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धर्म और नीति के अनुसार शासन करना ही सच्चा राजधर्म है - अहिल्याबाई होलक

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बुद्ध जयंती

Date : 12-May-2025

बुद्ध पूर्णिमा, जिसे बुद्ध जयंती या वेसाक के नाम से भी जाना जाता है, राजकुमार सिद्धार्थ गौतम के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण का प्रतीक है। यह पर्व पूरे भारत सहित श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार, थाईलैंड, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, कोरिया और अन्य बौद्ध देशों में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।

गौतम बुद्ध का जन्म 563 से 483 ईसा पूर्व के बीच नेपाल के लुंबिनी में हुआ था। उनकी माता रानी माया देवी ने उन्हें अपने मायके जाते समय जन्म दिया था और पिता राजा शुद्धोदन शाक्य वंश के प्रमुख थे। लुंबिनी में मायादेवी मंदिर, अशोक स्तंभ और उसके आसपास का बगीचा उनके जन्मस्थल को चिह्नित करते हैं। बुद्ध के जीवन की तीन प्रमुख घटनाएं—जन्म, ज्ञान प्राप्ति और मृत्यु—तीनों वैशाख पूर्णिमा के दिन होने के कारण यह दिन विशेष रूप से पवित्र माना जाता है।

तिब्बती बौद्ध परंपरा में बुद्ध के जन्म और बुद्धत्व प्राप्ति को अलग-अलग दिनों पर मनाया जाता है, जबकि भारत में बुद्ध पूर्णिमा को सार्वजनिक अवकाश के रूप में मान्यता बी.आर. अंबेडकर के प्रयासों से मिली थी। यह दिन विशेष रूप से बोधगया, लद्दाख, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग, कलिम्पोंग व कुर्सियांग जैसे इलाकों में प्रमुखता से मनाया जाता है।

गौतम बुद्ध का बचपन विलासिता में बीता। उनके जन्म के समय यह भविष्यवाणी की गई थी कि वह या तो महान सम्राट बनेंगे या एक महान संत। इसलिए उन्हें बाहरी दुनिया से दूर रखा गया। लेकिन 29 वर्ष की आयु में उन्होंने चार घटनाओं—बुजुर्ग, बीमार, मृत व्यक्ति और एक साधु—को देखकर जीवन की सच्चाई को समझा और मोहमाया त्यागकर तपस्या के मार्ग पर चल पड़े। उन्होंने अलारा कलामा और उद्रका रामपुत्र से योग और ध्यान की शिक्षा ली, लेकिन जब संतोष नहीं मिला, तो उन्होंने आत्मज्ञान की खोज जारी रखी।

बोधगया में एक पीपल वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ और वह बुद्ध कहलाए। ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने धर्म का प्रचार किया और बौद्ध धर्म की स्थापना की। उनका जीवन करुणा, अहिंसा और आत्म-प्रबोधन का प्रतीक बना।

बुद्ध पूर्णिमा का उत्सव औपचारिक रूप से 1950 में श्रीलंका के कोलंबो में हुए बौद्धों की विश्व फ़ेलोशिप के पहले सम्मेलन में तय किया गया। पूर्णिमा का दिन इसलिए चुना गया क्योंकि बुद्ध ने इसी दिन ज्ञान प्राप्त किया और महापरिनिर्वाण को प्राप्त हुए। 1999 में इसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी वेसाक दिवस के रूप में मान्यता दी गई।

बौद्ध धर्म की शिक्षाएं जैसे अहिंसा, समानता और जीवन के प्रति करुणा ने इसे व्यापक स्वीकृति दिलाई। बौद्ध धर्म ने विभिन्न संस्कृतियों को अपनाया और इसमें कई उप-संप्रदाय विकसित हुए। इसका एक प्रमुख पहलू यह है कि यह किसी ईश्वर की पूजा पर केंद्रित नहीं है, जिससे यह सभी पृष्ठभूमियों के लोगों के लिए एक समावेशी जीवन-दर्शन बन गया।

इतिहास के प्रमुख पड़ावों में 563 ईसा पूर्व बुद्ध का जन्म, 528 ईसा पूर्व ज्ञान प्राप्ति, 483 ईसा पूर्व निर्वाण और मौर्य सम्राट अशोक के काल में धर्म का पूरे एशिया में प्रचार शामिल है। इन घटनाओं ने बौद्ध धर्म को वैश्विक धर्म के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

 
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