स्वामी विवेकानंद भारत के अति प्रभावशाली लोगों में से एक थे. उनके जीवन की तमाम ऐसी घटनाएं हैं, जो आज के युवा वर्ग को प्रेरित करती हैं. उन्होंने अपने जीवन काल में भारतीय सभ्यता और सनातन धर्म को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित किया. स्वामी विवेकानंद का व्यक्तिगत जीवन साधारण था. लेकिन जब वे किसी विषय पर गंभीरता से बातें करते थे या फिर भाषण देते थे, तो लोग उनकी ओर आकर्षित हो जाया करते थे.|
हम सब को अपने जीवन में समस्याओं का सामना तो करना ही पड़ता है. कई बार ऐसा भी होता है, जब हम समस्या से पीछा छुड़ाने के लिए उससे भागने की कोशिश करते हैं. लेकिन इस तरह कभी समाधान नहीं मिल सकता स्वामी विवेकानंद के जीवन का ऐसा किस्सा जो बताएगा कि जितना आप डर से भागते हैं, उतना ही वो आपका पीछा करता है.
यह किस्सा उस दौर का है, जब स्वामी विवेकानंद जी अपने गुरु स्वामी राम कृष्ण परमहंस के शरीर त्याग के उपरांत स्वामी विवेकानंद तीर्थयात्रा पर निकले.
कई स्थानों के दर्शन करते हुए वे काशी पहुँचे और विश्वनाथ मंदिर में दर्शन के लिए गए. दर्शन कर जब वे मंदिर से बाहर आये तो देखा कि मंदिर के सामने कुछ बंदर इधर-उधर चक्कर लगा रहे है.
उन दिनों स्वामी जी लंबा अंगरखा पहनते थे और सर पर साफा बांधते थे. वे विद्याप्रेमी थे, इसलिए उनकी जेबों में पुस्तक और कागज़ भरे रहते थे. भरी हुई जेबों को देखकर बंदरों को भ्रम हुआ कि उसमें खाने की वस्तु है और वे उनके पीछे पड़ गए.अपने पीछे बंदरों को आते देख स्वामी जी भयभीत हो गए और तेज-तेज चलने लगे. बंदरों ने भी अपनी गति बढ़ा दी, जिससे स्वामी जी का भय बढ़ गया और उन्होंने दौड़ना प्रारंभ कर दिया. लेकिन बंदर भी उनके पीछे दौड़ने लगे.
स्वामी जी को समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें? बंदर उनका पीछा छोड़ने का नाम नहीं ले रहे थे. भय के कारण वे पसीने से नहा गए. लेकिन वहाँ उपस्थित लोगों में से कोई भी उनकी सहायता के लिए सामने नहीं आया. सब तमाशबीन बन तमाशा देखते रहे.
तभी भीड़ में से ही स्वामी जी को वृद्ध व्यक्ति की आवाज़ सुनाई पड़ी, “भागो मत.” ज्यों ही ये शब्द स्वामी जी के कानों में पड़े, वे रूक गए. उन्हें बोध हुआ कि विपत्ति से डरकर जब हम भागते हैं, तो वह और तेजी से हमारा पीछा करती है. अगर साहस से उनका मुकाबला किया जाये, तो वह मुँह छुपाकर भाग जाती है.
फिर क्या था? वे मुड़े और निर्भीकता से खड़े हो गए. उन्हें देख बंदर भी खड़े हो गए. थोड़ी देर खड़े रहने के बाद वे सभी बंदर वापस लौट गए.
वह दिन स्वामी जी के जीवन में एक नया मोड़ लेकर आया. उसके बाद समाज की बुराइयों को देख वे कतराए नहीं और हौसले के साथ उनका सामना किया. कई सालों बाद स्वामी विवेकानंद ने एक संबोधन में इस घटना का जिक्र भी किया और युवाओं को समझाया कि अगर तुम कभी किसी समस्या से भयभीत हो, तो उसे गौर से देखो और डटकर सामना करो. इसके बाद उसका समाधान तुम्हें जरूर मिल जाएगा. समस्या से भागना सिर्फ कायरता की निशानी है. यदि उसे खत्म करना है तो सामना करना ही पड़ेगा.
स्वामी विवेकानंद की प्रेरणादायक विचार थे-
1. जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी।
2. जैसा तुम सोचते हो वैसा ही बन जाओगे।
3. खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
4. जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।