स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे ने विद्रोह का बिगुल फूंका उससे अंग्रेजी सल्तनत कांप उठी थी। कम लोग जानते हैं कि कहीं अंग्रेजो द्वारा गिरफ्तार ना हो जाए इसलिए इन्होंने खुद को गोली मार ली थी।मगर चिकित्सा मिल जाने से उनकी जान बच गई ।
विद्रोह की शुरुआत से लेकर विरात्मा के शहीद होने तक मंगल पांडे से जुड़ी कुछ ख़ास और अनसुनी बातें
29 मार्च 1857 को अपनी मूंछो पर ताव देकर कमरे में बैठे मंगल पांडे के दिमाग में कुछ चल रहा था। वे अचानक उठ खड़े हुए, बंदूक को माथे से लगा के चूमा, गोली भरी और भारत माता की जय बोल कर बैरकपुर छावनी के उस कमरे से निकल गए। बाहर आकर परेड ग्राउंड की तरफ जाने लगे। जब अन्य सिपाही साथियों ने उन्हें रोकना चाहा तो बोले "स्वतंत्रता की देवी पुकार रही है, व्यर्थ प्रतीक्षा मत करो, फिरंगियो का सफाया करने का वक़्त आ गया है।" इसके बाद किसी ने उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं की।
मंगल पांडे ने पहले सार्जेंट मेजर ह्युसन को गोली मारी। फिर दूसरा अफसर लेफ्टिनेंट बॉब जो घोड़े पर सवार था वो मंगल पांडे की और बढ़ा। मंगल ने दूसरी गोली चलाई जो घोड़े को लग गयी, अफसर नीचे गिर पड़ा और फिर मंगल पांडे ने तलवार से उसका अंत कर दिया। विद्रोह की खबर बड़े अफसरों तक पहुच गयी। कर्नल व्हीलर घटना स्थल पर पंहुचा और गरजते हुए सिपाहियों को आदेश दिया - "मंगल पांडे को बंदी बना लो।" पर कोई सिपाही हिला तक नहीं। उल्टे एक सिपाही ने भी उतनी ही गरज के साथ कहा, "हम आखिरी सांस तक अपने इस ब्राह्मण सिपाही की रक्षा करेंगे।" सिपाहियों के बदले रुख को देखकर व्हीलर समझ गया की यहां से चले जाना ही बेहतर होगा। वो अपने बंगले में लौट गया।
विद्रोह की ये घटना आग की तरह फैल गयी। बहुत जल्द कर्नल हियार सैनिकों की टुकड़ी लेकर मौके पर पहुच गया। मंगल पांडे समझ गए कि अब गिरफ्तारी होनी तय है। पर वो नहीं चाहते थे कि वो अंग्रेजों के हाथ लगे। ऐसी स्थिति में उन्होंने बंदूक छाती से लगाई और गोली चला दी। मगर भाग्य को कुछ और मंजूर था। मंगल पांडे सिर्फ घायल हुए| गोरे सैनिक उनके पास गए, देखा मंगल जिंदा है, फिर उन्हें उठा कर अस्पताल ले गए और इलाज शुरू हुआ। वो जल्द ही स्वस्थ भी हो गए।
इधर उनके ऊपर सैनिक अदालत में अभियोग शुरू कर दिया गया। मंगल पांडे से पूछा गया कि और कौन कौन लोग थे जिन्होंने उनका साथ दिया। मंगल पांडे निर्भीक होकर बोले "तीनों गोरों की हत्या मैंने अकेले की है, उनसे मेरी कोई शत्रुता नहीं थी पर अपने देश और धर्म की रक्षा के लिए मुझे ऐसा करना पड़ा।"
छह अप्रैल के दिन अभियोग के दौरान कई गवाह पेश किये और अंत में जज ने मंगल पांडे को फांसी की सजा सुनाई 18 अप्रैल के दिन मंगल पांडे को फांसी दे दी जायेगी। अंग्रेजों ने यह महसूस किया कि यदि फांसी देने में देर की गई तो और भी सैनिक बगावत में शामिल हो सकते हैं इसलिए 8 अप्रैल को फांसी देने की तारीख तय की गयी लेकिन बैरकपुर का कोई भी जल्लाद मंगल पांडे को फांसी देने को तैयार नहीं हुआ। इसके बाद कलकत्ता से जल्लाद मंगाए गए जिन्होंने मंगल पांडे को फांसी पर चढ़ा दिया गया।