देवर्षि नारद: तपस्या से ब्रह्मर्षि तक का सफर | The Voice TV

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देवर्षि नारद: तपस्या से ब्रह्मर्षि तक का सफर

Date : 14-May-2025

‘नारद’ शब्द दो भागों से मिलकर बना है – ‘नार’ का अर्थ है मानव जाति और ‘द’ का अर्थ है देना। इस प्रकार नारद का अर्थ होता है मानवता को ज्ञान प्रदान करने वाला। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार नारद जी ब्रह्मा जी के मानस पुत्र माने जाते हैं और उन्हें तीनों लोकों के दूत अथवा ब्रह्मांड के संदेशवाहक के रूप में जाना जाता है।

यह पर्व हर वर्ष ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। हालांकि, कुछ स्थानों पर इसे वैशाख शुक्ल द्वितीया को भी मनाया जाता है। यह दिन नारद मुनि की भक्ति, तपस्या और ज्ञान के प्रति समर्पण का प्रतीक होता है।

नारद जी के पूर्व जन्म की कथा अत्यंत रोचक है। वह एक समय ‘उपबर्हण’ नामक गंधर्व थे जिन्हें अपने रूप पर बहुत अभिमान था। जब ब्रह्मा जी की उपासना के समय वे अप्सराओं संग नृत्य-गान में लीन हो गए, तब ब्रह्मा जी ने उन्हें ‘शूद्र योनि’ में जन्म लेने का श्राप दिया। अगले जन्म में वे एक दासी पुत्र के रूप में जन्मे और भगवान की भक्ति में लीन रहते। एक बार ध्यान करते समय उन्हें भगवान के दर्शन हुए, जो क्षण भर में अदृश्य हो गए। आकाशवाणी हुई कि अगले जन्म में उन्हें भगवान विष्णु का पार्षद बनने का सौभाग्य प्राप्त होगा। फिर तीसरे जन्म में वे देवर्षि नारद के रूप में प्रकट हुए।

इस दिन भक्त विशेष पूजा और अनुष्ठान करते हैं। प्रातःकाल स्नान करके शुद्ध होकर व्रत और पूजा की तैयारी की जाती है। भगवान विष्णु और नारद मुनि की मूर्तियों या चित्रों की पूजा की जाती है। पूजा में तुलसी पत्र, पुष्प, घी का दीपक, अगरबत्ती और प्रसाद चढ़ाया जाता है। भगवान विष्णु की आरती की जाती है और भक्त विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हैं। इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान देना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है। काशी विश्वनाथ जैसे तीर्थ स्थलों के दर्शन कर पूजा करने से शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।

इस अवसर पर उपवास का भी विशेष महत्व होता है। भक्त दूध, फल और फलाहार का सेवन करते हैं, अन्न और दाल से परहेज करते हैं। दिनभर भगवान विष्णु और नारद जी की भक्ति में लीन रहते हैं। रात्रि में जागरण कर भजन-कीर्तन और मंत्रों का जाप करते हैं। इस व्रत का पालन श्रद्धा और संयम के साथ किया जाता है जिससे आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है। दान-पुण्य करना इस दिन विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।

नारद जयंती केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि ज्ञान, संवाद और भक्ति का प्रतीक है। नारद जी का जीवन हमें सिखाता है कि विनम्रता, भक्ति और तपस्या के माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति संभव है। इस दिन किए गए सत्कर्म, व्रत और भक्ति अनुष्ठान जीवन में शुभता, शांति और समृद्धि लाते हैं।

नारद जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं।

 
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