मुछों को ताव देते हुए देश को देश-प्रेम का पाठ पढ़ा गए वो ब्राह्मण होते हुए भी एक क्षत्रीय धर्म निभा गए--चंद्रशेखर आज़ाद
दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे।
आज़ाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे।।
आज़ाद जी की प्रचंड देशभक्ति के तमाम किस्से मशहूर हैं। उनके सामने एक ही लक्ष्य था, भारत की आजादी इस लक्ष्य के सामने बाकी सारे मुद्दे गौण थे । उनके लिये व्यक्तिगत जीवन का कोई मोल नहीं था इस लक्ष्य को पाने के लिये तो जीवन में सुख सुविधाओं की चिंता करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता ।
अर्जुन की तरह पंडित जी अपना पूरा ध्यान इसी बात पर लगाये रहते थे कि कैसे आजादी प्राप्त की जाये। मुल्क की आजादी पाने के लिये उन्होने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन की स्थापना की थी और शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव एवम बटुकेश्वर दत्त आदि भी इसके सदस्य बने।
उनके जीवन से विशुद्ध आजादी के प्रयासों के अलावा भी और बहुत सारे रोचक प्रसंग जुड़े हुये हैं। उनमें से कुछ का जिक्र किया जा सकता है।
यह घटना उन दिनों की है जब चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, सुखदेव और बटुकेश्वर दत्त अंग्रेजों के विरुद्ध किसी योजना पर कार्य करने के लिए एक साथ इलाहाबाद में रह रहे थे। एक दिन की बात है, सुखदेव बाजार से एक कैलेंडर लेकर आये, जिस पर एक खूबसूरत अदाकारा की मनमोहक तस्वीर छपी हुई थी। सुखदेव को यह कैलेंडर पसंद आया और उन्होंने उसे कमरे के अंदर की दीवार पर टांग दिया और फिर किसी कार्य के लिए बाहर चले गये।
सुखदेव के जाने के पश्चात आज़ाद जी वहां पहुंचे और ज्यों ही उनकी नजर दीवार पर टंगे कैलेंडर पर गई त्यों ही उनकी भौहें तन गई। आज़ाद के क्रोध को देखकर अन्य क्रांतिकारी साथी थोड़ा डर गये; क्योंकि वे सभी आज़ाद जी के स्वभाव से अवगत थे। आज़ाद जी ने किसी से कुछ नहीं कहा लेकिन दीवार पर लगे कैलेंडर को तुरंत नीचे उतारा एवं फाड़कर फेंक दिया।
कुछ समय के पश्चात सुखदेव लौट आये। जब उनकी नजर दीवार पर गई, तो वहां कैलेंडर को टंगा न देख कर उसे वे इधर-उधर खोजने लगे। थोड़ी ही देर बाद जब उनकी नजर कैलेंडर के बचे हुये टुकड़ों पर पड़ी तब वे भी गुस्से से लाल-पीले हो गये। सुखदेव भी गरम स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्होंने गुस्से में सबसे पूछा की उनके कैलेंडर का यह हाल किसने किया है? पंडित जी ने शांत स्वर में उनसे कहा,” हमने किया है “?
सुखदेव थोड़ा बहुत कसमसाये परंतु पंडित जी के सामने क्या बोलते सो धीरे से बोले कि अच्छी तस्वीर थी।
पंडित जी ने कहा,”यहाँ ऐसी तस्वीरों का क्या काम”।
उन्होने सुखदेव को समझा दिया कि ऐसे किसी भी आकर्षण से लोगों का ध्यान ध्येय से भटक सकता है।
प्रेम, विवाह, परिवार, धन-सम्पत्ति आदि सब तरह के सुख जो एक सामान्य मनुष्य अपने जीवन में चाहता है, उन्हे पंडित चन्द्रशेखर आजाद जैसे देशभक्तों ने अपने जीवन में प्रवेश करने ही नहीं दिया। जिस बहुमूल्य आजादी का आज हम सब जीवित लोग दुरुपयोग करके देश को रसातल में पहुँचा रहे हैं, वह ऐसी महान आत्माओं के बलिदान से हमें मिली है। ये सब लोग इतने कर्मठ और काबिल थे कि ऐश्वर्य से भरपूर जीवन जी सकते थे पर वे तैयार नहीं थे स्वाभिमान को ताक पर रखकर गुलामी में जीने को और देशवासियों को गुलामी की जंजीरों से छुड़वाने के लिये उन्होने अपने जीवन होम कर दिये।