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Travel & Culture

विभिन्नताओं से भरा हुआ एक अनूठा देश -पश्चिम बंगाल

Date : 10-Mar-2023

भारत एक समृद्ध देश है। यहां शक्तिशाली हिमालय से लेकर विशाल मरुस्थल तथा समुद्र तटों की ऐसी भूमि समाहित है जो इसे विभिन्नताओं से भरा हुआ एक अनूठा देश बनाती है। इसी भारत के पूर्वी हिस्से में स्थित है, एक ऐसा राज्य जो अपनी अलग ही पहचान के साथ निरंतर आगे बढ़ता जा रहा है। इस खूबसूरत राज्य का नाम है पश्चिम बंगाल। पश्चिम बंगाल एक ओर जहां अपने साहित्य और कला के लिए विश्व प्रसिद्ध है, वहीं दूसरी ओर अपनी सबसे अलग संस्कृति और विरासत के लिए भी जाना जाता है। इस राज्य में कई ऐसे आकर्षक स्थान हैं जो एक रोमांचक अनुभव की प्राप्ति करवाते हैं।  

 

यहां पर दूर-दूर तक फैली छोटी-छोटी पहाड़ियां, शांत समुद्र तट तथा मैंग्रोव से सजे हुए जंगल जैसी विभिन्न प्राकृतिक संपदाओं के भंडार हैं। इस राज्य की विशेषता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि यह उत्तर में महान हिमालय राज से लेकर दक्षिण में बंगाल की खाड़ी तक विस्तृत है। इसकी विशेषताओं में पौराणिक विरासत, शानदार वास्तुकला, रंगीन लोक पर्व, पारंपरिक संगीत, सुसज्जित कारीगरी तथा शिल्प और स्वादिष्ट व्यंजनों से निर्मित संस्कृति है। आज इस लेख के माध्यम से हम आपको भारत के इस समृद्ध राज्य के कुछ ऐसे पर्यटक स्थलों के बारे में बताएंगे जहाँ जाना आपके लिए एक शानदार अनुभव हो सकता है।

 

दक्षिणेश्वर काली मंदिर

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में स्थित विवेकानंद पुल के  करीब हुगली नदी के किनारे पर दक्षिणेश्वर काली का प्रसिद्ध मंदिर विराजमान है। यह ऐतिहासिक मंदिर हिंदुओं का तीर्थ स्थान माना जाता है। इस मंदिर में मुख्य रूप से भवतारिणी यानी कि देवी काली की पूजा की जाती है। भारत के विभिन्न मंदिरों में से यह मंदिर सर्व विख्यात है। इस मंदिर का निर्माण सन 1854 में जान बाजार की रानी रासमणि ने करवाया था। यह मंदिर 25 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। सन 1857-68 तक रामकृष्ण परमहंस इस मंदिर के मुख्य प्रधान पुरोहित थे और यहीं पर उनका साधना स्थल था। उनकी ऐतिहासिक स्मृति में एक कक्ष आज भी यहां संरक्षित रूप से मिलता है। इसके अलावा काली मंदिर के भीतर चांदी का एक ऐसा कमल का फूल बनाया गया है जिसकी हजार पंखुड़ियां हैं। यहां पर मां काली अपने विभिन्न शस्त्रों के साथ शिवजी के ऊपर खड़ी हैं। इस मंदिर के पास में ही बहने वाली पवित्र गंगा नदी (हुगली) इसे अत्यधिक आकर्षक बनाती है।

इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां पर 12 गुंबद हैं तथा मंदिर की चारों तरफ भगवान शिव के 12 मंदिर निर्मित किए गए हैं। यह मंदिर दक्षिण दिशा की ओर स्थापित है तथा तीन मंजिलों द्वारा निर्मित किया गया है, जिसमें ऊपर की दो मंजिलों में 9 गुंबद एक जैसी आकृति व आकार के बने हुए हैं और इन गुम्बदों की छत पर सुंदर-सुंदर आकृतियां उकेरी गई हैं। यहां पर आने वाले हर भक्त को मंदिर के दर्शन करके दिव्य अनुभूति की प्राप्ति होती है। इसलिए यदि आप कोलकाता घूमने का मन बना रहे हैं तो एक बार इस स्थान पर अवश्य जाएं।

बॉटनिकल गार्डन ऑफ इंडिया

पश्चिम बंगाल के खूबसूरत पर्यटन स्थलों में से एक बॉटनिकल गार्डन भी है। जिसे रॉबर्ट किड द्वारा 1787 में निर्मित किया गया था। हजारों एकड़ में विस्तृत रूप से फैला यह गार्डन अपनी हरियाली और विभिन्न प्रकार के पौधों की दुर्लभ प्रजातियों के लिए दुनिया भर में मशहूर है। यहां पर अलग-अलग प्रकार के पौधे विभिन्न रंगों और खुशबू के साथ खिले फूल, खूबसूरत प्राकृतिक दृश्य तथा शांत वातावरण यहां आने वाले हर पर्यटक का मन मोह लेती हैं। हर प्रकृति प्रेमी अपने दिन का एक समय तो यहां पर अवश्य गुजारना चाहता है। इस उद्यान का नाम 25 जून 2009 को सर जगदीश चंद्र बसु (जो कि एक वैज्ञानिक हैं तथा बंगाल से विशेष संबंध रखते हैं) के सम्मान में बदल दिया गया और इसका नया नाम जगदीश चंद्र बसु भारतीय वनस्पति उद्यान रखा गया है।

इसको उद्यान की खासियत यह है कि यहां पर पूरी दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बरगद का पेड़ स्थित है। यह वृक्ष अपने 10,000 वर्ग किलोमीटर के दायरे में विस्तृत रूप से फैला हुआ है और इसकी परिधि लगभग 330 मीटर से अधिक दूरी पर बताई जाती है। इस वृक्ष की करीब 420 शाखाएं हैं जो इसे अत्यंत सुंदर तथा आकर्षक दिखाती हैं। यह स्थान बरगद के पेड़ के साथ-साथ अपने विशाल आर्किड पौधों तथा पंच पाइन जीनस के विभिन्न पौधों के लिए विश्वविख्यात है। इनके अलावा यहां पर विभिन्न जानवरों की प्रजातियों को भी देखा जा सकता है। जिनमें जैक जैकॉल, इंडियन फाॅक्स तथा इंडियन मोंगोज के साथ सांप भी निवास करते हैं। यदि आप की जरा सी भी रुचि पौधों के बारे में जानने और विभिन्न जानवरों को देखने में है तो यह स्थान आपको बेहतर अनुभव दे सकता है।

दार्जिलिंग

दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल का एक जाना माना पर्यटन स्थल है। यह वास्तव में एक नगर है जो कि दार्जिलिंग जिले का मुख्यालय है। यह स्थान त्रिभुजाकार  शहर के रूप में  जाना जाता है। यहां पर प्रसिद्ध चाय के बागान स्थित हैं और यह चाय विश्व में विख्यात सर्वोत्तम चाय कही जाती है। दरअसल यहां के चाय उत्पादकों द्वारा काली चाय और फर्मेंटेड विधि का एक मिश्रण बनाया गया है, जो विश्व में सर्वोत्कृष्ट रूप में पहचाना जाता है। यह चाय दुनिया के कोने-कोने में अपनी पहचान बना चुकी है। दार्जिलिंग क्षेत्र में दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे को यूनेस्को द्वारा वर्ष 1999  में विश्व धरोहर स्थलों की सूची में सम्मिलित किया गया है। यह प्रसिद्ध हिमालयन रेलवे दार्जिलिंग नगर को समथर से संबद्ध करता है। 

इस स्थान का मुख्य आकर्षण यहां के पुराने और नए भवनों का ऐसा सम्मिश्रण है जो इन भवनों को एक खास खूबसूरती प्रदान करता है। इसके अलावा यहां पर कई ऐतिहासिक इमारतें, छोटी-बड़ी पहाड़ियां तथा विभिन्न तरह से निर्मित कंक्रीट के भवन हैं। यहां पर अभी तक भी ब्रिटिश शैली के कई ऐसे विद्यालय मौजूद हैं जो दूर-दूर से विद्यार्थियों को यहां आने पर मजबूर कर देते हैं। यहां पर विभिन्न मठ भी आकर्षण के केंद्र हैं जिनमें सक्या मठ, माकडोग मठ, घूम मठ, भूटिया बस्ती मठ आदि प्रसिद्ध हैं। इनके साथ चाय के बागान, ट्वाॅय ट्रेन, टाइगर हिल्स और यहां की चाय के साथ हस्तशिल्प के सामान की खरीदारी पर्यटकों को अपनी ओर लुभाती है। 

विक्टोरिया मेमोरियल

पश्चिम बंगाल में स्थित विक्टोरिया मेमोरियल एक स्मारक के तौर पर प्रसिद्ध है। यह स्मारक रानी विक्टोरिया के सम्मान में 1906-21 के अंतराल में बनाया गया है। दरअसल रानी विक्टोरिया के 25 वर्ष के शासनकाल के पूरा होने पर यह स्मारक निर्मित किया गया था। यह स्मारक सफेद संगमरमर से बनाया हुआ एक विशाल भवन है जिसमें मुगल शैली के गुंबद की छवि देखने को मिलती है। इस स्मारक का मुख्य आकर्षण यहां पर बनाया हुआ एक बड़ा संग्रहालय है। यह संग्रहालय बड़े-बड़े तथा अष्टभुजी गुंबद छतरियों से निर्मित हुआ है। जहां पर ऊंचे खंभे और गुंबद के विभिन्न कोने पौराणिक तथा ऐतिहासिक शैलियों के भव्यता को दर्शाते हैं।

इस संग्रहालय में रानी विक्टोरिया के स्टडी डेस्क तथा पियानो के साथ-साथ 3000 से ज्यादा वस्तुओं का संग्रह किया गया है। इन वस्तुओं में टीपू सुल्तान की तलवार, 1870 से पहले की विभिन्न दुर्लभ वस्तुएं, अबुल फजल द्वारा रचित आईने अकबरी की पांडुलिपि, ऐतिहासिक डाक टिकट, प्लासी के युद्ध में प्रयोग की गई बेंत तथा विभिन्न प्रकार के पश्चिमी तस्वीरें शामिल हैं। यह मेमोरियल  इतना विशाल बनाया गया है कि इसे अलग-अलग भागों में विभाजित किया गया है। जिसमें पुस्तकालय, उद्यान तथा संग्रहालय आदि शामिल हैं। यह सभी हिस्से इस जगह को पर्यटकों के लिए एक अविस्मरणीय यात्रा के रूप में कई सारे विभिन्न अनुभव दे जाते हैं। इसलिए यदि आप भी शांति की तलाश कर रहे हैं तो यहां आकर आप की तलाश पूरी हो सकती है।

दीघा पर्यटन स्थल

दीघा पश्चिम बंगाल का एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यह स्थान कोलकाता शहर से लगभग 187 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।राज्य सरकार द्वारा इस स्थान को गोवा के रूप में बदलने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं इसलिए इस स्थान का विकास अपनी चरम सीमा पर है। दरअसल दीघा में एक सुप्रसिद्ध समुद्र तट है जहां पर सूर्योदय और सूर्यास्त का खूबसूरत नजारा दिखता है।

इस सी-बीच की खास बात यह है कि यहां पर पानी की लहरें अत्यधिक शांत भाव से बहती हैं और इसके कारण समुद्र तट से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी तक यह समुद्र तैराकी के लिए सुरक्षा के लिहाज से उपयुक्त माना जाता है। इस स्थान का उल्लेख इतिहास में भी मिलता है और ऐतिहासिक रूप से इस जगह का नाम वीरकुल बताया गया है जिसकी खोज 18वीं सदी में अंग्रेजों द्वारा की गई थी। दीघा के प्रमुख समुद्री तट, यहां पर मौजूद खजूर के पेड़, विभिन्न प्रकार की वनस्पतियां तथा मंदिर यहां के जीवंत प्राकृतिक सुंदरता को दर्शाते हैं और हर वर्ष अधिक से अधिक पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। दीघा के विभिन्न समुद्र तटों में शंकरपुर बीच, तालसारी बीच, न्यू दीघा बीच आदि विशेष रूप से सम्मिलित हैं। यदि आप समुद्र तट पर घूमने के शौकीन हैं तो दीघा आपके लिए बेस्ट प्लेस है।

 सिलीगुड़ी

सिलीगुड़ी पश्चिम बंगाल का एक नगर होने के साथ-साथ पर्यटन स्थल के रूप में विकसित मुख्य स्थान है। यह नगर जलपाईगुड़ी जिले तथा दार्जिलिंग जिले के बीच में स्थित है। जिसका आधा-आधा भाग दोनों जिलों में आता है। वास्तव में सिलीगुड़ी सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल के व्यापार का मुख्य केंद्र माना जाता है। यहां से जूट का व्यवसाय प्रमुख रूप से किया जाता है। भौगोलिक दृष्टि से यह नगर पूर्वोत्तर भारत के सबसे बड़े नगर गुवाहाटी के बाद दूसरे स्थान पर आता है, जोकि एक ओर से बांग्लादेश तथा दूसरी ओर नेपाल की सीमा से जुड़ा हुआ है। पर्यटन के लिहाज से देखा जाए तो सिलीगुड़ी नगर महानंदा नदी के तट पर स्थित है। यह जलपाईगुड़ी से 42 किलोमीटर की दूरी पर स्थित आवागमन का प्रमुख केंद्र और पर्यटकों का मुख्य आकर्षण है। इस स्थान पर मुख्य रूप से चाय और इमारती लकड़ी के साथ कई वन्य जीव अभ्यारण में भी स्थित हैं। इनमें सालूगारा मठ, महानंदा वन्यजीव अभयारण्य, इस्कान मंदिर, उत्तरी बंगला विज्ञान भवन तथा होंग-कोंग मार्केट घूमने की जगहों में शामिल हैं।

सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान

सुंदरबन पश्चिम बंगाल के दक्षिणी छोर पर गंगा नदी का एक डेल्टा क्षेत्र है, जो सरकार द्वारा पहले राष्ट्रीय उद्यान तत्पश्चात बाघ संरक्षित क्षेत्र तथा अब बायोस्फीयर रिजर्व बनाया गया है। यह पूरी दुनिया का सिर्फ एक ही ऐसा नदी डेल्टा है जहां पर बाघ मिलते हैं। दरअसल यह क्षेत्र मैंग्रोव के घने वनों से निर्मित है। यहां पर रॉयल बंगाल टाइगर का बसेरा है। यहां लगभग 103 की संख्या के आसपास रॉयल बंगाल टाइगर पाए जाते हैं। इनके अलावा विभिन्न पक्षियों, सरीसृप, मगरमच्छ, लोमड़ी, जंगली सूअर, हिरण, समुद्री कछुए तथा अन्य जीव-जंतुओं की अलग-अलग प्रजातियां यहां पर मिलती हैं। जिस कारण इस क्षेत्र को सन 1984 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। 

सुंदरवन का यह क्षेत्र गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी के डेल्टा से बना हुआ है। यहां पर विशेष प्रकार के सुंदरी वृक्ष पाए जाते हैं इस वजह से ही इस स्थान को सुंदरवन कहा जाता है। दरअसल इस जगह को दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव वन की ख्याति प्राप्त है। यह मैंग्रोव वन विस्तृत रूप से जल, दलदल तथा जमीन पर फैले हुए हैं और अपने अंदर कई सारे रहस्यों को समेटे हुए हैं। वास्तव में मैंग्रोव के जंगल बंगाल की खाड़ी से आने वाले साइक्लोनिक डिप्रेशन के कारण उठने वाली लहरों के प्रभाव से बांग्लादेश तथा भारत के लोगों को सुरक्षित रखते हैं। यदि आप भी ऐसे प्राकृतिक सौंदर्य को देखने में दिलचस्पी रखते हैं तो यहां जाना सभी के लिए रोमांच से भरा हुआ सफर हो सकता है।

गंगासागर

गंगासागर वैसे तो एक समुद्र तट है परंतु इस स्थान को भारत के प्रमुख तीर्थ स्थानों में सम्मिलित किया गया है। क्योंकि इस स्थान पर मकर संक्रांति के अवसर पर एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। जहां पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु गंगा जी स्नान के लिए आते हैं। दरअसल इस स्थान पर भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा गंगोत्री के गोमुख ग्लेशियर से निकलकर विभिन्न पड़ावों को पार कर पश्चिम बंगाल में आकर सागर से मिल जाती है। जहां पर गंगा सागर में मिलती है उस स्थान को गंगा सागर कहा जाता है। इस जगह का दूसरा नाम सागर द्वीप भी है। दरअसल कहा जाता है कि यहां पर डुबकी लगाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह तीर्थ स्थान पश्चिम बंगाल की दक्षिण दिशा में 24 परगना जिले में है। यहां पर प्रसिद्ध कपिल मुनि का मंदिर भी अवस्थित है। वास्तव में देखा जाए तो यह स्थान मुख्य रूप से एक टापू ही है जो गंगा के मुहाने पर बना हुआ है। कहा जाता है कि कई सालों पहले इस स्थान पर गंगा की एक बड़ी धारा सागर में मिलती हुई दिखती थी। परंतु अब इसका मुहाना काफी पीछे हो गया है, जिस कारण द्वीप के पास में एक छोटी सी जलधारा है जो अब सागर में मिल पाती है। यह स्थान एक पावन महाततीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है। अतः यहां आकर आत्मिक शांति मिलती है। इसलिए इस स्थान के दर्शन अवश्य करने चाहिए।

हावड़ा 

हावड़ा नाम जग प्रसिद्ध है। यह शहर पश्चिम बंगाल राज्य के एक बड़े औद्योगिक शहर के रूप में जाना जाता है। यह राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर है जो कि हावड़ा जिले का मुख्यालय बताया जाता है। हावड़ा हुगली नदी के दक्षिणी छोर पर निर्मित एक शहर है जो कोलकाता की जुड़वा के रूप में प्रसिद्ध है। यह शहर समुद्र तल से 12 मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित है। इस शहर में एक ब्रिज बना हुआ है जो संपूर्ण विश्व में प्रमुख रूप से भारत के लिए मुख्यतः आकर्षण का केंद्र रहा है। यह ब्रिज हावड़ा ब्रिज के नाम से जाना जाता है। इसके कारण ही हावड़ा शहर राज्य के एक महत्वपूर्ण परिवहन केंद्र के रूप में सामने आया है। इसलिए यदि आप पश्चिम बंगाल घूमने का मन बना रहे हैं तो हावड़ा ब्रिज पर जाने से स्वयं को रोक नहीं पाएंगे।

तारापीठ

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में एक शक्तिपीठ स्थित है जो तारापीठ नाम से प्रसिद्ध है। तारापीठ में बंगाल की सुप्रसिद्ध देवी तारा की पूजा अर्चना की जाती है। तारा देवी के कारण ही इस स्थल का नाम तारापीठ पड़ा था। दरअसल यह स्थान एक शक्ति पीठ इसलिए है क्योंकि हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार जब माता सती द्वारा देह त्याग किया गया था, तो उनके शरीर के विभिन्न हिस्से जहां-जहां पर गिरे वहां पर शक्तिपीठ बन गए और माना जाता है कि इस स्थान पर माता की तीसरी आंख गिरी थी। हालांकि यह स्थान शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है परंतु फिर भी यह कुल 51 पीठ में सम्मिलित नहीं है। इस स्थान को लेकर अनेक कथाएं प्रचलित हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार इसे गौतम बुद्ध से भी जोड़ा जाता है। दरअसल तारा देवी की उपासना बौद्ध समुदाय में काफी प्रसिद्ध है। इन सबके अलावा इस शक्तिपीठ की मुख्य विशेषता यह है कि मां तारा देवी की नवरात्रि के अष्टमी में तीन बार आरती की जाती है। जबकि बाकी पूरे वर्ष आरती सिर्फ दो बार ही संपन्न होती है।

 

 

इन सभी स्थलों के अलावा पश्चिम बंगाल राज्य में कालिमपोंग, गोपाल जी मंदिर, बल्लभपुर वन्य जीव अभ्यारण, गोरूमारा राष्ट्रीय उद्यान, शांतिनिकेतन तथा कोलकाता में कई ऐसे दर्शनीय स्थल हैं जो पर्यटकों को काफी पसंद आते हैं।

 

 

 
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