भारत विश्व का सनातन व पुरातन राष्ट्र है। भारतीय संस्कृति विश्व की प्रथम संस्कृति है तभी तो वेद कहता है- "सा प्रथमा संस्कृति विश्वारा:" भारतीय संस्कृति में मूल्यो की शास्वत्ता है। तभी तो भारतीय संस्कृति कालजई, आध्यात्मिक ,वैश्विक Global culture रही है। भारतीय संस्कृति में संपूर्ण विश्व को परिवार ग्लोबल फैमिली "वसुधैव कुटुंबकम " की अवधारणा है । भारतीय संस्कृति त्यागमयी ,योगमयी, ज्ञानमयी सामाषिक संस्कृति है। तभी तो इसका उद्घोष " त्येन त्यक्तेन भुन्जिथ:" है । यह "मातृवत पर्दारेसू पर दृव्यसु लोष्टवत" की दिव्य भावना से उत्प्रोत है। भारतीय संस्कृति का चिंतन सामग्र, संतुलित, आशावादी ,सकारात्मक, तत्वनिष्ठ है। इसमें भोग की नहीं योग की प्रधानता है। यह साम्यवादी नहीं समन्वयवादी संस्कृति है। यह गंगा की तरह पवित्र/ निर्मल व पारस की तरह गुणवान है। यह कल्पवृक्ष की तरह से सर्व मनोकामना फल प्रदायनी है । यहां अंगुलीमाल भी आया तो भिक्षु बनकर गया। यहां पर पतितों को भगवान बनाने का कार्य किया जाता है। यहां जो जीवन का उद्देश्य भूल गए हैं उनको इंसान, महामानव बनाया जाता है। भारतीय संस्कृति की इसी दिव्य्ता- श्रेष्ठता, ऋजुता के कारण इसे 'आर्य', 'देव ' संस्कृति पुकारा गया है। यह अनादि, अनुपम ,अतुल्य ,अखंड, सनातन है। यह ईश्वर प्रदत्त- देव निर्मित संस्कृति है। इस सनातन संस्कृति से प्राचीन काल में संपूर्ण विश्व सरावोर/ ओत-प्रोत रहा है तभी तो शोध ,अनुसंधान Research में संपूर्ण विश्व में सनातन संस्कृति के अवशेष/ साक्ष्य प्राप्त हो रहे हैं।
भारत का विचार विराट है, दिव्य है, वैश्विक Global है । इसमें शंकुचन का लेस मात्र भी स्थान नहीं है। यहां विविधता के साथ समन्वय व सम्मान है। यहां विविधता के बाद भी एक आंतरिक एकता Internal Integration है। तभी तो यहां अनेक त्यौहार ,पर्व ,उत्सव ,बोलीयां, फल ,पकवान ,फसले ,परंपराएं, प्रथाएं, भाषाये , कहावतें ,रंग- रूप, रीति- रिवाज होते हुए भी एक समन्वय ,संतुलन, आंतरिक एकता है अर्थात एक तत्व 'धर्म' ईश्वर विश्वास ,संस्कृति -संस्कार सबको एक सूत्र में आबद्ध किए हुए है। सबकी तत्व दृष्टि एक है,जो कण -कण में एक ही तत्व -परमात्मा ,चेतना का साक्षात्कार करती है । इसका मानना है की संपूर्ण चराचर में एक ब्रह्म, दिव्य चेतना Divine Energy व्याप्त है, दूसरा तो जगत में कुछ है ही नहीं ।
" ईशावास्य मिद्ं सर्व्ं "
सारे जग में नूर एक है ।
सच पूछो तो इस दुनिया का ,
हाकिम और, हुजूर एक है ।। "
भारतीय ऋषियों ने इस सनातन सत्य का साक्षात्कार करोडों-असन्ख्यो वर्ष पूर्व ही कर लिया था। भारतवर्ष के ऋषियों ने अपने शरीर को यंत्र बनाकर व संपूर्ण ब्रह्मांड को प्रयोगशाला Laboratory बनाकर आत्मा- परमात्मा पर शोध Research किया था एवं जीव- जीवन -जगत के रहस्यों को जान लिया था। संसार में कोई भी पदार्थ /वस्तु भारतीयों के लिए दुर्लभ, अप्राप्त नहीं रहा है । संपूर्ण ब्रह्मांड को हमने जान लिया था । संपूर्ण भारतीय आर्ष वान्ड़मय इसी सत्य की व्याख्या -विस्तार करता है, तभी अलबरूनी (11वीं सदी) के अरबी यात्री /लेखक अपने ग्रंथ 'तहकीक -ए -हिंद' में लिखता है -
"कहने -सुनने में तो आश्चर्य व असत्य ही जान पड़ता है; किंतु यह सत्य है कि भारतीयों के पास एक ऐसी विधा है, जिससे वह मृत हुए व्यक्ति को भी जीवित कर सकते हैं।"
भारतीयता से प्रभावित होकर एक विदेशी विद्वान मार्क ट्वेन लिखता है कि- " भारत उपासना पंथो की भूमि ,मानव जाति का पालन ,भाषा की जन्मस्थली ,इतिहास की माता ,पुराणौ की दादी,परंपराओं की परदादी है। मनुष्य के इतिहास में जो भी मूल्यवान एवं सृजनशील सामग्री है, उसका भंडार अकेले भारत में है।"
वर्तमान समय परिवर्तन का समय है । इसमें चुनौतियां- समस्याएं , विभिष्काये अनेक हैं। वर्तमान भारत में सृजन व ध्वंस साथ-साथ चल रहा है । एक तरफ सर्जनात्मक गति विधियां हैं तो वहीं दूसरी तरफ असुरता, अवांछनियता ,देश विरोधी शक्तियों की उदंडता ,वैमनस्य ,अलगाववाद, क्षेत्रवाद, माओवाद, हिंसा है। एक और सृजन का संकल्प है तो दूसरी ओर छल -प्रपंच व भारत को बदनाम करने की साजिश भी है। एक तरफ राष्ट्रवाद, विकास है तो दूसरी ओर असुरता का तांडव ,छल- कपट, धूर्तता है अर्थात अंधकार के बीच प्रकाश के कण भी हैं । एक तरफ राष्ट्र के प्रधान सेवक का अजेय संकल्प/ दिग्विजयी भारत का उद्घोष है,सिंह पराक्रम,निडरता धर्मनिष्ठा ,कर्तव्यनिस्ठा 2047 के स्वर्णिम भारत का संकल्प है। प्रधानसेवक अपने अजेय संकल्प के साथ विकट /भीषण झंझावांतों को चीरते हुए सृजन पथ पर दुधुर्ष गति से आगे बढ़ रहा है । भारत पर वैश्विक शक्तियों के कूटनीतिक षड्यंत्र व दबाव भी अनेक है किंतु सिंह आत्मविश्वास से भरा हुआ, अपनी चाल में मस्त होकर चल रहा है। भारत निरंतर विकास के पथ पर तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है ,बाधाओ को चीर कर ।
2047 के भारत की चुनौतियां ( समस्याएँ)
1. देश की आंतरिक चुनौतियों में भाषावाद ,जातिवाद ,क्षेत्रवाद, पंतवाद ,संप्रदायवाद से निपटना है।
2. विदेशी शक्तियों द्वारा प्रायोजित माओवाद, नक्सलवाद, आतंकवादी हिंसा एक बड़ी चुनौती है।
3. पूर्वोत्तर के राज्यों मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा ,असम ,नागालैंड ,अरुणाचल प्रदेश में विदेशी ताकतों के गिरोह लगभग 12 की संख्या में CNN , NSCN ,BORDO , ULFA इत्यादि सक्रिय है। जो इन राज्यों को हिंसा, धर्मांतरण, नशा,अलगाव इत्यादि के प्रयत्नो द्वारा भारत से अलग करना चाहते हैं। जो की एक बहुत बड़ी चुनौती है।
4. अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली /मैकाले के षड्यंत्र से बाहर निकलना है। व अपनी भाषा, संस्कृति, स्वदेशी को बढ़ावा देते हुए, हमें अपनी विरासत/ जड़ों से जुड़ना है, जो बड़ी चुनौती है।
5. अंग्रेजीयत /पश्चिमी संस्कृति की वू अभी वांकी है। हम आजादी के 75 वर्ष पश्चात भी अंग्रेजीयत से मुक्त नहीं हो पाए हैं। 1947 में हम स्वतंत्र तो हुए किंतु 2025 में भी हम स्वाधीन नहीं हुए हैं। हमारे जीवन शैली ,खान-पान ,भाषा -व्यवहार, चिंतन, संविधान ,पाठ्यक्रम में अभी अंग्रेजीयत -पश्चिमी संस्कृति Western culture भरी हुई है ,जो की एक महत्वपूर्ण चुनौती है।
6. वर्तमान में लागू 'आरक्षण' व्यवस्था आत्म निर्भर भारत के मार्ग में एक बड़ी बाधा है । इससे योग्य/ प्रतिभाओं को नौकरी, पदों, कार्यक्षेत्र में अवसर प्राप्त नहीं हो पता है। प्रतिभा पलायन, प्रतिभा का अवमूल्यन ,प्रतिभाओं का विनाश- राष्ट्र का विनाश ही है। अमेरिका में नौकरी टैलेंट /योग्यता /पात्रता देखकर मिलती है किंतु भारत में जाति देखकर अथवा जातिगत आरक्षण के बल पर अत: अमेरिका आज भी 'वर्ल्ड पावर ' बना हुआ है। भारतीय समाज में सभी विद्यार्थियों, प्रतिभागियों, प्रतिभाओं को समान अवसर प्राप्त नहीं हो पा रहा है। अतः 2047 के विकसित भारत के मार्ग में आरक्षण बड़ी चुनौती है...।
7. ईसाई धर्मांतरण भारत के अस्तित्व को बड़ा खतरा है। निरंतर ईसाई मिशनरियां हमारे भारतीय समाज का धर्मांतरण/ राष्ट्रान्तरण कर रही हैं। भारत मिटता, सिकुड़ता जा रहा है।
8. मुस्लिम जिहादी (100 से अधिक प्रकार लव /लैंड जिहाद, बक्फ़ बोर्ड के माध्यम से भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाने में बड़ी तीव्र गति से लगे हुए हैं। उदाहरण कश्मीर फाइल्स, केरला फाइल्स हैं। जिहाद भारत के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है । वर्तमान भारत की यह सबसे बड़ी समस्या है।
9. नशाखोरी समाज को घुन की तरह नष्ट करने में लगा हुआ है। आज व्यक्ति, कल परिवार ,परसों राष्ट्र की मौत है अतः यह बड़ी चुनौती है।
10. भ्रष्टाचार ,बेईमानी ,रिश्वतखोरी, अकर्मण्यता भी देश के विकास में बड़ी समस्याएं हैं।
11. दिशा विहीन, संस्कार विहीन ,लक्ष्य विहीन पश्चिमीकरण से ग्रस्त राष्ट्र की युवा शक्ति देश के विकास में बड़ी बाधा है क्योंकि "सच्चरित्र युवा ही सशक्त राष्ट्र का निर्माण करते हैं।" युवाओं के कंधे पर ही राष्ट्र का भविष्य निर्भर करता है। अतः दिगभ्रमित युवाशक्ति को सही मार्ग पर लाना एक बड़ी चुनौती है।
12. देश की बॉर्डर के शत्रु पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश भी भारत के विकास मार्ग की बड़ी बाधा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें बहुत हद तक नियंत्रित कर रखा है किंतु भविष्य की बड़ी चुनौती /समस्या है।
13. महिला सशक्तिकरण- नारी जागरण एक बड़ी चुनौती है।
14. आत्म विस्मृति, असंगठित समाज, राष्ट्रवाद का अभाव, क्षुद्र मानसिकता भी विजन 2047 के मार्ग में बड़ी चुनौती हैं ।
15. 5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठिये जो भारत में घुस कर संपूर्ण देश में फैल चुके हैं,उन्हें भारत से निकालना एक बहुत बड़ी चुनौती है।
प्रधान सेवक की आंखों मे 2047 के विकसित भारत -दिग्विजयी भारत,विश्वगुरु World Power बनाने का स्वर्णिम स्वप्न- संकल्प है। इस पुनीत कार्य हेतु प्रधान सेवक निरंतर प्रतिदिन 16 घंटे कार्य कर रहे हैं "ना खाऊंगा न खाने दूंगा" की नीति पर चल रहे हैं । प्रत्येक 15 दिन में एक विदेशी प्रवास करते हैं। 76साल की उम्र के बुजुर्ग होकर भी प्रधानमंत्री सैनिकों के साथ दीपावली व बाढ़ पीड़ितों के साथ अपना जन्मदिन मनाते हैं । प्रधान सेवक के अंदर विश्व नेतृत्व कर्ता/ वैश्विक नेतृत्व के सभी गुण /योग्यताएं हैं । उनका चिंतन ,विजन विराट है। उनकी नीति- नीयत सभी कुछ पारदर्शी व परोपकारी होकर कल्याण /विश्व कल्याणकारी है। भारत के विजन 2047 हेतु माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने 'पंच प्रण' का संकल्प/ विजन लिया है-
1. देश को विकसित राष्ट्र बनाना
2. गुलामी की मानसिकता से मुक्ति
3. विरासत पर गर्व
4. नागरिक कर्तव्य पालन
5. सामूहिक रूप से पालन करना
वर्तमान का भारत अपनी आंतरिक -वाह्य चुनौतियों पर बड़ी तेजी से नियंत्रण ,समाधान स्थापित कर रहा है । भारत का आंतरिक व वैश्विक विकास बड़ी तीव्र गति से होता चला जा रहा है। भारत की साख /वर्चस्व वैश्विक पटल पर एक महाशक्ति के रूप में बनती चली जा रही है। पिछली वैश्विक शक्तियां आज के आत्मनिर्भर होते भारत का सम्मान बड़े तहेदिल से ,पलक पाउड़े, रेट कॉर्पोरेट विछाकर करती हैं। त्रिनिदाद टोबेगो के राष्ट्रपति ने तो प्रधानमंत्री मोदी जी के चरण तक स्पर्श किए। इंग्लैंड की महारानी ने तो योगगुरू स्वामी रामदेव जी के चरण प्रक्षालन किये । यह सब भारत का सम्मान है, भारत के बढ़ते वर्चस्व का प्रतीक है। आज भारत वैश्विक स्तर पर पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। भारत की सेना वर्ल्ड लेवल में 4th रैंकिंग पर आ चुकी है। आज भारत विश्व को निर्यातक /एक्सपोर्टर कंट्री बन चुका है। भारत का विजन ही नहीं ,कर्तत्व भी आत्मनिर्भर बनने का है। भारत अपने मूल्य -सिद्धांतों से चलता है "ना किसी को छेड़ता है न छोड़ता है।" पीएम मोदी की यही नीति निष्ठा ,सिद्धांत, विजन/ संकल्प ही तो अजेय भारत की नींव डाल रहे हैं । आज का भारत प्रगति पथ पर निरंतर गतिशील है किंतु इस कार्य में प्रत्येक देशवासी की भागीदारी /योगदान होना परम आवश्यक है। क्योंकि देश, देश के कर्तव्य परायण नागरिकों के त्याग, बलिदान से बनता है। प्रत्येक नागरिक का नैतिक चरित्र ही एक राष्ट्र के राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करता है। एक-एक ईंट से विशाल भवन का निर्माण होता है। प्रत्येक नागरिक/ देशवासी एक ईंट के ही समान है । अतः प्रत्येक ईंट मजबूत होना आवश्यक है।
किसी राष्ट्र के निर्माण उत्थान में नैतिक मूल्यों का बहुत बड़ा योगदान हुआ करता है; क्योंकि नैतिक मूल्यों से देशवासियों नागरिकों का निर्माण होता है ,ठीक वैसे ही जैसे पकी हुई ईटों से मजबूत भवन का निर्माण होता है। उसके विपरीत कच्ची ईंटों से बना हुआ भवन कमजोर होता है व भर -भराकर कभी भी गिर सकता है। नैतिक मूल्य ही सच्चरित्र, देशभक्त ,कर्तव्य परायण नागरिकों का निर्माण करते हैं क्योंकि मूल्य तो व्यक्तित्व का आधार /बेस, संस्कार होते हैं, इन्ही पर जीवन रूपी भवन खड़ा( निर्मित) होता है। जितने इतिहास के महापुरुष हुए हैं ,उनके निर्माण का आधार भी श्रेष्ठ जीवन मूल्य ही रहे हैं।
आजादी के पश्चात वर्षों तक भारतीय शिक्षा प्रणाली में मूल्य का अभाव देखा गया है। इन मानवीय, नैतिक, आध्यात्मिक मूल्यों के अभाव के कारण विद्यार्थी ,युवा स्वार्थी, निठल्ले ,संकुचित मन: स्थिति, राष्ट्रभक्ति, कर्तव्य परायण्ता,
परोपकार, त्याग, संवेदना हीन देखा जाता रहा है। परिणामत: वह भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, बेईमानी, कालाबाजारी, अनैतिक आचरण करते पाया जाता है। क्योंकि व्यक्ति का नैतिक चरित्र ही राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करता है। आज देश व समाज की दुर्दशा के पीछे मूल कारक/ तत्व नैतिक मूल्यों का अभाव ही है । इन्हीं मानवीय मूल्य के अभाव में समाज में अशांति, हिंसा ,अपराध, नशाखोरी, बेईमानी, दुराचार के रूप में देखा जा सकता है। वृक्ष को हरा भरा करने हेतु उसकी जड़ पर खाद पानी दिया जाता है न की डाल पेड़ की टहनियों पर । वैसे ही राष्ट्र उत्थान -समाज उत्थान हेतु समस्या की जड़ पर प्रहार करना होगा अर्थात शिक्षा प्रणाली में बदलाव करना होगा। अब हमें पुरातन -सनातन "वैदिक शिक्षा पद्धति"- गुरुकुल शिक्षा पद्धति की ओर पुन: लौटना पड़ेगा । हमें अपनी प्राचीन विरासत अर्थात जड़ों की ओर वापस लौटना पड़ेगा। स्वामी दयानंद सरस्वती का कथन - " Back to the Vedas " के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है। इसी पद्धति से निर्मित हुए शिष्यों के व्यक्तित्व / कर्तत्व से भारत 'जगतगुरु' - "सोने की चिड़िया" हुआ करता था। विश्व में भारतीयों को 'भूसुर ' अर्थात धरती का देवता शब्द से संबोधित किया जाता था। हमें पुन: वही अधिष्ठान 2047 में प्राप्त करना है। स्वामी विवेकानंद का कथन है कि- " शिक्षा वास्तविक वही है जो मनुष्य के अंदर के दिव्यत्व को प्रकट करें।"
विजन 2047 को प्राप्त करने हेतु हमें समाज को "भारतीय ज्ञान परंपरा" से जोड़ने की आवश्यकता है। अर्थात Value based education system " मूल्य आधारित शिक्षण प्रणाली" को अपनाना होगा न कि पश्चिम का अंधानुकरण करना चाहिए। पश्चिम के अंधानुकरण में हमने पाया कम व गवाया ही अधिक है।
इसी संदर्भ में युगदृस्टा- वेदमूर्ति पं. श्रीराम शर्मा आचार्य का कथन है कि - " समाज परिवर्तन, युग परिवर्तन का तात्पर्य यही है कि उच्च स्तरीय प्रतिभाएं उभरें और उज्जवल भविष्य की संरचना में अपना पुरुषार्थ लगाये। मनुष्य में देवत्व का उदय इसी को कहा जाएगा। संसार का गौरव, भविष्य ,श्रेष्ठ व्यक्तियों, महामानवो पर अवलंबित है, वह जितने बढ़ेंगे उसी अनुपात में संसार में सुखद परिस्थितियां बन पड़ेगी, बे जितने घटेंगे उतनी ही दुखद ,दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियाँ उत्पन्न होगी और दुर्घटनाएं घटेंगी।"
विकसित भारत 2047 का लक्ष्य प्राप्त करने हेतु भारत में नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा करनी होगी अतः शिक्षा व्यवस्था में मूल्य आधारित शिक्षण व्यवस्था/पाठ्यक्रम स्थापित करना होगा। इस हेतु समाज व देश के बुद्धिजीवी, राष्ट्रभक्त नागरिकों, राष्ट्र नायकों का यही युगधर्म-राष्ट्रधर्म है कि वह आधार ,जड़- बेस को ठीक करें, ताकि वांकी सब ठीक होता चला जाए। भारत के प्राचीन तत्वदृस्टा ऋषियों ने इसी मुख्य बात पर ध्यान- जोर दिया था। देश के वर्तमान प्रधानसेवक NEP 2020 के द्वारा इसी बात का आगाज कर रहे हैं। वह एक तरफ से संपूर्ण व्यवस्था में ही आमूल- चूल परिवर्तन कर रहे हैं। इस हेतु 'पंच प्रण' का देश में आवाहन किया गया है ताकि राष्ट्र/ भारत का कायाकल्प हो सके। वह विगत 75 वर्षों की समस्याओं के समाधान की प्राप्ति हो सके ,मनुष्य में देवत्व का उदय व धरती पर स्वर्ग के अवतरण " अर्थात मानवता के उज्जवल भविष्या हेतू यथोचित प्रयत्न किये जा रहे हैं; क्योंकि चरित्रवान व्यक्ति ही किसी राष्ट्र की वास्तविक संपदा होता है।
आज फिर संपूर्ण विश्व भारत की ओर आशा भरी नजर से देख रहा है। इस आशा में की भारत ही विश्व को विनाश के मार्ग से हटाकर सृजन के पथ पर/ उज्जवल भविष्य के पथ पर ले जाएगा। आज विश्व में भारत ही एकमात्र आशा की किरण दिखाई दे रहा है। विश्व का केंद्र /मानवता का मार्गदर्शक एकमात्र भारत ही है। अत: भारत को अपने लिए नहीं विश्व के कल्याण हेतु महान, आत्मनिर्भर, दिग्विजय, महाशक्ति बना है और इस दिशा में भारत अग्रसर भी है । युगदृष्टा महर्षि अरविंद का कथन है कि-
" भारतवर्ष दूसरे देशों की तरह अपने लिए ही या मजबूत होकर दूसरों को कुचलने के लिए नहीं उठ रहा है। वह उठ रहा है सारे संसार पर वह सनातन ज्योति बिखेरने के लिए, जो उसे सौंपी गई है। भारत का जीवन सदा ही मानव जाति के लिए रहा है, उसे अपने लिए नहीं बल्कि मानव जाति के लिए महान होना है।"
जिस दिन सोया राष्ट्र जगेगा ,
दिस-दिस फैला तमश हटेगा ।
भारत विश्व बंधु का गायक,
भारत मानवता का नायक ।
सदियों से है सदा रहेगा ।।
बात हमारी विश्व सुनेगा ,
दिस -दिस फैला तमश हटेगा.....
विजन इंडिया 2047 के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु हम सभी देशवासियों को अपने प्रधान सेवक के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना होगा। जो देशभक्ति ,राष्ट्र विरोधी तत्व हैं ,उन्हें पहचान कर उनके मंसूवो को असफल करना होगा। देश में नैतिकता, राष्ट्रवाद ,सृजनात्मकता, स्वदेशी, राष्ट्रभक्ति बढ़े इस हेतु सभी प्रकार के प्रयत्न करने होंगे। देश के समाज को जागृत, संगठित करना होगा, ईंट को मजबूत करना होगा, देश के विकास में बाधक सभी चुनौतियों को स्वीकार करना होगा अतः प्रत्येक देशवासी देश के लिए त्याग, बलिदान ,समर्पण ,सर्वस्व निछावर करने हेतु तत्पर रहे, अपने नागरिक कर्तव्यों का पालन करें । भारत का विश्वगुरु/ महाशक्ति बनना ईश्वरी नियति है, जिसे हम सभी देशवासी मिलकर साकार करें । यही आज का राष्ट्रधर्म -युगधर्म भी है।
लेखक - डॉ. नितिन सहारिया