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किसी भी व्यक्ति की वास्तविक स्थिति का ज्ञान उसके आचरण से होता हैं।

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चाणक्य नीति:- सज्जनों का सम्मान करें

Date : 20-Mar-2024

 

 
यहां आचार्य चाणक्य परिस्थितिवश आचरण में आनेवाले परिवर्तन के स्तर और स्थिति को इंगित करते हुए धीरे गंभीर व्यक्ति की श्रेष्ठता प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि सागर की तुलना में भी धीरे-गंभीर पुरुष को श्रेष्ठतर माना जाना चाहिए क्योंकि जिस सागर को लोग इतना गंभीर समझते हैं, प्रलय आने पर वह भी अपनी मर्यादा भूल जाता है और किनारों को तोड़कर जल-थल एक कर देता है, परन्तु साधु अथवा श्रेष्ठ व्यक्ति संकटों का पहाड़ टूटने पर भी श्रेष्ठ मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करता |
 
यूँ तो मर्यादापालन के लिए सागर आदर्श माना जाता है, वर्षा से उफनती नदियों को अपने में समेटता हुआ सागर भी अपनी सीमा नहीं तोड़ता, परन्तु प्रलय आने पर उसी सागर का जल किनारों को तोड़ता हुआ सारी धरती को ही जलमय कर देता है | सागर प्रलयकार में अपनी मर्यादा को सुरक्षित नहीं रख पाता, किन्तु इसके विपरीत साधु पुरुष प्राणों का संकट उपस्थित होने पर भी अपने चरित्र की उदात्तता का परित्याग नहीं करते| वे प्रत्येक अवस्था में अपनी मर्यादा की रक्षा करते हैं| इसीलिए संत पुरुष समुद्र से भी अधिक गंभीर माने जाते हैं और उनका सम्मान ही करना चाहिए |  
 
 
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