भारत के ‘ग्रैंड ओल्ड मैन’ दादाभाई नौरोजी | The Voice TV

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भारत के ‘ग्रैंड ओल्ड मैन’ दादाभाई नौरोजी

Date : 30-Jun-2023

 दादाभाई नौरोजी को भारत का ग्रैंड ओल्ड मैन कहा जाता है. दादाभाई एक महान स्वतंत्रता संग्रामी थेजिन्हें वास्तुकार के रूप में देखा जाता हैजिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी थी. दादाभाई पारसी थेजो एक अच्छे  शिक्षककपास के व्यापारी और एक प्रारंभिक भारतीय राजनीतिक और सामाजिक नेता थे. 1892 से 1895 के दौरान दादाभाई लिबरल पार्टी के सदस्य के तौर पर ब्रिटिश संसद के सदस्य रहेये पहले एशियाई थेजो ब्रिटिश संसद के मेम्बर बने थे. नौरोजी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का रचियता कहा जाता है. इन्होने ए ओ हुम और दिन्शाव एदुल्जी के साथ मिल कर इस पार्टी को बनाया था. दादाभाई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस  के तीन बार अध्यक्ष भी रहे थे. दादाभाई पहले भारतीय थेजो किसी कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में नियुक्त हुए थे. 1906 में कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार से पहली बार स्वराज की मान की थीइस बात को सबसे पहले दादाभाई ही सबके सामने लाये थे.

शिक्षा

दादाभाई नेबम्बई के एल्फिंस्टोन इंस्टिट्यूट से अपनी पढाई पूरी की और शिक्षा पूरी होने पर वहीँ पर अध्यापक के तौर पर नियुक्त हो गए।दादा भाई नौरोजी गणित और अंग्रेजी में बहुत अच्छे थे।और लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज में पढ़ाने लगे थे। लंदन में उनके घर पर वहां पढ़ने वाले भारतीय छात्र आते-जाते रहते थे।

राजनैतिक करियर

दादा भाई नौरोजी के अंदर बचपन से ही देशप्रेम की भावना भरी हुई थी। वे शुरू से ही सामाजिक एवं क्रांतिकारी विचारधारा वाले एक ऐसी शख्सियत थेजिन्होंने साल 1853 में ईस्ट इंडिया कंपनी के लीज नवीनीकरण का विरोध भी किया था। वहीं इस मसले में दादा भाई ने क्रूर ब्रिटिश सरकार को तमाम याचिकाएं भी भेजी थीलेकिन ब्रिटिश सरकार ने उनकी इस बात को सिरे से नकार दिया और लीज को रिन्यू कर दिया था।

वहीं भारत के राष्ट्र पितामह और भारत की राजनीति के जनक दादाभाई नौरोजी का मानना था कि भारत के लोगों में अज्ञानता की वजह से ही क्रूर ब्रिटिश शासकमासूम भारतीयों पर जुल्म ढा रहे हैं और उन पर राज कर रहे हैं। उन्होंने व्यस्कों की शिक्षा के लिए ज्ञान प्रसारक मंडली की भी स्थापना की थी। इसके अलावा उन्होंने भारत की समस्याओं का समाधान करने के मकसद से राज्यपालों और वायसराय को कई याचिकाएं लिखीं।और आखिरी में उन्होंने महसूस किया कि ब्रिटिश लोगों और ब्रिटिश संसद को भारत एवं भारतीयों की दुर्दशा के बारे में अच्छे से पता होना चाहिए। वहीं साल 1855 में महज 30 साल की उम्र में वह इंग्लैंड चले गए थे।

इंग्लैंड में दादाभाई का सफ़र

इंगलैंड में रहने के दौरान दादाभाई ने वहां की बहुत सी अच्छी सोसायटी ज्वाइन की. वहां भारत की दुर्दशा बताने के लिए अनेकों भाषण दिएढेरों लेख लिखे. दिसम्बर, 1866 को दादाभाई ने ईस्ट इंडियन एसोसिएशन’ की स्थापना की. इस संघ में भारत के उच्च पदस्थ अधिकारी और ब्रिटिश संसद के मेम्बर शामिल थे.

1880 में दादाभाई एक बार फिर लन्दन गए. दादाभाई को 1892 में वहां हुएआम चुनाव के दौरान सेंट्रल फिन्स्बरी’ द्वारा लिबरल पार्टी’ के उम्मीदवार के रूप मेंप्रस्तुत किया गया. जहाँ वे पहले ब्रिटिश भारतीय एम् पी बने. उन्होंने भारत एवं इंग्लैंड में I.C.S की प्रारंभिक परीक्षाओं के आयोजन के लिएब्रिटिश संसद में एक बिल भी पारित कराया. उन्होंने भारत और इंग्लैंड के बीच प्रशासनिक और सैन्य खर्च का भी वितरण के लिए विले आयोग और  भारत व्यय पर रॉयल कमीशन बनाया.

सम्मान

·        दादाभाई नौरोजी को स्वतंत्रता आंदोलन के समयसबसे महत्वपूर्ण भारतीयों में से एक के रूप में माना जाता है.

·        दादाभाई नौरोजी रोड का नाम इनके सम्मान में रखा गया है.

·        दादाभाई भारत के ग्रैंड ओल्ड मैन माने जाते है.

दादाभाई मृत्यु

30 जून 1917 को 91 साल की उम्र में भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी दादाभाई नौरोजी का देहांत हो गया था.

 
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