मलमास जिसे पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है। इस महीने में भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करना बहुत ही उत्तम माना जाता है। पुरुषोत्तम महीने के शुक्लपक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पुरुषोत्तमी एकादशी कहते हैं। ये नाम पद्मपुराण में बताया गया है। वहीं, महाभारत में इसे सुभद्रा एकादशी कहा गया है। इसके अलावा आमतौर पर इसे पद्मिनी एकादशी भी कहा गया है। काशी के ज्योतिषाचार्य और धर्म ग्रंथों के जानकार पं. गणेश मिश्र का कहना है कि 3 साल में आने वाली ये एकादशी बहुत ही खास होती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत-उपवास करने से ही हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। इस व्रत से सालभर की एकादशियों का पुण्य मिल जाता है।
पुरुषोत्तमी एकादशी का महत्व
पुराणों में बताया गया है कि किसी यज्ञ, किसी तप और किसी दान से कम नहीं है यह व्रत। यज्ञ, तप या दान से भी बढ़कर होता है पुरुषोत्तमी एकादशी का व्रत करना। यह व्रत करने से सभी तीर्थों और यज्ञों का फल मिल जाता है। जाने-अनजाने में हुए सभी पापों से भी व्यक्ति मुक्त हो जाता है। इस एकादशी पर दान का खास महत्व होता है। इस दिन लोगों को अपने सामर्थ्य के अनुसार ही दान करना चाहिए। लोग इस दिन मसूर की दाल, चना, शहद, पत्तेदार सब्जियां और पराया अन्न ग्रहण नहीं करते हैं। साथ ही इस दिन नमक का भी उपयोग नहीं किया जाता है। खाना कांसे के बर्तन में भी नहीं खाना चाहिए। व्रती अपने उपवास के दौरान कंदमूल या फल खा सकते हैं।
कथा
प्राचीन काल में एक राजा था जिसका नाम कृतवीर्य था। वह महिष्मती नगर का राजा था। राजा की कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए राजा ने कई व्रत-उपवास और यज्ञ किए। लेकिन उसका फल उसे नहीं मिला। राजा अत्यंत दुखी था और इसी वियोग में वह जंगल जाकर तपस्या करने लगा। कई वर्ष बीतने के बाद भी उसे भगवान के दर्शन नहीं हुए। इसके बाद राजा कृतवीर्य की रानी प्रमदा ने अत्रि ऋषि की पत्नी सती अनुसूया से इसका उपाय पूछा। तब उन्होंने रानी को पुरुषोत्तमी एकादशी व्रत के बारे में बताया और कहा कि वह इस व्रत को करें। रानी ने यह व्रत किया और भगवान राजा के समक्ष प्रकट हो गए। उन्होंने राजा को वरदान दिया और कहा कि उन्हें पुत्र की प्राप्ति होगी। उनके पुत्र को हर जगह जीत मिलेगी। यह पुत्र ऐसा होगा जिसे देव से दानव तक कोई हरा नहीं पाएगा। उसके हजारों हाथ होंगे। जब उसकी इच्छा होगी तब वो अपना हाथ बढ़ा पाएगा। वरदान प्राप्त होने के बाद राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। इस बालक ने तीनों लोक को जीता और रावण को भी हराया और बंदी बना लिया। इस बालक ने रावण के हर सिर पर दीपक जलाया। रावण को उसने खड़ा रखा। इस बालक का नाम सहस्त्रार्जुन कहा जाता है।
पुरुषोत्तम एकादशी पूजा विधि
एकादशी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत होकर भगवान विष्णु का ध्यान व प्रार्थना करें। इसके बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सबसे पहले भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर को पीला कपड़ा बिछाकर स्थापित करें और उन पर गंगाजल के छीटें दें और रोली -अक्षत का तिलक लगाएं और सफेद फूल चढ़ाएं।