आज आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष, एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी व्रत रखा जाता है। सनातन धर्म में इस एकादशी का काफी महत्व है पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर की अनंत शय्या पर योग निद्रा में रहते है और कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी पर भगवान विष्णु की योग निद्रा पूर्ण होती है (इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है) इसी दिन से चातुर्मास भी शुरू हो जाता है। चतुर्मास में शादी विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किये जाते। चातुर्मास के दौरान पूजा-पाठ, कथा, अनुष्ठान से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। चातुर्मास में भजन,कीर्तन,सत्संग, कथा, भागवत के लिए श्रेष्ठ समय माना जाता है।
शास्त्रों के मान्यताओं के अनुसार सूर्यवंशी कुल में मान्धाता नाम का एक चक्रवर्ती राजा हुआ करते थे। वह बहुत ही महान, प्रतापी, उदार तथा प्रजा का ध्यान रखने वाले राजा थे। राजा का राज्य पाठ बहुत ही सुख – सम्रद्ध और धन-धान्य से भरपूर था। वहाँ की प्रजा राजा से बहुत अधिक प्रसन्न एवं खुशहाल थी, क्योंकी राजा अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे, साथ ही वह धर्मं के अनुसार सारे नियमो का पालन करने वाले थे।
राजा के राज्य में लम्बे समय से वर्षा नहीं हुई जिसके फलस्वरूप उनके राज्य में अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई थी, जिससे राजा अत्यंत दुखी हो गये, राजा इस संकट से उबरना चाहते थे, और मन ही मन चिंतन करने लगे की उनसे आखिर ऐसा कौन सा पाप हो गया है। इस संकट से मुक्ति पाने के लिए राजा अपने सैनिको के साथ वन की ओर प्रस्थान करते है। कई दिनों तक भटकने के बाद एक दिन अचानक वे अंगीरा ऋषि के आश्रम जा पंहुचे, राजा को अत्यंत व्याकुल देख कर अंगीरा ऋषि ने उनसे उनकी व्याकुलता का कारण पूछा, राजा ने ऋषि को अपनी और अपने प्रजाओं की परेशानी का विस्तारपूर्वक वर्णन किया | राजा ने ऋषि से निवेदन किया की ‘हे! ऋषि मुनि मुझे कोई उपाय बताये जिससे की मेरे राज्य में सुख-सम्रद्धि पुन: लौट आये’, ऋषि ने राजा की परेशानी को ध्यान पूर्वक सुना और कहा कि आप आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुरे विधि विधान एवं पूर्ण श्रद्धा- भक्ति के साथ व्रत रखे एवं पूजन आदि करें। राजा ने ऋषि की आज्ञा का पालन करते हुए, अपने राज्य पुनः वापस आये तथा एकादशी व्रत पुरे विधि विधान से किया, जिसके फलस्वरूप राजा के राज्य में अकाल की स्थिति जो उत्पन हुई थी वो दूर हो गई तथा पूरा राज्य पहले की तरह हंसी-ख़ुशी रहने लगा ।
देवशयनी एकादशी की कथा सुनने या सुनाने से सभी पापों का नाश होता है, इसलिए इस दिन जप-तप,पूजा-पाठ,उपवास करने से मनुष्य श्री हरि की कृपा प्राप्त कर लेता है। भगवान विष्णु को तुलसी बहुत ही प्रिय होती है और बिना तुलसीदल के भोग को अधूरा माना जाता है। ऐसे में देवशयनी एकादशी पर तुलसी की मंजरी,पीला चन्दन,रोली,अक्षत,पीले पुष्प,ऋतु फल एवं धूप-दीप,मिश्री आदि से भगवान वामन का भक्ति-भाव से पूजन करना चाहिए। “पदम् पुराण” के अनुसार देवशयनी एकादशी के दिन कमललोचन भगवान विष्णु का कमल के फूलों से पूजन करने से तीनों लोकों के देवताओं का पूजन हो जाता है । रात्रि के समय भगवान नारायण की प्रसन्नता के लिए नृत्य,भजन-कीर्तन और स्तुति के द्वारा जागरण करना चाहिए।