मंदिर श्रृंखला:- 51 शक्ति पीठों में से एक देवी विशालाक्षी Date : 06-Jan-2025 भारत की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी पुरातत्व, पौराणिक कथाओं, भूगोल, कला और इतिहास का महत्वपूर्ण केंद्र है। हिंदुओं के सात पवित्र पुरियों में से एक काशी को मंदिरों एवं घाटों का नगर कहा जाता है। काशी, जिसे "महाश्मशान" भी कहा जाता है, भारत के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है और यहाँ के मंदिरों का विशेष धार्मिक महत्त्व है। ऐसा ही एक मंदिर है काशी विशालाक्षी मंदिर। जिसका वर्णन देवी पुराण में किया गया है। यह मंदिर देवी पार्वती के एक स्वरूप को समर्पित है। देवी के विशाल नेत्रों के कारण मंदिर का नाम "विशालाक्षी" पड़ा। लोगों की यह मान्यता है कि माँ अपने विशाल नेत्रों से विश्व को देखती है तथा अपने भक्तों की रक्षा करती है | यहां दान, जप और यज्ञ करने पर मुक्ति प्राप्त होती है। ऐसी मान्यता है कि यदि यहां 41 मंगलवार कुमकुम का प्रसाद चढ़ाते हैं तो इससे देवी मां प्रसन्न होती हैं और मनोकामना पूर्ण करती हैं | विशाल नेत्रों वाली मां विशालाक्षी का यह स्थान मां सती के 51 शक्ति पीठों में से एक है। इनका महत्व कांची की मां (कृपा दृष्टा) कामाक्षी और मदुरै की (मत्स्य नेत्री) मीनाक्षी के समान है। शास्त्रों के अनुसार काशी के कर्ताधर्ता बाबा विश्वनाथ मां विशालाक्षी के मंदिर में विश्राम करते हैं। स्कंद पुराण कथा के अनुसार जब ऋषि व्यास को वाराणसी में कोई भी भोजन अर्पण नहीं कर रहा था, तब विशालाक्षी एक गृहिणी की भूमिका में प्रकट हुईं और ऋषि व्यास को भोजन दिया। विशालाक्षी की भूमिका बिलकुल अन्नपूर्णा के समान है | काशी के नव शक्ति पीठों में मां विशालाक्षी का महत्वपूर्ण स्थान है। मीरघाट पर गलियों से होते हुए पहुंचने पर धर्मेश्वर महादेव के निकट ही मां विशालाक्षी का भव्य मंदिर स्थित है। मान्यता के अनुसार इस स्थान पर मां सती का कर्ण कुण्डल और उनकी आंख गिरी थी। जिससे इस स्थान की महिमा और महात्म्य दोनों काफी बढ़ गए। लोग यहां मां की उपस्थिति मानकर दर्शन-पूजन करने लगे। बाद में इस स्थान पर मंदिर का निर्माण किया गया। जिसमें मां की दिव्य प्रतिमा स्थापित है। मंदिर में मां विशालाक्षी की दो मूर्तियां हैं। सन् 1971 में अभिषेक कराते समय पुजारी की गलती से मां की मुख्य प्रतिमा की अंगुली खण्डित हो गयी थी। जिसके बाद खण्डित प्रतिमा के आगे मां की दूसरी प्रतिमा प्रतिष्ठापित की गई है।