राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल, 1889 को नागपुर में हुआ था। पेशे से डॉक्टर हेडगेवार बचपन से ही देशभक्ति के विचारों से ओतप्रोत थे। आरएसएस के स्वयंसेवक नाना पालकर ने हेडगेवार की जीवनी में उनके बचपन की ऐसी कई घटनाओं का जिक्र किया है, जिनसे उनके प्रारंभिक विचारों का पता चलता है।
भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और ए.पी.जे. अब्दुल कलाम भी उसी श्रृंखला में शामिल हैं। इसीलिए यह सवाल लाजिमी हो जाता है कि कौन थे डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, जिन्होंने अपने छोटे से कमरे में एक ऐसे संगठन की नींव रखी जो आज देश का ही नहीं, अपितु दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बन गया है।
डॉ. हेडगेवार ने एक सामाजिक संगठन बनाया या राजनैतिक; संघ सांस्कृतिक कार्य करता है या सरकार और सत्ता बनाने और पलटने का - इस पर भी पता नहीं कितनी चर्चाएं हो चुकी हैं। यह राष्ट्रीय ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के लिए भी चर्चा का विषय रहे हैं।
एक विचार से "प्रधान सेवक" तक का सफर
कैसे 1925 में जन्मा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक देश का प्रधान सेवक बनता है और राजभवन से राष्ट्रपति भवन तक की कुर्सी पर एक स्वयंसेवक बैठता है? डॉ. हेडगेवार के संघ पर कांग्रेस ने प्रतिबंध भी लगाया और उसे गांधी का हत्यारा भी कहा। सबूतों के अभाव में प्रतिबंध हटा भी और 1962 के भारत-चीन युद्ध में संघ स्वयंसेवकों की भूमिका देखकर 1963 में राजपथ पर परेड में भाग लेने के लिए बुलाया भी।
1971 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश को पाकिस्तान से स्वतंत्र कराने की मुहिम छेड़ी, तो संघ ने उसका समर्थन किया। युद्ध में सैनिकों को खून देने के लिए हजारों स्वयंसेवक कांग्रेस सरकार से वैचारिक मतभेद पीछे छोड़कर आगे आए। इसीलिए डॉ. हेडगेवार को और उनके दिए हुए अनुशासन, वैचारिकता और प्रबंधन के मंत्रों को जानना और भी जरूरी हो जाता है, जिस पर चलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इतनी लंबी दूरी तय कर ली है।
बचपन से ही देश प्रेम की भावना
1 अप्रैल, 1889 को नागपुर में जन्मे डॉ. हेडगेवार में अपनी माटी और देश से प्रेम-भाव उत्पन्न होने में समय नहीं लगा। उनको अपने समाज के प्रति गहरी संवेदनशीलता थी, जो इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के 60 वर्ष पूर्ण होने पर बांटी गई मिठाई को स्वीकार न करने से ही स्पष्ट पता लग जाता है। उन्होंने विद्यालय में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 'वंदे मातरम' के नारे भी लगाए, जिसके कारण उनको उस सरकार से मान्यता प्राप्त विद्यालय से निकाल भी दिया गया।
डॉ. हेडगेवार ने बंगाल के नेशनल मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की। बंगाल उस समय स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व कर रहा था। उसी दौर में डॉ. हेडगेवार भी क्रांतिकारियों की एक टोली “अनुशीलन समिति” के संपर्क में आए। पढ़ाई पूरी करके डॉ. हेडगेवार नागपुर वापस आ गए और लोकमान्य तिलक से प्रेरणा लेकर और प्रभावित होकर कांग्रेस के आंदोलन से जुड़ गए।
कारागार से बाहर आने के बाद और देश में हिंदू-मुस्लिम तनाव को देखकर वे बहुत दुःखी हुए। जब तनाव और बढ़ा, इसी बीच डॉ. हेडगेवार हिंदू महासभा के काम में भी जुट गए और विचार मंथन में लग गए कि हिंदुओं को संगठित कैसे किया जाए। आखिर उनको अपना जवाब मिल गया और 1925 में विजयादशमी के दिन उन्होंने संघ की स्थापना कर दी।
चंद्रशेखर परमानंद भिशीकर की किताब ‘डॉ. हेडगेवार – परिचय एवं व्यक्तित्व’ के अनुसार, उनका उद्देश्य काफी स्पष्ट था - संघ यानी हिंदुओं की संगठित शक्ति। उन्होंने ”हिन्दू राष्ट्र” को संघ का आधारभूत सिद्धांत बनाया।
संघ का तंत्र और मंत्र: एक अद्वितीय मॉडल
संगठन का उदय तो होता है, लेकिन अस्त होने में भी समय नहीं लगता। इसीलिए डॉ. हेडगेवार के संगठन के तंत्र और मंत्र को जानना साधारण से लेकर खास तक, सबके लिए जरूरी है, जिसके कारण संघ आज यहां तक पहुंच पाया है। उनमें व्यक्तिगत पद और प्रतिष्ठा की कोई लालसा नहीं थी, जो आज तक संघ में दिखती है। व्यक्ति को नहीं, ”भगवा ध्वज” को गुरु माना, “मैं नहीं तू ही” का विचार दिया।
शाखा को जुड़ने का साधन बनाया। शाखा मतलब एक जगह पर सब कार्यकर्ता एकत्रित होंगे और खेल खेलकर, देशभक्ति के गीत गाकर, चर्चा करके अपना शारीरिक और बौद्धिक विकास करेंगे। इसमें सबसे विशेष यह था कि शाखा की गतिविधियां इस प्रकार से नियोजित की गईं, जिसमें हर आयु के लोग सम्मिलित हो सकें। जाति के भेदभाव से संघ को दूर रखने के लिए नाम के पीछे जाति की जगह 'जी' शब्द का प्रयोग करना शुरू किया गया।
व्यक्ति तक सीमित न रहकर परिवार को विचार से जोड़ने के लिए कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया। अपने व्यक्तिगत जीवन की कठिनाइयों और चुनौतियों को कभी महत्व नहीं दिया, समाज और संगठन के लिए समर्पित हो गए। उनका व्यक्तिगत समर्पण देखकर संघ से जुड़ने वाले युवाओं को प्रेरणा मिली और एक बड़ी संख्या में युवाओं में अपना पूरा जीवन राष्ट्र और संघ के नाम करने का विचार पनपने लगा।
वह कहते थे, "पढ़ो, अपने व्यक्तित्व को जितना निखार सकते हो निखारो और फिर अपनी इच्छा से अपना जीवन राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगा दो।" कार्यकर्ताओं की संख्या बढ़ी और कार्य भी। इसका एक सबसे बड़ा कारण यह रहा कि संघ समाज पोषित संगठन बना, सरकार पोषित नहीं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हमें केरल में दिखता है, जहां आज तक संघ के राजनीतिक पक्ष भाजपा की सरकार नहीं बनी है, लेकिन कार्यकर्ता और कार्य में केरल कभी पीछे नहीं रहा।
डॉ. हेडगेवार ने बच्चों को लेकर संघ शुरू किया था, इससे साफ पता लगता है कि वह जल्दबाजी में नहीं थे, धैर्यवान थे और सबसे महत्वपूर्ण, डॉक्टर होने के बावजूद सरल स्वभाव के थे, अहंकार नहीं था। उनकी मृत्यु 21 जून, 1940 को नागपुर में हुई। वे आज भी लाखों-करोड़ों संघ स्वयंसेवकों के लिए ”डॉक्टर जी” और ”डॉक्टर साहब” हैं।