18 जनवरी 1995 : स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और सुप्रसिद्ध वैदिक विद्वान सत्यप्रकाश सरस्वती का निधन | The Voice TV

Quote :

सपनों को हकीकत में बदलने से पहले, सपनों को देखना ज़रूरी है – डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम

Editor's Choice

18 जनवरी 1995 : स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और सुप्रसिद्ध वैदिक विद्वान सत्यप्रकाश सरस्वती का निधन

Date : 18-Jan-2025

 

हजार वर्षों तक लगातार आक्रमणों और विध्वंस के बीच भी यदि भारतीय संस्कृति संसार में प्रकाशित हो रहा है तो इसके पीछे कुछ ऐसे महापुरुषों के जीवन का समर्पण है जिन्होंने स्वाधीनता संग्राम के साथ भारत की सांस्कृतिक प्रतिष्ठापना में जीवन समर्पित कर दिया । स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती ऐसे ही विभूति थे जिनका पूरा जीवन राष्ट्र को समर्पित रहा । 
ऐसे अद्वितीय व्यक्तित्व के धनी स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती का जन्म 24 सितम्बर 1905 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर नगर में हुआ । पिता पंडित गंगा प्रसाद उपाध्याय बिजनौर राजकीय इंटर कॉलेज में अंग्रेजी के शिक्षक और आर्य समाज के सिद्धातों के प्रति समर्पित विद्वान थे । पिता बिजनौर जनपद के आर्य समाज भवन में ही रहते थे । आर्य समाज भवन में ही सत्यप्रकाश जी का जन्म हुआ। कुछ दिनों बाद ही पिता का स्थान्तरण होने पर परिवार प्रयागराज आ गया। सत्यप्रकाश जी शिक्षा प्रयागराज में हुई । 1921 में जब असहयोग आँदोलन आरंभ हुआ तब सत्यप्रकाश मैट्रिक में पढ़ रहे थे उन्होंने छात्रों की प्रभातफेरी निकाली जिस पर चेतावनी मिली । इसके बाद वे अपनी पढ़ाई में लग गये । प्रयागराज विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कक और 1930 में इसी विश्वविद्यालय में रसायन विभाग प्रवक्ता पद पर नियुक्ति हो गई । प्रवक्ता होने के बाद भी उन्होने अपना अध्ययन भी जारी रखा और 1932 में फीजिको कैमिकल  स्टेडीज आफँ इनओरगेनिक जेलीज विषय पर डी.एससी. की उपाधि प्राप्त की। 
वे अपने अध्यापन के दौरान छात्रों को भारत राष्ट्र के सांस्कृतिक मूल्यों और महत्व भी समझाते और वैज्ञानिकता के उदाहरण भी देते थे । उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आँदोलन में भाग लिया और  जेल भी गये । अपनी सेवाकाल में उनका अध्ययन, शोध और लेखन निरंतर रहा । उनके 150 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हुए, अनेक छात्रों के शोध मार्गदर्शक रहे ।1967 में सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्ति के बाद संन्यास लिया और देश भर की यात्रा की, व्याख्यान दिये । उन्होंने 17 देशों की यात्रा भी की और वहाँ भारतीय संस्कृति की वैज्ञानिकता तथा वेदों की महत्ता पर व्याख्यान दिये । भारतीय वाड्मय पर उनके द्वारा रचित महत्वपूर्ण ग्रंथ अद्भुत धरोहर हैं। उनके अधिकांश ग्रंथ विज्ञान, आध्यात्म और अंग्रेजी विषय पर हैं जिन पर अनेक भारतीय एवं विदेशी अध्येयताओं ने शोध किये । एक अध्यापक होने के नाते वे विद्यार्थियों की मनोवैज्ञानिक स्थिति और आवश्यकता का सहज अनुभव कर लेते थे। यही झलक उनके ग्रंथों में है । डॉ. सत्यप्रकाश एक ऐसे विरले विद्वान थे जिन्होंने प्राचीन भारतीय दर्शन की वैज्ञानिकता प्रमाणित की । उनका पूरा जीवन शोध अध्ययन और लेखन को समर्पित रहा । उनकी विज्ञान संबन्धी अनेक पुस्तकें विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में हैं। तथा संदर्भ के रूप में उद्धृत की जातीं हैं। दिसम्बर 1997 में विज्ञान नामक सुप्रसिद्ध हिन्दी पत्रिका ने 'डॉ सत्यप्रकाश विशेषांक' के रूप में प्रकाशित किया । फाउंडर ऑफ साइंसेस इन एंसिएंट इंडिया, कवांइस ऑफ एंसिएंट इंडिया, एडवांस केमिस्ट्री ऑफ रेयर एलीमेंट जैसी विज्ञान पुस्तकों के साथ उन्होंने वेदों का 26 खंडों में अंग्रेजी अनुवाद किया । इसके अतिरिक्त शतपथ ब्राह्मण की भूमिका, उपनिषदों की व्याख्या, योगभाष्य आदि साहित्य रचना की। शुल्बसूत्र, ब्राह्मण ग्रन्थ, उपनिषद्, अग्निहोत्र, अध्यात्म, धर्म, दर्शन, योग, आर्यसमाज, स्वामी दयानन्द, नवजागरण आदि विविध विषयों पर ग्रन्थ और सैकड़ों लेख लिखे । शतपथ ब्राह्मण की व्याख्या तो 700 पृष्ठों की है । उनके द्वारा रचित ऋग्वेद संहिता तेरह भागों में है । इसके अतिरिक्त वैज्ञानिक परिव्राजक, प्राचीन भारत के वैज्ञानिक कर्णधार, आर्यसमाज का मौलिक आधार जैसे उनके प्रमुख ग्रंथ हैं। 1983 में तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन में सम्मानित किया गया । वे अपने संन्यास संकल्प के प्रति कितने समर्पित थे इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब पुत्र के निधन का समाचार मिला तब भी बिना विचलित हुये अपने काम में लगे रहे । 
जीवन का अंतिम समय स्वामीजी के अमेठी निवासी अपने शिष्य दीनानाथ सिंह के परिवार के साथ बिताये । तब उनकी वृद्धावस्था ने उनके शरीर को अत्यंत क्षीण कर दिया था । रूग्णावस्था में दीनानाथ परिवार ने ही सेवा सुश्रुषा की। अंततः 90 वर्ष की आयु में 18 जनवरी 1995 को  स्वामीजी नश्वर देह त्यागकर अनन्त यात्रा पर निकल गए । वे भले संसार में नहीं हैं।  पर उनकी स्मृतियाँ और साहित्य समाज की अमूल्य पूंजी है ।
 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload










Advertisement