरण का स्वागत करके मनाया जाता है। नववर्ष के ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से घर में सुगंधित वातावरण कर दिया जाता है। घर को ध्वज, पताका और तोरण से सजाया जाता है। शुभ कार्यों और नवीन योजनाओं का क्रियान्वयन होता है।प्रत्येक हिन्दू,विश्व कल्याण की भावना के आलोक में नव संवत्सर की बधाईयाँ प्रेषित करता है। हिन्दू नव संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, विक्रम संवत 2082 तदनुसार 30मार्च 2025 से प्रारंभ होगा। 
 
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