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गुमनाम महानायक चित्तप्रिय, जिनकी बहादुरी देख रो पड़ा था अंग्रेज कैप्टन भी

Date : 02-Aug-2023

  भारत की स्वतंत्रता का पवित्र माह अगस्त  शुरू हो गया है। इस महीने की शुरुआत होते ही हमारी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए बलिदान देने वाले हुतात्माओं की शौर्य गाथा फिजा में गूंजने लगती हैं। देश के लिए बलिदान देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्र शेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, खुदीराम बोस, लाला लाजपत राय, बाघा जतिन जैसे सैकड़ों अमर सपूतों की कहानियां तो पूरा देश जानता है। लेकिन इनसे भी बहुत बड़ी और हजारों की संख्या में सर्वस्व बलिदान करने वाले महान क्रांतिकारी हैं, जिन्हें इतिहास में उचित स्थान और सम्मान नहीं मिला। ऐसे गुमनाम क्रांतिकारी, जिन्होंने देश की आजादी के लिए भीषण संघर्ष किया, बेहिसाब कष्ट सहे और फिर भारत भूमि के लिए बलिदान कर दिया, लेकिन उनका नाम तक नई पीढ़ी को पता नहीं, उनकी वीरता की कहानी गुमनामी के इतिहास में कहीं दर्ज है। आजादी के इस महान पर्व वाले माह में हम ऐसे ही गुमनाम क्रांतिकारियों की वीर गाथा को पाठकों के माध्यम से नई पीढ़ी तक पहुंचाना चाहते हैं ताकि मां भारती का वैभव हमेशा अमर रहे।

बंगाल के ऐसे ही एक गुमनाम महानायक थे चित्तप्रिय राय चौधरी। उनका भय ऐसा था कि क्रांतिकारियों को पकड़वाने के लिए अंग्रेजों की मुखबिरी करने वाले उनका नाम सुनते ही भय से थर थर कांपने लगते थे। 1989 में अविभाजित बंगाल प्रांत के फरीदपुर जिले के खलिया गांव में तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध एक बंगाली परिवार में उनका जन्म हुआ था। आजादी के लिए उनकी दीवानगी ऐसी थी कि किशोरावस्था यानी छात्र जीवन में ही क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए थे। उनके समय में महान क्रांतिकारी बाघा जतिन से प्रेरित होकर कई युवा क्रांतिकारियों के दल में शामिल हो रहे थे। ऐसे में चित्तप्रिय कहां पीछे रहने वाले थे। उन्होंने बंगाल प्रांत यानि आज के ओडिशा, पूर्वोत्तर और बिहार के कई क्षेत्रों में अंग्रेजी हुकूमत पर हमले के लिए तब के शेरे बंगाल यानि बाघा जतिन की ओर से बनाई गई कई योजनाओं को सफलतापूर्वक अंजाम दिया था। फरीदपुर में अंग्रेजों को मात देने के लिए दिसंबर 1913 में एक राजनीतिक डकैती की योजना बनाई गई थी, जिसमें अंग्रेजों के शस्त्रागार को लूटना था। इसमें शामिल क्रांतिकारियों के साथ चित्तप्रिय राय चौधरी ने भी मुख्य भूमिका निभाई थी। हालांकि वह पकड़े गए थे और 19 दिसंबर 1913 से 20 अप्रैल 1914 तक इन्हें कालकोठरी में भी रहना पड़ा था।

उस समय संपूर्ण स्वराज के लिए पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंक दिया गया था और जगह-जगह सशस्त्र क्रांति हो रही थी। ऐसे में भारतीय क्रांतिकारियों को दबाने के लिए मुट्ठी भर अंग्रेज भारतीय गद्दारों (मुखबिरों) की मदद से क्रांतिकारियों को पकड़ने में सफल हो रहे थे। कई क्रांतिकारी भारतीयों की मुखबिरी की वजह से अंग्रेजों के हत्थे चढ़ गए थे जिन्हें फांसी की सजा दी गई थी। इसके बाद बाघा जतिन ने आदेश दिया था कि ऐसे गद्दारों को सजा देनी होगी जो क्रांतिकारियों को पकड़वा रहे हैं। यह काम सौंपा गया चित्तप्रिय राय चौधरी को। उनका खौफ ऐसा था कि अंग्रेजी हुकूमत के समय कोलकाता पुलिस में जब इस बात की खबर आती थी कि चित्तप्रिय राय चौधरी किसी खास जगह पर हैं तो अंग्रेजों के लिए मुखबिरी करने वाले पुलिसकर्मी रात को सो नहीं पाते थे।

ऐसे ही कोलकाता पुलिस के सीआईडी में एक इंस्पेक्टर हुआ करते थे सुरेश चंद्र मुखर्जी। उन्होंने प्रमोशन पाने और अंग्रेजों की निगाह में वफादार बने रहने के लिए कई क्रांतिकारियों को पकड़वाया था और सजा दिलवाई थी। इसके लिए वह दिन रात एक किए हुए था। बाघा जतिन का आदेश मिलते ही चित्तप्रिय राय चौधरी ने उस सीआईडी इंस्पेक्टर की जासूसी शुरू कर दी और कोलकाता के मानिकतला चौराहे पर 28 फरवरी 1915 को सरेआम उसका काम तमाम कर दिया। सीआईडी इंस्पेक्टर के साथ अंग्रेजों की पूरी फौज थी लेकिन फौलादी जिगर वाले चित्तप्रिय राय चौधरी को कौन रोकने वाला था? आखिर उनके सिर पर आजादी की दीवानगी जो चढ़ी हुई थी। इंस्पेक्टर का अर्दली शिवप्रसाद भी चित्तप्रिय के हमले में मारा गया।

चित्तप्रिय की बहादुरी देख रो पड़ा था अंग्रेज कैप्टन भी

उसके बाद प्रथम विश्वयुद्ध के कालखंड में आजादी के लिए बनी क्रांतिकारियों की गदर पार्टी ने भारतीय ब्रिटिश सरकार की तख्तापलट करने की बेहतर योजना बनाई थी। क्रांतिकारियों की प्रेरणा रहे श्यामजी कृष्ण वर्मा और लाला हरदयाल जैसे प्रवासी भारतीय अंग्रेजों के शत्रु देश जर्मनी से भारी मात्रा में अस्त्र शास्त्र भारत भिजवा रहे थे। हथियारों से लदा वैसा ही एक जर्मन जहाज ओडिशा के बालेश्वर समुद्र तट पर आने वाला था। इस बात का अंदाजा लगाइए कि तब के समय में जब अंग्रेजों के राज में सूरज नहीं डूबता था तब सात समुद्र पार से हथियारों से लदा एक जहाज अंग्रेजी हुकूमत के पूरे खुफिया तंत्र को चकमा देकर जर्मनी से भारत के समुद्र तट पर पहुंच गया था।

क्रांतिकारियों ने कितनी बड़ी योजना और रणनीति बनाई होगी। उन हथियारों को प्राप्त करने के लिए बाघा जतिन के नेतृत्व में चित्तप्रिय रायचौधरी भी ओडिशा पहुंचे थे। इधर अंग्रेज पुलिस भी इन क्रांतिकारियों की फिराक में जुटी हुई थी और लगातार इनकी टोह ले रही थी। पकड़े जाने से बचने के लिए बाघा जतिन और चित्तप्रिय रायचौधरी की टीम वेश बदलकर ओडिशा के जंगलों में रह रही थी। वहां खाने की भी दिक्कत थी। 48 घंटो तक चित्तप्रिय चौधरी और अन्य क्रांतिकारियों को भोजन नहीं मिला था। लेकिन आजादी की दीवानगी ऐसी थी उन्हें अपनी फिक्र कहां थी। हालांकि इस बीच जहाज के ओडिशा तट पर पहुंचने के पहले ही अंग्रेज गुप्तचरों ने क्रांतिकारियों के बारे में पता लगा लिया और इन्हें मयूरभंज जिले में बूढ़ी बालम नदी के तट पर घेर लिया था।

9 सितंबर 1915 को सुबह 11 बजे के करीब 48 घंटे से भूखे प्यासे क्रांतिकारियों की अंग्रेज पुलिस से मुठभेड़ हो गई। उस समय क्रांतिकारियों की हत्या के लिए अंग्रेज पुलिस आयुक्त चार्ल्स टैगर्ट और जिला मजिस्ट्रेट तथा सैकड़ों की संख्या में सशस्त्र पुलिस बल ने क्रांतिकारियों पर हमला बोला था। लेकिन उस भीषण मुठभेड़ को क्रांतिकारियों ने लंबे समय तक न केवल झेला बल्कि कई अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट भी उतारे। इस मुठभेड़ में शहीद होने वाले पहले क्रांतिकारी थे चित्तप्रिय रायचौधरी। उनका जिक्र अंग्रेज कैप्टन टैगर्ट की डायरी में है। उसने लिखा है कि 48 घंटे से जंगलों में भूखे रहने के बावजूद क्रांतिकारी चित्तप्रिय राय चौधरी ने अंग्रेजी फौज का जिस बहादुरी से मुकाबला किया वैसा उदाहरण दुनिया में कोई दूसरा नहीं है। मुठभेड़ में चित्तप्रिय का साहस और उसके बाद उनका बलिदान देखकर चार्ल्स भी रो पड़ा था।

आजादी की दीवानगी लिए महान नायक चित्तप्रिय राय चौधरी वहां बलिदान हो गए थे। बाद में उनकी प्रेरणा से कई अन्य क्रांतिकारियों ने गदर पार्टी ज्वाइन की थी और ऐसे ही अंग्रेजो के खिलाफ सशस्त्र आंदोलन का हिस्सा बनते रहे थे। चित्तप्रिय राय चौधरी की जो आखिरी तस्वीर उपलब्ध है उसमें वह धोती पहने हुए हैं और शरीर के ऊपरी हिस्से में कोई कपड़ा नहीं है। दुबले पतले इतने हैं कि हड्डियां दिख रही हैं । बावजूद इसके आजादी के प्रति उनका जुनून ऐसा था कि पूरी अंग्रेजी फौज से अंतिम सांस तक लोहा लेते रहे थे।

 

 
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