आदिशक्ति जगत जननी मां विंध्यवासिनी धाम दुनिया के लिए आस्था का केंद्र ही नहीं, बेसहारों का सहारा भी है। विंध्याचल के पटेंगरा नाला स्थित समाज कल्याण विभाग की ओर से संचालित वृद्धाश्रम (वृद्धजन आवास) में परिवार से दूर 102 बुजुर्ग जीवनयापन कर रहे हैं। जिसमें मीरजापुर, वाराणसी, प्रयागराज ही नहीं मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, दिल्ली, बंगाल समेत अन्य प्रांत के बुजुर्ग वृद्धाश्रम में हैं।
उम्र के जिस पड़ाव में अपनों की जरूरत होती है। उसमें वे एकाकी जीवन जीने को विवश हैं। कोई अपनी जवानी के दिन याद करता है तो कोई अपनी कामयाबी को। अब बस यही यादें हैं जो उनके जीने का सहारा बनी हैं। ये कहानी है उन बुजुर्गों की, जिनका भरा पूरा परिवार होते हुए भी वृद्धाश्रम ही जीवन का आखिरी पड़ाव बन चुका है।
हालांकि ऐसे बेटों की कमी नहीं है जो अपने माता-पिता की सेवा करते हैं और बुढ़ापे में उनका हर तरह से ध्यान रखते हैं। मगर उन बेटों की भी संख्या कम नहीं जो अच्छी परवरिश के बावजूद जीवन के संध्या काल में अपने मां-बाप को भुला बिसरा देते हैं। इसे इन बुजुर्गों के पिछले जन्मों का फल कहें अथवा बदकिस्मती। वृद्धाश्रम में पुरानी यादों के सहारे जैसे-तैसे जिंदगी का आखिरी वक्त बीता रहे बुजुर्गों का दर्द उनकी आंखों में नजर आता है।
साधन संपन्न परिवारों के लोग भी वृद्धाश्रम में
वृद्धाश्रम अधीक्षक संजय शर्मा ने बताया कि आश्रम की स्थापना वर्ष 2016 में हुई थी। वह बताते हैं कि आश्रम में 102 बुजुर्ग रहते हैं। जिसमें 35 महिला बुजुर्ग हैं। जबकि 150 बुजुर्गों के रखने की क्षमता है। रहने के लिए कुल चार हाल बने हैं। यहां सभी एक साथ रहते हैं। उन्होंने बताया कि आश्रम में आने वाले अधिकतर बुजुर्ग अपने बेटों के सताए होते हैं। वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्गों में जरूरतमंद ही नहीं, बल्कि साधन संपन्न परिवारों के लोग भी होते हैं। वहीं गरीब परिवारों के लोग भी आश्रम में पनाह लिए हुए हैं। कोरोना काल में लॉकडाउन दौरान भी वृद्धजन आश्रम में ही रहे। कई बेटे तो लाकडाउन में भी वृद्धों को आश्रम पहुंचा गए थे।
उन्होंने बताया कि दिन में तीनों वक्त का खाना और सुबह-शाम का चाय नाश्ता वृद्धों को दिया जाता है। उनकी देखभाल, कपड़े धोने, साफ-सफाई व खाने-पीने के लिए कर्मचारी रखे हुए हैं। चिकित्सकों की ओर से बुजुर्गों के स्वास्थ्य की जांच की जाती है। वहीं सप्ताह में काउंसिलिंग भी की जाती है। इसके अलावा योगासन भी करवाया जाता है।
मात्र दो कमरों से शुरू हुआ था वृद्धाश्रम
वृद्धाश्रम अधीक्षक ने बताया कि 2016 में दो कमरों से ही वृद्धाश्रम की शुरूआत हुई। धीरे-धीरे कमरों की संख्या बढ़ाते हुए चार की। पहले इतनी सुविधाएं नहीं थीं, मगर धीरे-धीरे सब संभव होता गया। उन्होंने कहा कि इन वृद्ध लोगों की सेवा कर उन्हें असीम खुशी मिलती है।
दुख-सुख करते हैं सांझा, लूडो-कैरम खेलकर करते हैं टाइम पास
वृद्धाश्रम के बुजुर्गों ने बताया कि उनके लिए टाइम पास करने के लिए लूडो, कैरम बोर्ड, प्लेयिंग कार्ड रखे हुए हैं। जो ग्रुप बनाकर खेलते हैं। शाम को चाय की टेबल पर एक-दूसरे से दुख-सुख सांझा करते हैं। वहीं रात्रि को एक साथ बैठकर एलसीडी पर धार्मिक भजन, रामायण, महाभारत देखते हैं। खाली वक्त में पौधों की देखभाल करते हुए वक्त गुजारते हैं।