सांस्कृतिक परम्पराओं के चलते पूरे विश्व में अपना विशेष स्थान बनाता भारत
Date : 06-Jan-2025
आर्थिक क्षेत्र में प्रगति की दृष्टि से भारत की अपनी विशेषताएं हैं, जो अन्य देशों में नहीं दिखाई देती हैं। उदाहरण के लिए भारत में आयोजित होने वाले धार्मिक आयोजनों एवं मेलों आदि में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं द्वारा न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से इन मेलों/कार्यक्रमों में भाग लिया जाता है बल्कि इन श्रद्धालुओं द्वारा इन स्थानों पर किये जाने वाले खर्च से स्थानीय स्तर पर व्यापार को बढ़ावा देने एवं रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित करने में भी अपना योगदान दिया जाता है। इसी प्रकार, धार्मिक पर्यटन भी केवल भारत की विशेषता है। प्रतिवर्ष करोड़ों परिवार धार्मिक स्थलों पर, विशेष महुरतों पर, पूजा अर्चना करने के लिए इकट्ठा होते है। जम्मू में माता वैष्णोदेवी मंदिर, वाराणसी में भगवान भोलेनाथ मंदिर, अयोध्या में प्रभु श्रीराम मंदिर, उज्जैन में बाबा महाकाल मंदिर, दक्षिण में तिरुपति बालाजी मंदिर आदि ऐसे श्रद्धास्थल है जहां पूरे वर्ष भर ही श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। प्रत्येक 3 वर्षों के अंतराल पर आयोजित होने वाले कुम्भ के मेले में भी करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु ईश्वर की पूजा अर्चना हेतु प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक एवं उज्जैन में पहुंचते हैं। शीघ्र ही, 14 जनवरी 2025 से लेकर 26 फरवरी 2025 तक प्रयागराज में महाकुम्भ मेले का आयोजन किया जा रहा है। महाकुम्भ की 44 दिनों की इस इस पूरी अवधि में प्रतिदिन एक करोड़ श्रद्धालुओं के भारत एवं अन्य देशों से प्रयागराज पहुंचने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है, इस प्रकार, कुल मिलाकर लगभग 45 करोड़ से अधिक श्रद्धालुगण उक्त 44 दिनों की अवधि में प्रयागराज पहुंचेंगे। करोड़ों की संख्या में पहुंचने वाले इन श्रद्धालुगणों द्वारा इन तीर्थस्थलों पर अच्छी खासी मात्रा में खर्च भी किया जाता है। जिससे विशेष रूप से स्थानीय अर्थव्यवस्था को तो बल मिलता ही है, साथ ही करोड़ों की संख्या में देश में रोजगार के नए अवसर भी निर्मित होते हैं एवं होटल उद्योग, यातायात उद्योग, पर्यटन से जुड़े व्यवसाय, स्थानीय स्तर के छोटे छोटे उद्योग एवं विभिन्न उत्पादों के क्षेत्र में कार्य कर रहे व्यापारियों के व्यवसाय में भी अतुलनीय वृद्धि होती दिखाई देती है।
इसी प्रकार, भारत में विवाहों के मौसम में सम्पन्न होने वाले विवाहों पर किए जाने वाले भारी भरकम खर्च से भी भारतीय अर्थव्यवस्था को बल मिलता है। वर्ष 2024 के, मध्य नवम्बर से मध्य दिसम्बर के बीच, भारत में 50 लाख विवाह सम्पन्न हुए हैं। उक्त एक माह की अवधि के दौरान सम्पन्न हुए इन विवाहों पर भारतीय परिवारों द्वारा 7,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि का खर्च किया गया है। जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में सम्पन्न हुए विवाहों पर 5,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि का खर्च किया गया था। उक्त वर्णित 50 लाख विवाहों पर औसतन प्रति विवाह 14,000 डॉलर, अर्थात लगभग 13 लाख रुपए की राशि का खर्च किया गया है एवं 50,000 विवाहों पर तो एक करोड़ रुपए से अधिक की राशि का खर्च किया गया है। भारत में प्रति विवाह होने वाला औसत खर्च, परिवार की औसत प्रतिवर्ष की कुल आय का तीन गुणा एवं देश में औसत प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के 5 गुणा के बराबर रहता है। भारत में विवाहों पर पूरे वर्ष में कुल 13,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का खर्च किया जाता है जो चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। चीन में प्रतिवर्ष विवाहों पर 17,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर का खर्च किया जाता है। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि आगामी वर्ष में भारत, विवाहों पर किए जाने वाले खर्च की दृष्टि से, चीन को पीछे छोड़कर पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर आ जाएगा। भारत में प्रति वर्ष एक करोड़ विवाह सम्पन्न होते हैं। भारत में सर्दियों के मौसम को विवाहों का मौसम कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं हैं क्योंकि पूरे वर्ष भर में सम्पन्न होने वाले विवाहों में से लगभग 50 प्रतिशत विवाह सर्दियों के मौसम में ही सम्पन्न होते हैं।