भारत की आजादी के आंदोलन में सक्रिय योगदान देकर एवं तत्कालीन भारत में चल रहे राजनैतिक-सामाजिक परिवर्तन तथा आर्थिक मुक्ति आंदोलन में हिस्सा लेकर जिन्होंने इतिहास रचा है, उनमें एक सशक्त हस्ताक्षर डॉ. खूबचंद बघेल जी का भी है। छत्तीसगढ़-राज्य जो अस्तित्व में नवम्बर 2000 से आया है, उसके प्रथम स्वप्न दृष्टा, डॉ. खूबचंद बघेल जी ही थे। आज भले ही उन्हें इसकी मान्यता देने में उच्चवर्ण एवं वर्ग के लोगों को हिचकिचाहट होती है, लेकिन यही ऐतिहासिक सत्य है। ब्राम्हणवादी जाति व्यवस्था को विछिन्न कर समस्त मानव जाति को एक जाति के रूप में देखने की चाहत रखने वाले डॉ. बघेल के व्यक्तित्व में छत्तीसगढ़ की खुशबू रची-बसी थी। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिये त्याग और बलिदान करने वालों में डॉ. साहब का नाम अग्रिम पंक्ति पर है।
सन् 1923 में झण्डा सत्याग्रह में भाग लिया था। सन् 1925 से 1931 तक शासकीय चिकित्सक के पद पर कार्य करते हुए वे छत्तीसगढ़ के राष्ट्रीय नेताओं के संपर्क में आये थे। सन् 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में वन कानून का उल्लंघन करते हुए डॉ. बघेल सरकारी कर्मचारी होते हुए भी 10 अक्टूबर 1930 को सत्याग्रहियों का साथ दिया एवं उनका नेतृत्व करने लगे। उन्हें शासन से नोटिस मिला तो सन् 1931 में नौकरी से इस्तीफा देकर पूरी तरह से सत्याग्रही हो गये। खूबचंद बघेल जी छत्तीसगढ़ के ग्रामीण जनता के लिए प्रेरक बने थे। उनके प्रभाव के कारण अनेक गॉंवो के पुरुष एवं महिलाओं ने आंदोलन में भाग लिया था। सन् 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के द्वितीय चरण में 15 फरवरी 1932 को डॉ. बघेल के साथ महंत लक्ष्मीनारायण दास एवं नंदकुमार दानी भी गिरफ्तार कर लिए गए । इसके पश्चात् उनकी माता श्रीमती केतकी बाई एवं पत्नी राजकुंवर भी गिरफ्तार हुए। सन् 1933 में जेल से रिहा होने के पश्चात् उन्होंने गांधीजी के आह्वान पर हरिजन उत्थान का कार्य प्रारंभ कर दिया। कांग्रेस समिति द्वारा उन्हें प्रांतीय हरिजन सेवा समिति का मंत्री नियुक्त किया गया । डॉ. खूबचंद बघेल अच्छे साहित्यकार भी थे । उन्होंने करमछड़हा, जनरैल सिंह, ऊंच-नीच, लेड़गा जैसे नाटक लिखकर सामाजिक बुराइयों पर प्रहार किया तथा राष्ट्रभक्ति का प्रसार किया । उन्होंने 1 मई से 7 मई सन् 1939 तक सत्याग्रह प्रशिक्षण शिविर में प्रशिक्षण भी प्राप्त किया। सन् 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन प्रारंभ होते ही वे पुनः राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय हो गए तथा घूम-घूम कर युद्ध विरोधी भावनाओं का प्रसार करने लगे । बघेल जी अपने नाटकों के द्वारा सामाजिक एवं राजनीतिक जागृति के लिए युवाओं का दल बनाकर गांव-गांव दौरा किया करते थे । सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा के समय बघेल जी, पंडित रविशंकर शुक्ल, शिवदास डागा, महंत लक्ष्मीनारायण दास आदि नेता गांधी जी का भाषण सुनने मुंबई गए थे। वहां से लौटते समय मलकापुर में अन्य साथी 10 अगस्त को द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए हैं किंतु बघेल जी पुलिस से बचते हुए रायपुर पहुंच गए। यहां पर भूमिगत होकर सरकार विरोधी क्रांतिकारी पर्चे बांटते हुए एवं ब्रिटिश विरोधी भाषण देते हुए अन्ततः वे 23 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिये गये। छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम स्वप्न ट्टष्टा एवं महान सपूत जिन्होंने आम जनता को स्वतन्त्रता के बाद भारतीय संविधान के तहत प्राप्त प्रजातांत्रिक अधिकारों की सतत् रक्षा के लिये लोगों को जागृत करने का संघर्ष किया। प्रजातंत्र को वीरकाल तक स्थापित रखने के महत्व और उस पर आघात करने वाले कारणों एवं लोगों के विरुद्ध सतत् संघर्ष करते रहने का संदेश दिया। संसद के शीतकालीन सत्र में भाग लेने वे दिल्ली गये हुये थे। इसी दौरान 22 फरवरी सन् 1969 को हृदयकालीन रुक जाने से उनका दिल्ली में निधन हुआ। उनकी अंत्येष्टी रायपुर के महादेव घाट में की गई। छत्तीसगढ़ के अलग राज्य का सपना खूबचंद ने बहुत पहले ही देखा था लेकिन वह उनके समय में पूरा नहीं हो सका। हालांकि उन्होंने अलग राज्य का बीच जो बोया था वह 2000 में अंकुरित हो गया और छत्तीसगढ़ को अलग राज्य का दर्जा मिल गया लेकिन उन्हें वह सम्मान नहीं मिल सका जिसके वह हकदार थे।