NASA ने मंगल ग्रह पर इंजीन्यूटी हेलिकॉप्टर उड़ाया| इस हेलिकॉप्टर की इस साल अपनी 72वीं उड़ान के समय हार्ड लैंडिंग हो गई थी| तब से ये सवाल उठ रहा था कि क्या इंजीन्यूटी की जिंदगी खत्म हो गई| काफी जांच-पड़ताल के बाद ये पता चला है कि इंजीन्यूटी को दूसरी जिंदगी मिल गई है. वो मंगल पर दूसरा काम करेगा |
इंजीन्यूटी हेलिकॉप्टर (Ingenuity Helicopter) दुनिया का पहला ऐसा यंत्र जिसने मंगल की सतह पर खूब उड़ान भरी| इस साल 18 जनवरी को अपनी 72वीं उड़ान के समय इसकी हार्ड लैंडिंग हुई| इसके बाद से यह उड़ नहीं पाया | नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (JPL) ने 11 दिसंबर 2024 को एक नई सूचना दी|
कयास ये लगाए जा रहे थे कि इस अद्भुत यंत्र का जीवन खत्म हो चुका है, लेकिन नासा ने बताया कि इंजीन्यूटी मरा नहीं है| सिर्फ गिरा है| यह पर्सिवरेंस रोवर के साथ जुड़ा हुआ है| कॉन्टैक्ट में है| लगातार मंगल ग्रह की सतह और वायुमंडल की डिटेल रोवर को भेज रहा है| रोवर वो जानकारी नासा को भेजता है |
इंजीन्यूटी हेलिकॉप्टर मंगल ग्रह पर तीन साल तक काम करता रहा. इस साल जनवरी में हार्ड लैंडिंग हुई, जिससे रोटर डैमेज हो गया| अब वह उड़ान नहीं भर सकता| लेकिन वह मौसम की जानकारी दे सकता है| नासा के वैज्ञानिकों ने बताया कि इंजीन्यूटी की दूसरी जिंदगी एक मौसम स्टेशन की तरह रहेगी|वह मंगल के मौसम की जानकरी देगा |
किसी दूसरे ग्रह पर धरती का पहला एयरक्राफ्ट
इंजीन्यूटी हेलिकॉप्टर के प्रोजेक्ट मैनेजर टेडी जानेतोस ने बताया कि मंगल ग्रह पर पहुंचा इंजीन्यूटी धरती से किसी दूसरे प्लैनेट पर भेजा गया पहला एयरक्राफ्ट था| नासा ने बताया कि इंजीन्यूटी के 72 एवियोनिक्स बैटरी सेंसर अब भी काम कर रहे हैं| यह हमारे लिए किसी तोहफे से कम नहीं है. वह टेलीमेट्री बताएगा| तस्वीरें लेता रहेगा| रोवर के ऑनबोर्ड कंप्यूटर में भेजता रहेगा| यह अगले सभी मिशन के लिए मौसम स्टेशन की तरह काम करता रहेगा|
कैसे हुई इस हेलिकॉप्टर की हार्ड लैंडिंग?
JPL ने इंजीन्यूटी के हार्ड लैंडिंग की काफी जांच-पड़ताल की| तब इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि हेलिकॉप्टर के सिस्टम में मंगल ग्रह की सतह को लेकर एक मोनोटोन बन गया था| क्योंकि सतह का रंग एक जैसा ही है. इसलिए वह मंगल ग्रह की सतह समतल जगह और ऊंची रेतीली जगह में अंतर नहीं कर पाया| इसलिए वह ऊंची रेतीले टीले पर जाकर हार्ड लैंड हुआ| इससे उसके रोटर में गड़बड़ी आ गई|
इस हादसे की जांच बेहद कठिन थी क्योंकि वहां कोई ब्लैक बॉक्स नहीं है, कोई चश्मदीद भी नहीं| इसके बाद 16 करोड़ किलोमीटर की दूरी |वैज्ञानिक वहां जाकर जांच कर नहीं सकते थे| इसलिए हादसे के समय के हर वीडियो फुटेज की जांच की गई बारीकी से अध्ययन किया| तब जाकर यह हादसे की असली वजह पता चली|