संविधान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री का संबोधन
-लीगल प्रोफेशन में वंचितों की हिस्सेदारी बढ़नी चाहिए: चीफ जस्टिस
नई दिल्ली, 26 नवंबर (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट में संविधान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि आज 26/11 हमले की बरसी के मौके पर हमले में जान गंवाने वालों को मैं याद करता हूं। उन्होंने कहा कि भारत की उभरती शक्ति को दुनिया आशा की नजरों से देख रही है। देश अपनी विविधताओं को साथ लिए सफलतापूर्वक बढ़ रहा है। इस मौके पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि संविधान की कहानी संघर्ष और बलिदान की कहानी है। संविधान के जरिये ही वंचितों को न्याय मिल सका है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि यह कर्तव्य काल है। अगले 25 साल महत्वपूर्ण हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि एक सप्ताह बाद भारत को जी-20 की अध्यक्षता भी मिलने वाली है। उन्होंने कहा कि भारत की उपलब्धियां दुनिया के सामने लेकर जाएं। युवाओं को संविधान और वह जैसे बना उसकी जानकारी हो। संविधान सभा में समाज के पिछड़े हिस्से से आई महिला सदस्य ने ऐसे विषय रखे जिसने निर्माण में अहम रोल निभाया।
प्रधानमंत्री ने महाभारत के एक श्लोक को उद्धृत करते हुए कहा कि लोकरंजन और लोक संरक्षण दोनों कार्य शासन के हैं। संविधान का आधार वाक्य हम भारत के लोग, सिर्फ तीन शब्द नहीं बल्कि सारगर्भित दर्शन है।न्याय प्रक्रिया को अधिक सुविधाजनक बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने और अधिक तेज कदम बढ़ाए हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी का यह अमृत काल देश के प्रति कर्तव्य काल है। हमारा दायित्व ही प्राथमिकता है। कर्तव्य पथ पर दायित्व का भान जरूरी है।
इस मौके पर चीफ जस्टिस ने कहा कि औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लड़ाई के साथ-साथ संविधान को लिखने का काम भी किया गया। जब देश आजाद हुआ तो सामाजिक बुराइयां काफी थीं। हमें इसके खिलाफ आगे भी लड़ाइयां लड़नी है। उन्होंने कहा कि लीगल प्रोफेशन में भी वंचितों की हिस्सेदारी बढ़नी चाहिए। हमारे जैसे बहु सांस्कृतिक देश में न्यायपालिका के सामने सबसे बड़ी चुनौती वंचितों तक न्याय की पहुंच बनाना है। न्यायपालिका की कोशिश लोगों तक पहुंचने की होनी चाहिए। इस मौके पर केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू, अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी, जस्टिस संजय किशन कौल ने भी संबोधित किया।
हिन्दुस्थान समाचार/ संजय/संजीव/मुकुंद