राजस्थान की गर्म और शुष्क जलवायु के बीच ठंडी राहत देने वाला माउंट आबू, राज्य का एकमात्र हिल स्टेशन है। समुद्र तल से लगभग 1722 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह स्थल अरावली पर्वतमाला की हरी-भरी पहाड़ियों से घिरा हुआ है और यहां का शांत वातावरण किसी स्वर्ग से कम नहीं लगता।
यहाँ आपको ग्रामीण आदिवासी बस्तियों से लेकर औपनिवेशिक काल की झलक देने वाले ब्रिटिश शैली के बंगलों और शाही अवकाश गृहों तक का रंग-बिरंगा संगम देखने को मिलता है। चारों ओर फैली हरियाली, निर्मल झीलें और कलकल करते झरने माउंट आबू को वर्षभर आकर्षक और रमणीय बनाए रखते हैं।
प्राकृतिक सुंदरता के अलावा माउंट आबू जैन धर्म के अनुयायियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यहाँ के प्रसिद्ध दिलवाड़ा जैन मंदिर अपनी उत्कृष्ट वास्तुकला के लिए दुनियाभर के पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों को आकर्षित करते हैं।
यही कारण है कि राजस्थान पर्यटन के लगभग हर टूर पैकेज में माउंट आबू को एक प्रमुख गंतव्य के रूप में शामिल किया गया है।
इतिहास और पौराणिक पृष्ठभूमि
माउंट आबू का इतिहास प्राचीन पौराणिक कथाओं और लोककथाओं में रचा-बसा है। पुराणों में इसे अर्बुदारण्य या अर्भुद का वन कहा गया है। यह स्थान ऋषि वशिष्ठ और ऋषि विश्वामित्र के तप और निवास का क्षेत्र माना जाता है।
एक प्रचलित कथा के अनुसार, अर्भुद नामक एक नाग ने भगवान शिव के वाहन नंदी की रक्षा की थी। माना जाता है कि "माउंट आबू" नाम उसी अर्भुद के नाम पर रखा गया, जिसका यह छोटा रूप है।
एक अन्य किंवदंती में उल्लेख मिलता है कि ऋषि वशिष्ठ ने इस पर्वतीय क्षेत्र में एक विशेष यज्ञ किया था। उनकी प्रार्थना से अग्नि से एक वीर योद्धा प्रकट हुआ, जिसे अग्निवंशी राजपूतों का प्रथम पूर्वज माना जाता है।
माउंट आबू न केवल अपने प्राकृतिक सौंदर्य और शीतल जलवायु के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है। चाहे आप प्रकृति प्रेमी हों, इतिहास के जिज्ञासु हों या शांति की तलाश में एक आध्यात्मिक यात्रा पर हों – माउंट आबू हर किसी के लिए कुछ न कुछ खास समेटे हुए है।