क्रांति कथा... 17 मई, 1933 : नहीं भूल सकता महावीर सिंह राठौर का बलिदान
स्वाधीनता संग्राम में यदि अहिसंक आंदोलन ने पूरे देश में जाग्रति का वातावरण बनाया तो क्रांतिकारी आंदोलन ने अंग्रेजों को सर्वाधिक विचलित किया। भारत का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहां से कोई न कोई नौजवान क्रांतिकारी आंदोलन से न जुड़ा हो। कासगंज जिले के महावीर सिंह राठौर ऐसे क्रांतिकारी थे। उन्होंने सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी भगत सिंह और दुर्गा भाभी को सुरक्षित लाहौर से निकाला था। क्रांतिकारी महावीर सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के कासगंज जिला के ग्राम शाहपुर टहला में 16 सितम्बर, 1904 को हुआ था। उनके पिता देवी सिंह राठौर संपन्न किसान थे। इस परिवार में कभी जमींदारी भी रही थी। समय के साथ परिवार आर्य समाज से जुड़ गया था। परिवार की पृष्ठभूमि और आर्यसमाज से संबद्धता के चलते यह परिवार भारत की सांस्कृतिक परंपराओं के प्रति समर्पित था और दासता से मुक्ति के अभियान में भी जुड़ गया था।
क्रांतिकारी महावीर सिंह की आरंभिक शिक्षा अपने गांव में हुई। उन्होंने कासगंज से इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण की। अपनी पढ़ाई के साथ कासगंज में ही वे क्रांतिकारी आँदोलन से जुड़ गए। यहां उन्होंने अनुकूल विचारों के किशोरों की टोली बनाई और जन जागरण में जुट गए। अंग्रेजों से भारत की मुक्ति के लिये "नौजवान सभा" की जो टोली कानपुर में बनी, उसके नायक महावीर सिंह थे। यह टोली क्रांतिकारियों के संदेश लाने ले जाने तथा अन्य सामग्री पहुंचाने का काम करती थी। इंटरमीडिएट पास करके आगे की पढ़ाई के लिये 1921 में कानपुर पहुंचे। कानपुर में पूरे देश की तरह असहयोग आंदोलन चल रहा था। क्रांतिकारी महावीर सिंह इस समय केवल सत्रह वर्ष के थे। उन्होंने अपनी इस किशोरवय में ही नौजवानों को एकत्र किया और प्रभात फेरी निकाली। प्रभात फेरी का यह क्रम कई दिन चला। वे कानपुर की लगभग हर प्रभात फेरी और स्वतंत्रता के लिए निकाए गए जुलूसों में शामिल होने लगे। इस सक्रियता से वे सबकी दृष्टि में महत्वपूर्ण हो गए।
कानपुर उन दिनों क्रांति का बड़ा केन्द्र था। क्रांति इस मिट्टी के कण-कण में रही है। 1857 में भी कानपुर की भूमिका महत्वपूर्ण रही। समय अवश्य बदला किन्तु क्रांति की चिंगारी कभी शांत नहीं हुई। कानपुर में क्रांति की इस चिंगारी को ज्वाला में बदलने में "प्रताप" समाचार पत्र की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है। क्रांति समर्थक नौजवानों के बीच प्रताप लोकप्रिय समाचार पत्र था। उस दौर के दो बड़े क्रांतिनायकों चंद्रशेखर आजाद और सरदार भगत सिंह से इस समाचार पत्र का गहरा संबंध था और नौजवानों को क्रांति से जोड़ने का भी एक महत्वपूर्ण सूत्र। किशोर वय से क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़े महावीर सिंह का संपर्क चंद्रशेखर आजाद और सरदार भगत सिंह से बना और वे सोशलिस्ट रिपब्लिक एशोसिएशन के सदस्य बने। यहां भी अपनी सक्रियता से महत्वपूर्ण हो गए। काकोरी कांड, सेक्टर्स वध से लेकर असेंबली बम कांड तक क्रांति की प्रत्येक गतिविधि में महावीर सिंह सहभागी रहे।
सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त और दुर्गावती देवी को लाहौर के मौजांग हाउस से सुरक्षित निकालने में महावीर सिंह की भूमिका महत्वपूर्ण थी। महावीर सिंह ने यह योजना पहले ही बना ली थी। और उसी योजना के अंतर्गत पुलिस की आंख में धूल झोंककर उन्हें सुरक्षित निकाल ले गए। अंततः लाहौर षडयंत्र मामले में संलिप्तता में महावीर सिंह भी गिरफ्तार हुए। उन्हें आजन्म कारावास की सजा हुई। उन्हें अंडमान की सेलुलर जेल भेजा गया। जहां क्रांतिकारियों को प्रताड़ना दी जा रहीं थीं।
इसके विरोध में महावीर सिंह राठौर ने भूख हड़ताल आरंभ की। इस भूख हड़ताल में उनके साथ क्रांतिकारी मोहित मोइत्रा और मोहन किशोर नामदास सहित तीस अन्य बंदियों ने साथ दिया। बंदियों की भूख हड़ताल तुड़वाने के लिए प्रताड़ना का नया दौर चला। 17 मई, 1933 को बलपूर्वक उनके मुंह में खाना ठूंसा गया। इसी प्रताड़ना के चलते उनकी मृत्यु हो गई । इसी भूख हड़ताल के चलते ही मोहित मोइत्रा और मोहन किशोर नामदास का बलिदान हुआ था। स्वतंत्रता के बाद क्रांतिकारी महावीर सिंह के सम्मान में उनकी एक प्रतिमा सेलुलर जेल में भी स्थापित की गई । एक प्रतिमा उनके गांव शाहपुर टहला में स्थापित की गई है।
(लेखक - रमेश शर्मा)