प्रभूतं कार्यमपि वा तत्परः प्रकर्तुमिच्छति ।
सर्वारम्भेण तत्कार्यं सिंहादेकं प्रचक्षते ॥
यहां आचार्य चाणक्य शेर से ली जानेवाली सीख के बारे में बता रहे हैं कि छोटा हो या बड़ा, जो भी काम करना चाहें, उसे अपनी पूरी शक्ति लगाकर करें ? यह गुण हमें शेर से सीखना चाहिए।
भाव यह है कि शेर जो भी काम करता है, उसमें अपनी पूरी शक्ति लगा देता है। अतः जो भी काम करना हो उसमें पूरे जी-जान से जुट जाना चाहिए।