श्रावण विशेष -सोमनाथ ज्योतिर्लिंग | The Voice TV

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श्रावण विशेष -सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

Date : 10-Jul-2023

 

सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये

ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।

भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं

सोमनाथं शरणं प्रपद्ये॥

जय सोमनाथ, जय सोमनाथ॥

 

विश्व के 12 ज्योतिर्लिंग मे से एक सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का यह मंदिर समस्त संसार में प्रसिद्ध है. गुजरात प्रांत के काठियावाड़ क्षेत्र में अरब सागर के किनारे स्थित है | सोमनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में पहला ज्योतिर्लिंग है | ऐसा माना जाता है कि, भगवान शिव सर्वप्रथम यही प्रकट हुए थे. यह मंदिर हिन्दू देवता भगवान शिव को समर्पित एक पवित्र धाम है. पावन प्रभास क्षेत्र में स्थित इस सोमनाथ-ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कंद पुराणादि में विस्तार से बताई गई है। , इस मंदिर का निर्माण सोमदेव  (चंद्रदेव)  राजा ने ईसा पूर्व किया था. उन्होंने भगवान शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहां तपस्या की थी इसीलिए इनका नाम 'सोमनाथ' हो गया। . यह मंदिर अध्यात्म और प्रकृति का मिलन स्थल है. इसके अलावा इस जगह पर तीन पौराणिक नदियो सरस्वती, हिरण्य और कपिला का संगम स्थल है. जिसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है. यही नही पौराणिक मान्यताओ के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने अंतिम समय में इसी स्थान पर अपने शरीर को त्यागा था.

इस मंदिर का नाम सोमनाथ कैसे पड़ा. इसके पीछे एक बहुत प्रचलित कथा है. धार्मिक महत्व- पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार सोम नाम चंद्र का है, जो दक्ष के दामाद थे। एक बार उन्होंने दक्ष की आज्ञा की अवहेलना की, जिससे क्रोधित  होकर दक्ष ने उन्हें श्राप दिया कि उनका प्रकाश दिन-प्रतिदिन धुँधला होता जाएगा। जब अन्य देवताओं ने दक्ष से उनका श्राप वापस लेने की बात कही तो उन्होंने कहा कि सरस्वती के धारा  पर समुद्र में स्नान करने से श्राप के प्रकोप को रोका जा सकता है। सोम ने सरस्वती के धारा  पर स्थित अरब सागर में स्नान करके भगवान शिव की आराधना की। प्रभु शिव यहां पर अवतरित हुए और उनका उद्धार किया सोमनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुए।.

कहते हैं कि सोमनाथ के मंदिर में शिवलिंग हवा में स्थित था। यह एक कौतुहल का विषय था। जानकारों के अनुसार यह वास्तुकला का एक नायाब नमूना था। इसका शिवलिंग चुम्बक की शक्ति से हवा में ही स्थित था। कहते हैं कि महमूद गजनबी इसे देखकर हतप्रभ रह गया था।

सर्वप्रथम इस मंदिर के उल्लेखानुसार ईसा के पूर्व यह अस्तित्व में था। इसी जगह पर द्वितीय बार मंदिर का पुनर्निर्माण 649 ईस्वी में वैल्लभी के मैत्रिक राजाओं ने किया। पहली बार इस मंदिर को 725 ईस्वी में सिन्ध के मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद ने तुड़वा दिया था। फिर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका पुनर्निर्माण करवाया। 

 इसके बाद महमूद गजनवी ने सन् 1024 में 5,000 साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी संपत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। तब मंदिर की रक्षा के लिए निहत्थे हजारों लोग मारे गए थे। ये वे लोग थे, जो पूजा कर रहे थे या मंदिर के अंदर दर्शन लाभ ले रहे थे और जो गांव के लोग मंदिर की रक्षा के लिए निहत्थे ही दौड़ पड़े थे।

महमूद के मंदिर तोड़ने और लूटने के बाद गुजरात के राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। 1093 में सिद्धराज जयसिंह ने भी मंदिर निर्माण में सहयोग दिया। 1168 में विजयेश्वर कुमारपाल और सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी सोमनाथ मंदिर के सौन्दर्यीकरण में योगदान किया था।

सन् 1297 में जब दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां ने गुजरात पर हमला किया तो उसने सोमनाथ मंदिर को दुबारा तोड़ दिया और सारी धन-संपदा लूटकर ले गया। मंदिर को फिर से हिन्दू राजाओं ने बनवाया। लेकिन सन् 1395 में गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह ने मंदिर को फिर से तुड़वाकर सारा चढ़ावा लूट लिया। इसके बाद 1412 में अहमद शाह ने भी यही किया।

बाद में मुस्लिम क्रूर बादशाह औरंगजेब के काल में सोमनाथ मंदिर को दो बार तोड़ा गया- पहली बार 1665 ईस्वी में और दूसरी बार 1706 ईस्वी में। 1665 में मंदिर तुड़वाने के बाद जब औरंगजेब ने देखा कि हिन्दू उस स्थान पर अभी भी पूजा-अर्चना करने आते हैं तो उसने वहां एक सैन्य टुकड़ी भेजकर खंड  करवाया। जब भारत का एक बड़ा हिस्सा मराठों के अधिकार में गया तब 1783 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई द्वारा मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर पूजा-अर्चना के लिए सोमनाथ महादेव का एक और मंदिर बनवाया गया।

भारत की आजादी के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल ने समुद्र का जल लेकर नए मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया। उनके संकल्प के बाद 1950 में मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ। 6 बार टूटने के बाद 7वीं बार इस मंदिर को कैलाश महामेरू प्रासाद शैली में बनाया गया। इसके निर्माण कार्य से सरदार वल्लभभाई पटेल भी जुड़े रह चुके हैं। इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने बनवाया और 1 दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।1951 में जब भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने ज्योतिर्लिंग को शुद्ध करने का प्रस्ताव रखा, तो उन्होंने कहा, “सोमनाथ का यह मंदिर विनाश पर निर्माण का विजय प्रतीक है”. मंदिर श्री सोमनाथ *ट्रस्ट के तहत बनाया गया है. और यह ट्रस्ट वर्तमान में सोमनाथ मंदिर का संचालन कर रहा है. वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट का अध्यक्ष बनाये गए  है। ट्रस्ट के सचिव पी के लाहेरी ने कहा, ‘‘ सोमनाथ मंदिर न्यास के न्यासियों में एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न्यासियों की डिजिटल बैठक के दौरान नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया।’’. सरदार वल्लभ भाई पटेल इस ट्रस्ट के पहले अध्यक्ष थे| 

 
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