बलरामपुर नगर के निकट एक शिव मंदिर में एक साधु बाबा निवास करते थे। जीवनभर उन्होंने अच्छा आचरण किया था। दया, ममता उनके विशेष गुण थे। उस शिव मंदिर के पश्चिम की ओर एक बहुत बड़ा सरोवर था। सरोवर खूब गहरा भी था। मछलियाँ उसमें आनंद से रहती थीं। बाबा जब सरोवर पर जाते तो उन्हें देखकर मछलियाँ उनके निकट आ जाया करती थीं और अठखेलियाँ करती रहती थीं। बाबा की उस सरोवर पर सदा दृष्टि रहती थी और वे किसी को भी वहाँ से मछलियाँ नहीं पकड़ने देते थे।
एक बार एक म्लेच्छ दरोगा उस नगर में आ गया। कुछ लोगों ने उसके कान भर दिये कि शिव मंदिर के निकट जो सरोवर है, उसमें बहुत बड़ी-बड़ी और खूब सारी मछलियाँ हैं, किन्तु शिव मंदिर का बाबा उनको किसी को पकड़ने नहीं देता।
म्लेच्छ तो म्लेच्छ ही होता है। उसका धर्म कुछ होता नहीं। उसको न बाबा से लगाव और न शिव मंदिर से । उसने निश्चय कर लिया कि उस सरोवर की सारी मछलियों का वह एक एक कर पकड़वा लेगा। बस इतना विचार करते ही एक दिन उसने अपने साले को मछली पकडने के लिए उस सरोवर पर भेज दिया।
दोपहर का समय था। बाबा आराम कर रहे थे। दरोगा के साले ने सरोवर में अपना काँटा डाल दिया। बड़ी देर प्रतीक्षा करने पर भी एक भी मछली उसके काँटे में नहीं फँसी। बाबा को भी दरोगा के साले के आने की सूचना मिल गयी थी। बाबा दौड़े सरोवर पर आये और बड़े प्यार से दरोगा के साले को कहा-"बेटा! मैं किसी को भी इस सरोवर से मछलियाँ पकड़ने नहीं देता। और न मछलियाँ ही तुम्हारी बंसी में फँसेंगी। इसलिए अच्छा यही है कि तुम अपनी बंशी निकाल कर वापस चले जाओ।"
साला तो साला था। एक तो दिन भर बैठने पर भी मछली पकड़ में नहीं आयी और ऊपर से बाबा का उपदेश सुनने को मिल गया । क्रोध से भरा वह वहाँ से वापस चला गया और उसने जाकर दरोगा के कान और भर दिये, बाबा की खूब चुगली कर दी।
दरोगा को भी खूब क्रोध आ गया और दूसरे दिन उसने खूब साजो सामान के साथ तथा कुछ सिपाहियों को साले के साथ करके उसको कहा- "तुम मछलियाँ पकड़ने चलो, हम अभी आते हैं।"
साला सरोवर पर पहुँचा। और उसने अपना काम आरंभ कर दिया। बाबा को जब पता चला तो वे दौड़े-दौड़े सरोवर पर आये और कुछ रोष भरे शब्दों में बोले-"मैंने कल तुमको यहाँ आने को मना किया था, लेकिन तुम आज फिर आकर मछलियाँ पकड़ने लगे हो। तुम्हें पता नहीं, इस सरोवर की मछलियों की रक्षा हनुमान बाबा करते हैं?"
बाबा की बात पूरी होते-होते दरोगा भी वहाँ पहुँच गया। हनुमान जी वाली बात उसके कानों में भी पड़ गयी थी। उसे सुनकर वह आग बबूला हो गया और गरज कर अपने साले से कहने लगा-मारो इस बाबा को।"
बस फिर क्या था? साला उठा और ज्यों ही बाबा पर झपटने के लिए दौड़ा कि उसका पैर फिसल गया। पैर फिसलते ही यह जा वह जा.. वह सरोवर में डूब गया। सरोवर गहरा था, कितने नीचे वह गया होगा किसी को पता नहीं चला। पल भर में ही यह सब घटित हो गया।
दरोगा के आदेश पर अनेक आदमी और उसके सिपाही सरोवर में गोते लगाकर दरोगा के साले को ढूँढ़ने लगे, किंतु उसका कहीं पता ही नहीं चला। यह देखकर सब आश्चर्य चकित रह गये। दरोगा को बाबा का कथन स्मरण हो आया कि तालाब की रक्षा हनुमान बाबा करते हैं। साले का शव भी उस दिन ऊपर नहीं आया।
आखिर अपना सा मुँह लेकर दरोगा वापस चला गया। दूसरे दिन साले का शव सरोवर के ऊपर तैरता दिखाई दिया तो दरोगा ने उसे निकलवाया। शीघ्र ही दरोगा ने उस नगर से अपना स्थानांतरण करवा लिया। इसके बाद उस सरोवर की मछलियाँ सदा सुरक्षित रहीं। कहा जाता है कि यह घटना लखनऊ के निकट नगर बलरामपुर के झारखण्डी शिव मंदिर के समीप वाले सरोवर पर घटित हुई थी।