बाल गंगाधर तिलक जो हमारे देश के पहले ऐसे स्वतंत्रता सेनानी रहे,उनका मराठी भाषा में दिया गया नारा "स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच" (स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर ही रहूँगा) बहुत प्रसिद्ध हुआ। लोग उन्हें आदर से 'लोकमान्य' नाम से पुकार कर सम्मानित करते थे। उन्हें हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है। अंग्रेजों के मन में इतना खौफ पैदा कर दिया था की उनकी हुकूमत की जड़ें हिल गई थी. इस महान स्वतंत्रता सेनानी को कौन नहीं जनता. तिलक का भारत की आज़ादी में सबसे बड़ा योगदान है. बालगंगाधर तिलक ने लोगों में एकता बनाए रखने के लिए महाराष्ट्र में गणेश उत्सव का प्रारम्भ किया. आजादी के दौर में ये तीन स्वतंत्रता सेनानी काफी चर्चित थे बालगंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय. इन तीनों को लोग ‘लाल-बाल-पाल’ के नाम से भी पुकारते थे. बाल गंगाधर से जुडी बहुत सी किस्से है उनमे से एक किस्सा यहाँ भी है जो शिक्षा को दर्शाता है
एक बार बाल गंगाधर अपने कुछ मित्रों के साथ बात कर रहे थे। उन दिनों उन्होंने वकालत पास की थी। एक मित्र बोला, 'तिलक, वकालत तो तुमने पास कर ली है। किंतु आगे के लिए क्या सोचा है? क्या अब सरकारी नौकरी करोगे या किसी कोर्ट कचहरी में वकालत?' मित्र की बात सुनकर तिलक बोले,'अब तुमने पूछ ही लिया है तो सुन लो। मुझे ऐसे पैसे की जरूरत नहीं जो मुझे सरकार का गुलाम बना कर रखे। मैं ऐसी वकालत नहीं करना चाहता जहां दिन में कई बार झूठ बोलना पड़े।'
बात आई-गई हो गई। सभी अपने-अपने कामों में लग गए। एक दिन उनकी मित्र-मंडली को पता चला कि बाल गंगाधर ने एक स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया है। तीस रुपए महीना वेतन है । यह सुनकर उस मित्र को सबसे ज्यादा आश्चर्य हुआ जिसने कुछ समय पूर्व उनका मन जानना चाहा था। वह सीधे तिलक के पास जा पहुंचा और बोला, तिलक यह तुमने क्या किया? वकालत की डिग्री लेकर अध्यापक क्यों बने? क्या तुम शिक्षकों की आर्थिक स्थिति के बारे में नहीं जानते? दोस्त! जब तुम अंतिम सांस लोगे, तब तुम्हारे दाह-संस्कार के लिए भी घर में कुछ नहीं होगा।'
मित्र की बात सुनकर तिलक मुस्कुराते हुए बोले, 'मैंने जो पेशा चुना है वह बहुत पवित्र है, ईमानदारी वाला है। अंतिम समय की बात तो मेरे दाह संस्कार का प्रबंध नगरपालिका कर देगी। मैं इसकी चिंता क्यों करूं?' तिलक की बात सुनकर मित्र हैरान रह गया। उसने आज तक संतुष्टि के ऐसे भाव किसी व्यक्ति में नहीं देखे थे। वह मन ही मन तिलक के प्रति श्रद्धा से अभिभूत हो गया।