मप्रः दो दिवसीय महाबोधि महोत्सव शुरू, देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु पहुंचे सांची | The Voice TV

Quote :

सपनों को हकीकत में बदलने से पहले, सपनों को देखना ज़रूरी है – डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम

National

मप्रः दो दिवसीय महाबोधि महोत्सव शुरू, देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु पहुंचे सांची

Date : 26-Nov-2022

 रायसेन, 26 नवंबर (हि.स.)। मध्य प्रदेश के विश्व प्रसिद्ध बौद्ध पर्यटन स्थल सांची में कोरोना काल के बाद पहली बार बौद्ध वार्षिक महोत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है। हर साल आयोजित होने वाले दो दिवसीय महाबोधि महोत्सव का यहां शनिवार सुबह आठ बजे शुभारंभ हुआ। इस महोत्सव में शामिल होने के लिए भारत समेत श्रीलंका, जापान, वियतनाम सहित अन्य देशों के हजारों श्रद्धालु पहुंचे हैं। 

सांची को सबसे सुरक्षित पूर्ण स्तूप माना जाता है। यहां हर साल 26-27 नवंबर को महाबोधि महोत्सव मनाया जाता है। इस वार्षिक महोत्सव में भारत के अलावा अन्य देशों से लाखों बौद्ध अनुयायी आते हैं। कोरोना के चलते पिछले दो साल से यह आयोजन नहीं हो रहा था। अब कोरोना से जुड़े सभी प्रतिबंध हट गए हैं, इसलिए यह महोत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। महोत्सव के दौरान यहां पर्यटक बौद्ध दर्शन के साथ सनातन संस्कृति भी देख सकेंगे। सांची के प्राचीन शिलालेखों में बौद्ध दर्शन व सनातन संस्कृति का समावेश नजर आता है।

शनिवार सुबह सांची में प्रशासन व पुलिस की सुरक्षा भगवान बुद्ध के दो परम शिष्यों सारिपुत्र और महामोग्गलायन की पवित्र अस्थियों को स्तूप से निकालकर सार्वजनिक दर्शनार्थ चैत्यागिरी विहार मंदिर में रखा गया। इसके बाद यहां इन अस्थियों के दर्शन का सिलसिला शुरू हुआ। बड़ी संख्या में बौद्ध श्रद्धालु यहां पहुंच रहे हैं।

गौरतलब है कि सम्राट अशोक ने सांची में मुख्य स्तूप का निर्माण मिट्टी व ईंटों से कराया था। उसके बाद शुंग व सातवाहन के शासनकाल में पत्थरों से स्तूप का विस्तार किया गया। सम्राट अशोक ने ही यहां सिंह स्तंभ का निर्माण भी कराया। इसमें ब्राह्मी लिपि का उपयोग किया गया है। ब्राह्मी लिपि को संस्कृत के समान सनातन लिपि माना जाता है। विश्व संरक्षित धरोहर सांची के मुख्य स्तूप के प्राचीन तोरण द्वारों पर उकेरी गईं भगवान बुद्ध की जातक कथाओं में भी सनातन संस्कृति मिलती है। जिस प्रकार सनातन में भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की कथा है, उसी तरह भगवान बुद्ध की जातक कथाओं का चित्रण स्तूप के तोरण द्वारों पर मिलता है। भगवान बुद्ध के पूर्व जन्मों की जातक कथाओं को पत्थरों के स्तंभों पर उकेरा गया है।

सांची बौद्ध विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. संतोष दीक्षित का कहना है कि बौद्ध धर्म में सनातन के सिद्धांत समाहित हैं। बौद्ध और सनातन दोनों ही दर्शन में मानव कल्याण की भावना शामिल है। बुद्ध के पूर्वज सनातन धर्म के मानने वाले रहे हैं। बुद्ध ने जन्म से लेकर निर्वाण तक अपने जीवनकाल जो भी प्राप्त किया उसमें सनातन दर्शन का अहम योगदान दिखाई देता है। 

प्रोफेसर डॉ. नवीन दीक्षित का कहना है कि भारतीय दर्शन में उपनिषदों में जिस प्रकार निर्वाण, आध्यात्मिक साधनाएं, दुखों का निदान, ज्ञान की प्राप्ति व पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति की बातें कहीं गई हैं वे सभी भगवान बुद्ध के उपदेशों व जीवन वृतांत में भी नजर आती हैं। इसलिए यह कहना सही है कि बौद्ध तथा सनातन संस्कृति एक-दूसरे में समाहित है। 

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश/वीरेन्द्र

 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload

Advertisement









Advertisement