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सपनों को हकीकत में बदलने से पहले, सपनों को देखना ज़रूरी है – डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम

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झारखण्ड का इतिहास

Date : 05-Nov-2023

 भारतीय इतिहास की पुस्तकों से झारखण्ड’ का इतिहास और इसके जननायक प्रायः अनुपस्थित हैं। भारत इतिहास का सामान्य अर्थ इन्द्रप्रस्थ से लेकर पाटलिपुत्रा तक का इतिहास मात्रा ही है। प्राचीन काल के भारतीय इतिहास में यह क्षेत्रा मगध के अंतर्गत ही सम्मिलित माना गया है। तुर्क-मुगल काल में यह क्षेत्रा झारखण्ड के नाम से प्रख्यात हुआ। संभवतः जंगल-झाड़ की अधिकता के कारण। बुकानन के मत में काशी से लेकर बीरभूम तक सारे पहाड़ी प्रदेश को झारखंड कहते थे। दक्षिण में वैतरणी नदी इसकी सीमा थी। अकबरनामा के अनुसार छोटानागपुर खास तथा उड़ीसा के ट्रिव्युटरी स्टेट झारखंड कहलाते थे।

मुंडाओं का छोटानागपुर-प्रवेशः महाभारत युद्ध में मुंडाओं के भाग लेने का उल्लेख मिलता है। भीष्म पर्व में संजय भीष्म की सेना का वर्णन करते हुए कहता है कि इसके वाम अंग में करूषों के साथ मुंड, विकुंज, और कुडिवर्ष हैं। पाण्डवों ने मुंडों के मित्रा जरासंघ का वध किया था। अतः पाण्डवों के शत्राु कौरवों का साथ देना मुंडों के लिए स्वाभाविक था। प्राचीन मुंडारी संगीत में भी इस युद्ध का संकेत है।
असुरों का प्रभावः सूर्य के दक्षिणायन होने पर छोटानागपुर में मुंडाओं का तेजोदय हुआ। मुंडाओं एवं असुरों की प्राचीन गाथाओं से इस महत्वपूर्ण घटना का आभास मिलता है। शरत्चन्द्र राय ने मुंडा जाति का गहन अध्ययन प्रस्तुत करते हुए इस तथ्य का संकेत किया है। अनेक प्रमाणों के आधार पर उनका अनुमान है कि मुंडा जाति छोटानागपुर में पश्चिम दिशा से 600 ई. पूर्व प्रविष्ट हुई।
नागवंशियों का छोटानागपुर-प्रवेशः जनमेजय का नागयज्ञ, मध्यदेश एवं बिहार एक ऐतिहासिक दिग्दर्शन नामक ग्रंथों में प्राचीन नाग जाति के कृतित्वों का विस्तृत विवरण उपलब्ध है। वेणीराम महथा कृत नागवंशावली, घासीराम कृत नागवंशवली झूमर एवं छोटानागपुर महाराजा दृपनाथ शहदेव द्वारा बैसाख बदी 1, संवत् 1844 को भारत के तत्कालीन गवर्नर को दिए गए वंश-विवरण एवं तालिका-1 के साथ उक्त गं्रथों के संबंधित भागों के अध्ययन से छोटानागपुर के नागवंशी राजाओं के संबंध में बहुत सी महŸवपूर्ण बातें सर्वथा स्पष्ट हो जाती हैं, जिनमें प्रस्तुत संदर्भ में, निम्नलिखित विशेष बातें ध्यान देने योग्य हैं।
1. ईस्वी सन् के प्रारंभिक दिनों में इस नाग जाति ने अपनी खोई हुई शक्ति वापस पा ली थी। पूरा मध्यदेश इनके प्रभुत्व में था। विदिशा, वाकाट एवं कांतिपुरी-मिर्जापुर में इनकी राजधानियाँ थी। इन लोगों ने कुषाणों के मुलुन-मुरुण्ड, मुंडा-शासकों पर अधिकार प्राप्त किया था और कई-कई बार अश्वमेध यज्ञ किए थे। निश्चित ही इस क्रम में इनकी एक शाखा छोटानागपुर में स्थापित हुई होगी। छोटानागपुर में नागवंशी राज्य स्थापना का श्रेय फणिमुकुट राय को प्राप्त हुआ था।
वर्ष 1615 ई. में जहाँगीर ने नूरजहाँ के भाई इब्राहिम खाँ को बिहार का सूबेदार बनाया। तुजुकी जहाँगीरी में इब्राहिम खाँ के खुखरा विजय का विस्तृत विवरण है। उसके अनुसार 1616 ई. में यह आक्रमण हुआ। शंख नदी को अधिकार में ले लिया गया जहाँ हीरा मिलता था। नागवंशी राजा दुर्जन साल गिरफ्तार हुए और बारह वर्ष ग्वालियर के किले में कैदी की तरह गुजारे। अंत में हीरा पहचानने की निपुणता के कारण बादशाह ने अन्य बन्दी राजाओं के साथ उसे मुक्त किया। 1628 ई. में नागवंशियों ने मुगलों को 6000 रू. सालाना-मालगुजारी देना स्वीकार कर अधीनता स्वीकार ली थी।
वर्ष 1765 में शाह आलम-।। द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी मिली। इस तरह झारखंड (बिहार की दीवानी अंग होने के कारण) अंग्रेज राज के अंतर्गत एक कर चुकाने वाला जिला बन गया।

स्वाधीनता संग्राम और झारखंड

झारखंड में अंग्रेजी शासन की यह अवधि आंतरिक गड़बड़ी और अशांति की अवधि थी। देश के आदिवासी इलाकों में तत्काल प्रतिकार के स्वर सुनाई पड़ते हैं। क्रान्तियो के ये सिलसिले भारत के इतिहासकारों की आँखों में उँगली डाल कर कुछ समझाने की कोशिश कर रहे हैं।
1. 1765-1805: ’खेरा-मांझी-महतो (चुआड़) क्रान्ति
2. 1766-80ः राजमहल में पहाड़िया क्रान्ति
3. 1784 संताल परगना में तिलका मांझी के नेतृत्व में क्रान्ति
4. 1820-21: सिंहभूम की हो क्रान्ति
5. 1831-32: महान कोल (हो, मुण्डा, उराँव) क्रान्ति
6. 1831-32 चान्हों सिलगांई के वीर बुधु भगत की क्रान्ति: इस क्रान्ति को अलग से रेखांकित करने की आवश्यकता इसलिए है कि 13 फरवरी 1832 को कैप्टन इम्पे के नेतृत्व की ब्रिटिश फौज से युद्ध करते वीर बुधु भगत उनके पुत्रा हलधर-गिरिधर-उदयकरण, उनकी पुत्रियाँ रुनिया-झुनिया, भाई-भतीजे, गोत्रा के अन्य डेढ़ सौ से दो सौ सदस्यों ने एक साथ शहादतें दीं। भारतीय या विश्व इतिहास में एक परिवार के इतने सदस्यों की शहादत अपने आप में अतुलनीय है।
7. 1831-33ः मानभूम और सिंहभूभ में भूमिज क्रान्ति
8. 1837 सिंरिंगसिया घाटी की लड़ाई।
9. 1855-57: महान संताल क्रान्ति (हल)ः- 1855-57 का विद्रोह संताल इतिहास की एक ऐसी घटना है जो उनकी चेतना का अभिन्न अंग बन गयी है। यह संताल विद्रोह शोषण की लंबी अवधि का परिणाम था। संतालों के बीच बढ़ते हुए असंतोष को विप्लव का रुप देने का श्रेय भोगनाडीही निवासी सिद्धू और कान्हू नामक दो संजान भाइयों को है। ये और इनके कम प्रभावशाली भाई चाँद और भैरव वास्तव में समस्त आन्दोलन के प्राण थे।
13 जून, 1855 ई. को दस हजार संताल भगनाडीही में एकत्रित हुए और वहाँ सिद्ध और कान्हू ने उनके सामने घोषित किया कि भगवान की आज्ञा है कि संताल लोग अत्याचारियों के पंजे से निकल जाने की चेष्टा करें। 16 जुलाई 1855 पीरपैंती युद्ध मेजर बरोज की सेना की हार संताल विद्रोहियों द्वारा। 21 जुलाई 1855 वीरभूम के युद्ध, लेफ्टिनेंट टोल मेइन की बड़ी सेना की हार संताल विद्रोहियों द्वारा। ये दो महत्वपूर्ण घटनाएँ हैं जिसकी पृष्ठभूमि पर 1857 की क्रान्ति की नींव रखी गयी।
10. 1857-59 सिपाही विद्रोह
11. 1857-59ः सिंहभू में पोड़ाहाट के राजा अर्जुन सिंह के नेतृत्व में विद्रोह
12. 1857-59ः पलामू में नीलांबर और पीतांबर के नेतृत्व में विद्रोह
13. 1857 हजारीबाग के भुइयाँ टिकैंतों का आन्दोलन
14. 1871 भगीरथी माँझी के नेतृत्व में खरवार आन्दोलन
15. 1881-82 पलामू में कोरवा विद्रोह
16. 1859-95ः सरदारी लड़ाई या मुल्की लडाई
17. 1880 तेलगां खंड़िया के नेतृत्व में खड़िया लोगों के बीच आन्दोलन
18. 1895-1900: बिरसा आन्दोलन (उलगुलान)
19. 1914 टाना भगत आन्दोलन
तत्पश्चात् 1947 तक आजादी की लडाई में भागीदारी यानी उलगुलानों की अन्तहीन कड़ियाँ यहाँ दिखती है।

 
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