भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी उस विभूति का नाम है जिन्होंने 11 साल की आयु में घर छोड़ने का फैसला सही साबित कर दिखाया। सुरों की साधना करने वाले पंडित जोशी ने खुद को कला के प्रति कुछ इस प्रकार समर्पित कर दिया कि देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से अलंकृत हुए।
पंडित भीमसेन जोशी ऐसी किवदंती हैं, जिन्होंने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायक के रूप में खास पहचान बनाई। भारत के महानतम सुरों के साधकों में एक, पंडित भीमसेन जोशी का जन्म 4 फरवरी 1922 को धारवाड़ (कर्नाटक) में हुआ था।
बचपन में सुरों की साधना में खो जाते थे पंडित भीमसेन जोशी के पिता गुरुराज जोशी एक शिक्षक थे। दादा भीमाचार्य संगीतकार थे। बचपन में भीमसेन को अपनी माता के भजन सुनना बहुत अच्छा लगता था। घर के पास से गुजरने वाले संगीत मंडली को फॉलो करते-करते वे अक्सर अपना रास्ता भटक जाते थे।
भीमसेन 1932 में गुरु की तलाश में घर से निकले और रेल में बिना टिकट बैठ गये. उन्होंने बीजापुर तक का सफर किया और टी.टी. को राग भैरव में 'जागो मोहन प्यारे' सुनाकर मुग्ध कर दिया. बीजापुर पहुंचकर उन्होंने गलियों में गा गाकर, लोगों के घरों के बाहर रात गुज़ारी. इसी तरह उनके दो हफ्ते बीते अगले दो सालों तक वह बीजापुर, पुणे और ग्वालियर में रहे.
भीमसेन जोशी सवाई गंधर्व के शिष्य बने घर छोड़ने के तीन साल बाद 1936 में, भीमसेन जोशी महान साधक सवाई गंधर्व के शिष्य बन गए। चार साल तक 14 साल के भीमसेन जोशी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के बारीक पहलुओं की शिक्षा हासिल की।
19 वर्ष की आयु में पहली बार किसी सार्वजनिक मंच से अपनी गायन कला का प्रदर्शन किया था। उनका पहला एल्बम 20 साल की उम्र में निकला. दो साल बाद वह रेडियो कलाकार के तौर पर मुंबई में काम करने लगे उन्होंने पहली बार अपने गुरु सवाई गंधर्व के 60वें जन्मदिवस पर जनवरी 1946 में पुणे अपना गायन प्रस्तुत किया था। उनके द्वारा गाए गए गीत पिया मिलन की आस, जो भजे हरि को सदा और मिले सुर मेरा तुम्हारा बहुत प्रसिद्ध हुए।
15 साल पहले मिला 'भारत रत्न' शास्त्रीय कंपोजिशन- 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाली ऐसी प्रस्तुति है जिससे भीमसेन जोशी घर-घर में पहचाने गए। 15 साल पहले उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान- भारत रत्न से अलंकृत किया गया
प्रतिभाएं अमर हैं, पंडित जोशी बिना परछाईं के शरीर ! 24 जनवरी 2011 को पंडित भीमसेन जोशी चिरनिद्रा में सो गए,