संसद में 26 बार से भी अधिक रखा गया है अविश्वास प्रस्ताव | The Voice TV

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संसद में 26 बार से भी अधिक रखा गया है अविश्वास प्रस्ताव

Date : 26-Jul-2023

मौजूदा केंद्र सरकार के कार्यकाल का आखिरी मानसून संसद सत्र 18 जुलाई से शुरू हो गया। जैसा कि तय माना जा रहा था कि सदन की बैठक की शुरुआत हंगामेदार रही। विपक्षी पार्टियों ने सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन की सरकार को कई मुद्दों पर घेरते हुए अविश्वास का प्रस्ताव रखा। लोकसभा अध्यक्ष ने इसे स्वीकार कर लिया है | आखिर यह अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है, सबसे पहले संसद में यह कब आया और अब तक इससे किसे क्या नुकसान हुआ हैः

अविश्वास प्रस्ताव क्या है

लोकसभा में अगर किसी भी प्रतिपक्ष की पार्टी को ऐसा लगता है कि सत्‍तारूढ़ दल या सरकार सदन में अपना विश्‍वास खो चुकी है और देश में सरकार की नीतियां ठीक नहीं हैं तो ऐसे में यह अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है। इसे नो कांफिडेंस मोशन कहा जाता है। विपक्ष यह दावा करता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है, ऐसे में सरकार को इसे साबित भी करना होता है। इस प्रस्‍ताव का प्रावधान संविधान के आर्टिकल 75 में किया गया है। इसके अनुसार सदन में मेजॉरिटी साबित न करने पर प्रधानमंत्री सहित कैबिनेट को त्‍याग पत्र देना होता है।

अविश्वास प्रस्ताव का नियम

संविधान में अविश्वास प्रस्ताव का कोई जिक्र नहीं है। लेकिन अनुच्छेद 118 के तहत हर सदन अपनी प्रक्रिया बना सकता है जबकि नियम 198 के तहत ऐसी व्यवस्था है कि कोई भी सदस्य लोकसभा अध्यक्ष को सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे सकता है।

किस तरह पारित होता है प्रस्ताव

प्रस्ताव पारित कराने के लिए सबसे पहले विपक्षी दल को लोकसभा अध्यक्ष को इसकी लिखित सूचना देनी होती है। इसके बाद स्पीकर उस दल के किसी सांसद से इसे पेश करने के लिए कहता/कहती हैं। यह बात सदन में तब उठती है जब किसी दल को लगता है कि सरकार सदन का विश्वास या बहुमत खो चुकी है। फिलहाल विपक्ष भाजपा को घेरने में जुटी है। और लगभग सभी विपक्षी दल अब एकजुट होते नजर रहे हैं। 

कब स्वीकार किया जाता है अविश्वास प्रस्ताव और क्या होता है मंजूरी मिलने के बाद 

अविश्वास प्रस्ताव पारित कराने के लिए कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन हासिल होना चाहिए तभी उसे स्वीकार किया जा सकता है। लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर की मंजूरी मिलने के बाद 10 दिनों के अदंर इस पर चर्चा कराई जाती है। चर्चा के बाद स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग कराता है या फिर कोई फैसला ले सकता है।

मोदी सरकार के खिलाफ कितने अविश्वास प्रस्ताव

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भी वर्ष 2018 में भी विपक्ष अविश्‍वास प्रस्‍ताव लाया  गया था। उस समय 11 घंटे तक बहस चली थी। प्रस्‍ताव के बाद मोदी सरकार का जवाब भी बहुत चर्चित हुआ था। वोटिंग के बाद मोदी सरकार ने वहां बहुमत साबित कर दिया था। अब फिर से मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है ।

पहला अविश्वास प्रस्ताव नेहरू काल में आया था 

पहला अविश्वास प्रस्ताव भारतीय संसद के इतिहास में पंडित जाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में अगस्त 1963 में जे बी कृपलानी ने रखा था। तब इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 वोट पड़े थे और विरोध में 347 वोट पड़े थे। और सरकार चलती रही थी। 

अभी तक कितनी बार आया प्रस्ताव

देश अब 71 साल का हो चुका है। और संसद में 26 से ज्यादा बार अविश्वास प्रस्ताव रखे जा चुके हैं। लेकिन अगर इतिहास पर नजर डालें तो सिर्फ1978 में मोरारजी देसाई की सरकार गिरा दी गई थी। मोरारजी देसाई के शासन काल में उनकी सरकार के खिलाफ दो बार अविश्वास प्रस्ताव रखे गए थे। पहले प्रस्ताव के दौरान घटक दलों में आपसी मतभेद होने की वजह से प्रस्ताव पारित नहीं हो सका लेकिन दूसरी बार जैसे ही देसाई को हार का अंदाजा हुआ उन्होंने मतविभाजन से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। 

गांधी  जी के खिलाफ आए सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव


देश के इतिहास में सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान आए। उनके शासन काल में 15 से अधिक बार प्रस्ताव पेश किया गया। यही नहीं लाल बहादुर शास्त्री और नरसिंह राव की सरकारों ने भी तीन-तीन बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया। 1993 में नरसिंह राव बहुत कम अंतर से अपनी सरकार को बचाने में कामयाब हुए थे। 

किसने सबसे ज्यादा बार पेश किया प्रस्ताव

यह भी एक रिकॉर्ड है। सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का रिकॉर्ड भाकपा सांसद ज्योतिर्मय बसु के नाम दर्ज है। उन्होंने अपने चारों प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ रखे थे। 

वाजपेयी  
जी का रिकॉर्ड थोड़ा अलग है


स्वयं प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 
जी ने विपक्ष में रहते हुए दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किए हैं। पहला प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ था और दूसरा नरसिंह राव सरकार के विरुद्ध। प्रधानमंत्री बनने के बाद बाजपेयी ने दो बार विश्वास मत हासिल करने का प्रयास किया और दोनो बार वे असफल रहे थे। 1996 में तो उन्होंने मतविभाजन से पहले ही इस्तीफा दे दिया और 1998 में वे एक वोट से हार गए थे।


अस्सी के दशक में अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष के प्रतीकात्मक विरोध का एक साधन माने जाते थे, जिनका उद्देश्य सरकार की जवाबदेही तय करना होता था। लेकिन गठबंधन सरकारों के दौर में विपक्ष के इस हथियार का महत्व बढ़ गया है।

अविश्वास प्रस्ताव पर अब तक चार बार ध्वनि मत से फैसला हुआ है जबकि 20 बार इन पर मतविभाजन कराया जा चुका है।

विश्वास प्रस्ताव

जहां तक विश्वास प्रस्ताव का सवाल है, अब तक प्रधानमंत्रियों को दस बार ये मत लेने को कहा गया है। ऐसे मतों में पांच सफल रहे थे और पांच असफल रहे। नब्बे के दशक में विश्वनाथ प्रताव सिंह, एच डी देवेगौड़ा, इंद्रकुमार गुजराल और अटल बिहारी की सरकारें विश्वास प्रस्ताव हार चुकी हैं।
1979
में ऐसे ही एक प्रस्ताव के पक्ष में जरूरी समर्थन जुटा पाने के कारण तत्काली प्रधानमंत्री चरण सिंह ने इस्तीफा दे दिया था।

 
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