ब्रह्मा इस नगरी की बुद्धि से, विष्णु चक्र से और मैं स्वयं अपने त्रिशूल से अयोध्या की रक्षा करता हूं। अयोध्या शब्द में ही ब्रह्मा, विष्णु और शिव का निवास है। कैलाश पर्वत पर भगवान शिव ने माता पार्वती को अयोध्या की महिमा और इतिहास बताया। महादेव शिव ने बताया कि अयोध्यापुरी सभी नदियों में श्रेष्ठ सरयू नदी के दाहिने किनारे बसी हुई है। अयोध्या में जन्म लेने वाले प्राणी अजन्मा हैं, मानव सृष्टी सर्वप्रथम यहीं पर हुई थी।
आकारो ब्रह्म रूपस्य, घकारो रुद्र रूपते।
यकारो विष्णु रूपस्य, अयोध्या नाम राजते।।
एतद्वेशसृतस्य सकाशादगजन्मना।
स्व-स्वं चरितं शिक्षरेन पृथ्व्यिां सर्व मानवा:।। (मनुस्मृति)
अद्भुत! अग्म्य! अनादि-अनंत पावन अयोध्या नगरी सृष्टी की उत्पत्ति की साक्षी है। सत्य-सनातन अयोध्या के गर्भनाल से जुड़ा है, जिसकी चर्चा इन दिनों पूरी दुनिया में है। भारतवर्ष के उत्थान-पतन की कहानी कहती अयोध्या पांच सौ सालों के लंबे संघर्ष के बाद अपने दिव्य स्वरुप को धारण कर रही है। कैसी थी अयोध्या? क्या था उसका महत्व और किन वेद-पुराणों, ग्रंथों में अयोध्या की क्या चर्चा की गई है? इसकी गहन पड़ताल करेंगे। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के पूर्वजों से लेकर काल चक्र में आए झंझावातों की चर्चा करेंगे। तो मुगल आक्रमण से लेकर, मंदिर आंदोलन, कारसेवा और अदालती निर्णय समेत भव्य मंदिर निर्माण की रोचक घटनाओं, तथ्यों और तर्को से भी साक्षात्कार कराएंगे...
हमारे इस अभियान की सबसे बड़ी चुनौती अयोध्या के ज्ञात-अज्ञात प्राचीन इतिहास को समझना था। जिस पर आधुनिक इतिहासकारों ने बहुत कम लिखा है। वेद-पुराण और धर्मग्रंथों में अयोध्या को लेकर जो लिखा गया है, उसे कैसे समझा जाए? हमारी इस समस्या का समाधान किया अयोध्या धाम के संतों और विद्वानों ने, सबसे पहले हम पहुंंचे अयोध्या के हनुमत निवास के महंत आचार्य मिथिलेशनंदिनी शरण महाराज के पास जो प्राचीन अयोध्या के शोधार्थी रहे हैं। वह बताते हैं कि 'जिस समय दुनिया में मानचित्र का भी आविष्कार नहीं हुआ था, उस समय भारत भूमि पर सभ्यता का सूर्य अपनी किरणें बिखेर रहा था। उस समय भारत की राजधानी अयोध्या थी, जिसका प्रमाण है सृष्टि रचना का इतिहास।' आखिर इस दावे के पीछे सच्चाई क्या है? तो वह वेद-पुराणों से अनेक उदाहरण देते हैं और कहते हैं कि 'इतिहासकरों ने वेद-पुराणों को भी इतिहास के स्रोत के रुप में स्वीकार किया है।'
चौल्डियन सभ्यता के अनुसार पृथ्वी की उम्र लगभग 20 लाख वर्ष है, जबकि एबीलोनियन के अनुसार पृथ्वी की आयु लगभग 5 लाख वर्ष है। हमारे धर्मग्रंथों में विस्वान सूर्य को कहा जाता है, और इसे सूर्य का पुत्र भी कहा जाता है। वैवस्तमनु इसी सूर्यनारायण वंश के थे, जिसके नाम पर सूर्य वंश आया। आज भी सराय नाम का गांव अयोध्या में विद्यमान है, जहां इस वंश के लोग रहते थे। भूगोल के अनुसार अयोध्या 29-47 उत्तरी अक्षांश और 85-15 पूर्वी देशांतर पर अवस्थित है। वशिष्ठ संहिता में उल्लेख है कि
वैरेण्यं सर्व लोकनां हिरण्या चिन्मया जय।
अयोध्या नंदिनी सत्या राजिता अपराजिता।।
कल्याणकारी राजधानी या त्रिपादम्य निराजया।
गोलोक हृदयंन्था च संस्था सा साकेतपुरी।।
(वशिष्ठ संहिता, 47 व 48 श्लोक)
समस्त लोकों के माध्यम से जो वंदित है, ऐसी अयोध्यापुरी भगवान के समान चिन्मय अनादि है। यह आठ नामों से पुकारी जाती है जिसमें हिरण्या,चिन्मया,जया,अयोध्या,नंदिनी,सत्या और अपराजिता है। हिंदू धर्मग्रंथों में अयोध्या को सृष्टी की उत्पत्ति के साथ ही बताया जाता है। यहां तक कि रुद्रयामल ग्रंथ में इसे महाराज मनु ब्रह्मा जी से मांग कर पृथ्वी पर लाए ऐसा वर्णन किया गया है। अयोध्या के प्राचीन इतिहास को समझना बेहद जटिल कार्य है, लेकिन असंभव कदापि नहीं है। हमने इसे समझने के लिए अयोध्या गजेटियर से लेकर वाल्मीकि रामायण तक खंगालने का प्रयास किया। वाल्मीकि रामायण को देखने से यही लगता है कि अयोध्या दुनिया में मौजूद पहली राजधानी थी, जिसे महाराज मनु ने बसाया था। जिसकी लंबाई बारह योजन और विस्तार तीन योजन थी।
अयोध्या नाम तत्रास्ति नगरी लोकविश्रुता।
मनुना मानवेंद्रेण पुरैव निर्मिता स्वयं।।
आयता दश च द्वे च योजनानि महापुरी।
श्रीमति त्रीणि विस्तीर्णा नानासंस्थानशोभिता।।
(वाल्मीकि रामायण, बालकांड)
कौशल की राजधानी अयोध्या के चारों तरफ कोट था। कोट के ऊपर तरह-तरह के यंत्र रखे हुए थे। इन यंत्रों से अग्रिचूर्ण फेंका जाता और नगर की रक्षा की जाती थी। हमने जब इस बारे में जानने का प्रयास किया कि वाल्मीकि रामायण में अग्रिचूर्ण क्या बारुद को कहा गया है। तो इस बारे में रामायण के अध्येता संस्कृत के प्राध्यापक चंद्रमोहन शुक्ल कहते हैं कि 'अग्रिचूर्ण से आशय आज के बारुद से भले ही न हो, लेकिन यह बारुद का पूर्वज ही रहा होगा। उस समय की वैज्ञानिक प्रगति बेहद आगे थी, समय चक्र में हमने काफी चीजें खो दी हैं।' बहरहाल, वह रामायण की संस्कृत श्लोकों को हमारे लिए सरल कर देते हैं, और बताते हैं कि कोट एक प्रकार की मोटी दीवार हुआ करती थी। जिसके नीचे खाई थी और उसमें जल भरा रहता था। पास में ही सरयू का प्रवाह था, जिसका जल इन कोट के खाईयों में भरा रहता था।
अयोध्या नगर धन-धान्य से परिपूर्ण था। इसका उल्लेख कथावाचक आचार्य राजेश ठाकुर करते हैं। वह कहते हैं कि अयोध्या के उत्थान-पतन के पीछे के कारणों में यह बड़ा कारण रहा होगा। संस्कृत प्राध्यापक चंद्रमोहन शुक्ल कहते हैं कि रामायण में जो वर्णन है उसके अनुसार अयोध्या के चारों तरफ सैर करने की सड़कें थी, जिसे 'महापथ' कहा गया है। वह बताते हैं कि
मुक्तपुष्पावकीर्णेन जलसिक्तेन नित्यश:।।
अयोध्या में विशेष उत्सवों में शहर में सुगंधित जल का छिड़काव होता था। सुगंधित पुष्प सड़कों पर चारों तरफ होते थे और राह चलते लोग फूलों पर चला करते थे। महर्षि वाल्मीकि कहते हैं कि अयोध्यावासी धर्मपरायण, साधु और राजभक्त थे, चारों वर्ण के लोग अपने-अपने काम में सुखी थे। अयोध्या पर अपनी पड़ताल के सिलसिले में ही हमारे हाथ आई पश्चिमी इतिहास लेखक मार्शमैन की यह टिप्पणी, जिसमें वह लिखते हैं कि ....
'अयोध्या के राजा सगर बहुत प्रतापी और महाबली थे। उनके नाम पर ही समुद्र का नाम सागर पड़ा है। उनकी पत्नी महारानी शैव्या के पुत्र रोहित के साथ काशी में जाकर डोम के हाथ बिकने वाले सत्यवादी राजा हरिशचंद्र की जन्मभूमि और पतित पावनी गंगा जी को धरती पर लाने वाले महाराजा भगीरथ अयोध्या के राजा थे। इतना ही नहीं, मनुष्यों से लेकर देवताओं की सहायता करने वाले महाराजा दधीचि अयोध्या के सम्राट थे, जिन्होंने अपनी हड्डियों तक का जन कल्याण में दान कर दिया था। इसी वंश में भगवान का राम का जन्म हुआ था।'
आठ नामों से जानी जाती है अयोध्या
पृथ्वी पर सात मोक्षदायिनी नगरों में प्रथम नगरी अयोध्या को महाराजा मनु ने बसाया था। सरयू नदी के किनारे यह नगरी 12 योजन (144 किमी.) लंबी और तीन योजन (36 किमी.) चौड़ी थी। मान्यता है कि अयोध्या पहले भगवान बैकुंठनाथ की थी, इसे महाराजा मनु पृथ्वी पर अपना प्रधान कार्यालय बनाने के लिए उनसे मांगकर लाये थे।
बैकुंठ से लाकर मनु ने अयोध्या को पृथ्वी पर अवस्थित किया और फिर सृष्टि की रचना की। इस पावन भूमि की सेवा करने के बाद महाराज मनु ने इसे महाराजा इच्छवाकु को दे दिया था। प्राचीन ग्रंथों में अयोध्या को हिरण्या, चिन्मया, जया, साकेत, विशाखा, कौशलपुरी, अपराजिता और अवधपुरी भी कहा गया है। प्राचीन इतिहास की पुस्तकों से हमने जब अयोध्या को समझने का प्रयास किया तो इतिहास के जानकार कहते हैं कि ज्ञात इतिहास से भी प्राचीनतम इतिहास अयोध्या का है। जिसे इतिहास से आगे जाकर समझना होगा। हालांकि कौशल साम्राज्य के बारे में अनेक इतिहासकार लिखते हैं कि एक समृद्ध संस्कृति वाला प्राचीन भारतीय साम्राज्य था, जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिमी उड़िसा तक फैला हुआ था। उत्तर वैदिक काल के दौरान एक छोटे राज्य के रूप में उभरा, जिसका संबंध पड़ोसी विदेह से था। गोंडा के समीप सेठ-मेठ में आज भी इसके भग्नावशेष (टूटी-फूटी वस्तु के टुकड़े) मिलते हैं। चौथी शताब्दी ईसा पूर्व यहां का प्रमुख नगर साकेतनगर अयोध्या हुआ करता था जो भगवान राम की जन्मभूमि है। अयोध्या का अर्थ है जिससे 'युद्ध न किया जा सके'। वैसे तो ब्रह्मपुराण, विष्णु पुराण, वाराह पुराण, श्रीमद्भागवत, वायु पुराण, मत्स्य पुराण और ब्रह्मांड पुराण में अयोध्या की चर्चा की गई है, लेकिन स्कंद पुराण और पद्मपुराण में अयोध्या की विस्तार से वर्णन किया गया है।
हम कह सकते हैं कि काल के प्रवाह में अयोध्या उजड़ती, बसती और बदलती रही है लेकिन अयोध्या की सत्य, सनातन अंर्तधारा अनादि है, अनंत है, सृष्टी का विधान है।