अयोध्या और मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को लेकर धर्मग्रंथों से लेकर इतिहास को समझने के लिए कुछ किताबों और संत महात्माओं से मिलने पर नित नई जानकारियां मिल रही हैं। राम की पैड़ी पर अनवरत यज्ञ-अनुष्ठान करने वाले संत पंडित कल्किराम ने बताया कि 'यदि आपको रामायण काल की कुछ घटनाओं को जानना है तो आपको 'जनकौरा' गाँव स्थित मंत्रकेश्वर महादेव मंदिर जाना चाहिए। वहां आपको महाराजा जनक द्वारा स्थापित शिवलिंग का दर्शन हो जाएगा।'
पंडित कल्किराम जी ने बताया कि शहर से सटे स्थल 'जनौरा' का नाम ही त्रेता युग में 'जनकौरा' हुआ करता था। पंडित कल्किराम को धन्यवाद करने के बाद जनकौरा को खोजने निकल पड़ा। नाका हनुमान गढ़ी के पास स्थित जनौरा (जनकौरा) पहुंच गए। मंदिर ढूंढने में कुछ खास कठिनाई नहीं हुई। लखौरी ईंटों (बेहद पतली ईंटों) से बना यह मंदिर काफी भव्य और मनमोहन था। मंदिर के सामने स्थित सरोवर उसकी भव्यता को और बढ़ा रहा था। यहां पर मंदिर के पुजारी शिवरतन सिंह से मुलाकात हुई। हमने मंदिर के पास स्थापित एक शिवलिंग और उनके सामने स्थापित भगवान नंदी को देखा।
पुजारी शिव रतन सिंह ने बताया कि 'जनकौरा का जिक्र तुलसीदास ने श्रीरामचरित मानस के बालकांड में भी किया है। जनकौरा से पहले इस स्थान का नाम जानकी नगर था।' उन्होंने बताया कि 'माता जानकी का भगवान राम से पाणिग्रहण होने के बाद वे अयोध्या आ गईं। इसके उपरांत महाराजा जनक काफी उदास रहने लगे। वे अयोध्या तो आना चाहते थे पर उनके सामने यह समस्या आ गई कि सनातन धर्म में बेटी के घर रुकना वर्जित है। महाराजा जनक ने इस परंपरा का पालन करते हुए अयोध्या के राजा दशरथ से उचित मूल्य चुकाकर जनकौरा को खरीद लिया और यहां आकर भगवान भोलेनाथ की आराधना के लिए मंदिर का निर्माण कराया।'
मंदिर के पुजारी ने शिवरतन सिंह ने बताया कि 'त्रेता युग में अवतरित भगवान राम जब धरती पर निर्धारित अपनी अवधि पूर्ण कर चुके तो कालदेव स्वयं उनसे मिलने आये और उन्होंने इसी स्थान पर बैठकर भगवान से मंत्रणा की थी। उसी के बाद इस मंदिर का नाम मंत्रकेश्वर महादेव पड़ा।'
पुजारी के अनुसार इस मंदिर में राजा जनक ने शिवलिंग स्थापित न कर महादेव और मां पार्वती का स्वरूप स्थापित किया था, यही कारण है कि उक्त स्वरूप अन्य शिवलिंग से भिन्न है। अयोध्या के मुख्य सात पीठों में मंत्रकेश्वर महादेव मंदिर भी शामिल है। बताया यह जाता है कि बाबर की सेना ने इस मंदिर को भी काफी क्षति पहुंचाई थी, लेकिन वह भगवान के स्वरूप को नुकसान नहीं पहुंचा सका। यहां पर स्थित प्राचीन शिवलिंग कई स्थानों से टूट चुका था। इस स्वरूप के पौराणिकता का अनुमान भी लगाना कठिन हो रहा था।