18 जनवरी 1995 : स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और सुप्रसिद्ध वैदिक विद्वान सत्यप्रकाश सरस्वती का निधन | The Voice TV
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18 जनवरी 1995 : स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और सुप्रसिद्ध वैदिक विद्वान सत्यप्रकाश सरस्वती का निधन
Date : 18-Jan-2025
वे अपने अध्यापन के दौरान छात्रों को भारत राष्ट्र के सांस्कृतिक मूल्यों और महत्व भी समझाते और वैज्ञानिकता के उदाहरण भी देते थे । उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आँदोलन में भाग लिया और जेल भी गये । अपनी सेवाकाल में उनका अध्ययन, शोध और लेखन निरंतर रहा । उनके 150 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हुए, अनेक छात्रों के शोध मार्गदर्शक रहे ।1967 में सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्ति के बाद संन्यास लिया और देश भर की यात्रा की, व्याख्यान दिये । उन्होंने 17 देशों की यात्रा भी की और वहाँ भारतीय संस्कृति की वैज्ञानिकता तथा वेदों की महत्ता पर व्याख्यान दिये । भारतीय वाड्मय पर उनके द्वारा रचित महत्वपूर्ण ग्रंथ अद्भुत धरोहर हैं। उनके अधिकांश ग्रंथ विज्ञान, आध्यात्म और अंग्रेजी विषय पर हैं जिन पर अनेक भारतीय एवं विदेशी अध्येयताओं ने शोध किये । एक अध्यापक होने के नाते वे विद्यार्थियों की मनोवैज्ञानिक स्थिति और आवश्यकता का सहज अनुभव कर लेते थे। यही झलक उनके ग्रंथों में है । डॉ. सत्यप्रकाश एक ऐसे विरले विद्वान थे जिन्होंने प्राचीन भारतीय दर्शन की वैज्ञानिकता प्रमाणित की । उनका पूरा जीवन शोध अध्ययन और लेखन को समर्पित रहा । उनकी विज्ञान संबन्धी अनेक पुस्तकें विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में हैं। तथा संदर्भ के रूप में उद्धृत की जातीं हैं। दिसम्बर 1997 में विज्ञान नामक सुप्रसिद्ध हिन्दी पत्रिका ने 'डॉ सत्यप्रकाश विशेषांक' के रूप में प्रकाशित किया । फाउंडर ऑफ साइंसेस इन एंसिएंट इंडिया, कवांइस ऑफ एंसिएंट इंडिया, एडवांस केमिस्ट्री ऑफ रेयर एलीमेंट जैसी विज्ञान पुस्तकों के साथ उन्होंने वेदों का 26 खंडों में अंग्रेजी अनुवाद किया । इसके अतिरिक्त शतपथ ब्राह्मण की भूमिका, उपनिषदों की व्याख्या, योगभाष्य आदि साहित्य रचना की। शुल्बसूत्र, ब्राह्मण ग्रन्थ, उपनिषद्, अग्निहोत्र, अध्यात्म, धर्म, दर्शन, योग, आर्यसमाज, स्वामी दयानन्द, नवजागरण आदि विविध विषयों पर ग्रन्थ और सैकड़ों लेख लिखे । शतपथ ब्राह्मण की व्याख्या तो 700 पृष्ठों की है । उनके द्वारा रचित ऋग्वेद संहिता तेरह भागों में है । इसके अतिरिक्त वैज्ञानिक परिव्राजक, प्राचीन भारत के वैज्ञानिक कर्णधार, आर्यसमाज का मौलिक आधार जैसे उनके प्रमुख ग्रंथ हैं। 1983 में तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन में सम्मानित किया गया । वे अपने संन्यास संकल्प के प्रति कितने समर्पित थे इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब पुत्र के निधन का समाचार मिला तब भी बिना विचलित हुये अपने काम में लगे रहे ।
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