स्वाधीन भारत की सुरक्षा के लिये नेताजी सेना के तीनो अंगों, थल सेना, जल सेना और नभ सेना का आधुनिक ढंग से निर्माण और विकास करना चाहते थे। जब वे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दूसरी बार जर्मनी गये थे तब नेताजी ने यूरोप के कई देशों का दौरा करके आधुनिक युद्ध प्रणाली का गहराई के साथ अध्ययन किया, इतना ही नही उन्होने जर्मनी मे युद्ध बंदियों और स्वतंत्र नागरिको की जो आजाद हिंद फौज बनाई, उसे पूर्ण रूप से आधुनिक अस्त्र-शस्त्रो से सुसज्जित किया और उसे इस प्रकार का प्रशिक्षण दिलाया कि वह संसार की सर्व शक्तिमान सेनाओं के समकक्ष मानी जाने लगी। आजाद हिंद फौज दुनिया के फौजी इतिहास का एक सफल अध्याय बन गया।
ब्रिटिश शासन काल मे भारत के तात्कालिक राजनैतिक नेतृत्व के पास भारत के आर्थिक विकास, सामाजिक एवं सांस्कृतिक ताने बाने के सम्बंध में अपनी कोई दूरदृष्टि नहीं थी। येन केन प्रकारेण केवल राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त करना एकमेव लक्ष्य था। ऐसे समय में भारत में देश का शासनतंत्र ब्रिटिशों के हाथों में था। अंग्रेजी शासकों की इच्छा अनुसार ही भारत में शासन चलता था। इसलिये, तत्कालीन ब्रिटिश शासकों की राजनीति की पृष्ठभूमि का उद्देश्य एक ही था कि भारत का अधिक से अधिक शोषण किया जाये एवं भारत की जनता को गुलाम बनाकर, अज्ञानता के अंधेरे मे रखकर, अधिक से अधिक समय तक अपना अधिकार जमाकर रखा जाए। ताकि, भारत सदा सदा के लिये गुलामी की जंजीरो मे जकडा रहे, स्वतंत्र होने का विचार भी न कर सके। परंतु, ऐसी मनोवृत्ती होने के उपरांत भी ब्रिटिशों को भारत से खदेड़ दिया गया। परंतु ब्रिटिश शासकों ने कूटनीतिक चाल चलते हुए भारत का विभाजन हिंदुस्तान एवं पाकिस्तान के रूप में कर दिया। पंडित जवाहरलाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना के हाथों मे राजनीति की डोर आ गई। नेताजी के क्रांतिकारी विचारों एवं दूरदृष्टि का उपयोग लगभग नहीं के बराबर ही हो पाया था। जबकि नेताजी के विचारों में दूरदर्शिता थी एवं उनकी भारत के बारे में सोच बहुत ऊंची थी। नेताजी ने भारत के भविष्य के बारे में बहुत उल्लेखनीय योजनाओं पर अपने विचार विकसित कर लिए थे एवं आगे आने वाले समय के लिए इस संदर्भ में योजनाएं भी बना ली थी।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व भारत मे जगह-जगह पर अनेक छोटी छोटी रियासतें थी। सभी राजे महाराजे अपनी राज्य सीमा के अंदर राज्य चलाना और कमजोर राज्यों पर आक्रमण करके उसे अपने राज्य में मिला लेना ही श्रेयस्कर कार्य मानते थे। राज्य का विस्तार करना, यही राजतंत्र की शासन प्रणाली थी, पूरा भारत इसी प्रणाली का अभ्यस्त था, प्रजातंत्र की जानकारी भारतीयों के पास नहीं थी। अतः प्रजातंत्र का विषय भारतीयों के लिए नया था। अंग्रेजों के शासन काल में ऐसा आभास दिया गया था कि भारत में प्रजातंत्र अंग्रेजों की देन है। अंग्रेज ठहरे कूटनीतिज्ञ और स्वार्थी वे भारत को स्वतंत्र करना चाहते ही नही थे। इसीलिये भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति पर, ब्रिटिश, भारतीय सत्ताधारियो को प्रजातंत्र में कूटनीति से कैसे राज्य करना, लोभ, छलावा और स्वार्थ का पाठ पढ़ाकर, भारत का विभाजन कर, प्रजातंत्र की राजनीति सिखाकर ही भारत से गये थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात दुर्भाग्य से भारत का राजनैतिक नेतृत्व नेताजी जैसे राष्ट्रवादी ताकतों के स्थान पर ऐसे लोगों के हाथों में आया जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा चलायी जा रही नीतियों का अनुसरण करना ही उचित समझा। भारतीय सनातन संस्कृति के अनुपालन को बढ़ावा ही नहीं दिया गया जबकि उस समय भी भारत में हिंदू बहुसंख्यक थे। प्रजातंत्र के नाम पर अल्पसंख्यकों के हितों को सुरक्षित रखने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई।
अंडमान एक स्वतंत्र द्वीप समूह था इसका इतिहास भी बहुत लंबा है। अभी अभी मोदी सरकार ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह का नाम बदलकर श्री विजय पुरम रख दिया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय अंडमान द्वीप भारत के ही हिस्से मे आये थे और अंडमान द्वीप पर भारत का अधिपत्य हो यह स्वीकार करने की नेहरू की बिलकुल इच्छा नही थी। परन्तु, सरदार वल्लभभाई पटेल ने जिद ठान ली थी कि अंडमान चूंकि भारतीय शहीदों पर हुए जुल्मो का प्रतीक है इसलिये स्वाधीनता सेनानियों को, हिंदू राष्ट् को ही अंडमान मिलना चाहिये। पटेल की जिद के कारण ही अंडमान भारत के हिस्से मे आया। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये जितने भी स्वाधीनता संग्राम सेनानी अंग्रेजों के हाथ लगते थे उन सबको भारत की पावन भूमि से कोसों दूर समुद्र के बीच टापू पर स्थित अंडमान मे अंग्रेजो द्वारा सेल्यूलर जेल का निर्माण करके हजारो क्रांतीवीरो को कालकोठरी मे रखा जाता था। इस पुण्य भूमि को सर्वप्रथम नेताजी ने मुक्त कराया था।
वर्ष 1938 में ही भारत मे योजना समिति का गठन कर पुनर्निमाण सम्बंधी योजनाओं को क्रियान्वित करने का कार्य प्रारंभ कर दिया गया था। केवल भारत मे ही नही बल्कि भारत से बाहर, जर्मनी मे भी योजना आयोग की स्थापना करके भारत के पुनर्निर्माण के लिये योग्य व्यक्तियों को प्रशिक्षण देना प्रारंभ कर दिया गया था। प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये एक विद्यालय की स्थापना भी की गई थी। इस प्रकार, नेताजी ने परिश्रमी, कर्मठ, ईमानदार तथा अनुभवी व्यक्तियों का एक अच्छा खासा दल तैयार कर लिया था, लेकिन तत्कालीन भारतीय प्रशासन द्वारा स्वाधीन भारत में प्रशासन के लिये इन प्रशिक्षित व्यक्तियों का कोई उपयोग नही किया गया। भारत के नागरिक प्रशासन की जो तस्वीर नेताजी ने बनाई थी, यदि उसमे रंग भर दिए जाते तो आज भारत की तस्वीर ही कुछ और होती।
लेखक:- प्रहलाद सबनानी